Wednesday, September 09, 2015

सफलता-असफलता तो इंद्रधनुषी रंग हैं जिंदगी के

सुबह जग तो गए पर उठने का मन न किया। लेटे रहे। पर फिर अलार्म बजा तो उठना पड़ा। उठे तो पहले सोचा कि आज साईकल न चलेगी। लेकिन फिर 'पच्चल' पहनकर निकल लिए।

बाहर निकलते ही बायीं तरफ देखा तो सूरज भाई आसमान पर विराजमान थे। बहुरंगी उजाला उनके चारो तरफ सुरक्षा घेरे सा फैला हुआ था। लगा कि किसी अनगढ़ गृहणी ने आसमान के आंगन पर रौशनी छिटककर उसको अनमने मन से लीप दिया हो। बहुत दिन बाद दिखे सूरज भाई। देखकर कहने का मन हुआ-शानदार, जबरदस्त, जिंदाबाद। लेकिन कहे नहीं फिर। पता नहीं लोग क्या सोचें।

होता है ऐसा। हम बहुत कुछ कह नहीं पाते अपने जीवन में। बहुत कुछ अनकहा रहा जाता है यह सोचते हुए कि लोग क्या कहेंगे।ऐसे समय ऊ वाला गाना याद नहीं आता-

'कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों काम है कहना।'
सड़क पर लोग टहलते हुए जा रहे थे। लगा लोग अनमने से टहल रहे हैं। ऐसा शायद इसलिए लगा कि हम खुद अनमने से रहे होंगे। आदमी सबको अपने हिसाब से देखता है न।

पंकज टी स्टाल पर बाजा बन्द था। बोले तो चालू किया। गाना बज रहा था-दिल ने फिर याद किया। लेकिन फिर खड़खड़ होने लगी तो बन्द कर दिया। दिल ने लगता है ज्यादा 'जोड़' से याद कर लिया।

दूकान पर कुछ लोग बस्ता जैसा लादे चाय पी रहे थे। पता चला कि जीसीएफ फैक्ट्री के कामगार थे। रात की शिफ्ट में काम करके निकले। घर जाने से पहले चाय पीते हुए बतिया रहे थे।

एक आदमी बीड़ी पीता हुआ चाय पी रहा था। बीड़ी का धुंआ वह अलग-अलग तरह से फेंक रहा था। कभी एकदम सीधे सामने।अगले कश में मुंह से 30 से 40 डिग्री ऊपर की तरफ करके मानों मुंह की तोप से धुंए का गोला छोड़ रहा हो।उसके अगले कश में धुंए की तोप उतना ही नीचे चलने लगी मानों सीजफायर की घोषणा कर रहा होगा।
धुंए का कोई प्रवक्ता होता तो इसकी अपने हिसाब से व्याख्या करता। ऊपर की तरफ उड़ते हुए को प्रगति और नीचे की तरफ के धुएं को कीमतों में कमी बताता। कोई कविमना प्रवक्ता शायद रमानाथ अवस्थी की कविता भी सुना देता:
चाहे हवन का हो
चाहे कफ़न का हो
धुएं का रंग एक है!
किसी का अलगाव क्या!
किसी का पछताव क्या!
अभी तो और सहना है!
ठीक है भाई सहना है तो सहेंगे।

बीड़ी पीते हुए आदमी की दाढ़ी सफेद पर मूंछे चिट काली थीं। डाई किया होगा। त्रिभुज के आकार की मूंछे इतनी सफाई से तरासी गयीं थीं कि मन किया नाप लेकर त्रिभुज का क्षेत्रफल निकालने लगूं।

आड़ में कुछ बच्चे बैठे आपस में बतिया रहे थे। बात किया तो पता चला कि एक बच्चा कॉल सेंटर में काम
करता है। उम्र 20 साल। यूके बेस्ड कम्पनी के कॉल सेंटर में काम करता है। जॉन नाम है वहां उसका। बोला हिंदी नाम बताओ तो रख देते हैं वो लोग फोन। ग्रामर नहीं सिर्फ अंग्रेजी कांफिडेंटली बोलना जरूरी होता है। ट्रेनिंग होती है। कुछ दिन अमेरिका की कॉल के लिए भी काम किया। यूके वाले कॉल करते हैं।अमेरिका में करना पड़ता है।

चेतन भगत की 'लाइफ इन ए काल सेंटर' से बहुत अलग है कॉल सेंटर की जिंदगी। बहुत स्ट्रगल करना पड़ता है। 5000 से जबलपुर से शुरू किया था। अब 35000 मिलते हैं। बीकाम किया है। एमबीए कर रहे हैं। अब सीनियर हो गए। कभी-कभी कॉल छोड़ देते हैं अब। फिर आती है तो किसी और के पास चली जाती है।

आगे जिंदगी में क्या करना है पूछने पर बताया कि खूब पैसे कमाने हैं। आगे बढ़ना है।

उसके दोस्तों में एक कम्पनी सिकरेटरी का कोर्स कर रहा है। दूसरा जबलपुर इंजिनयरिंग कालेज से इंजियंरिंग। एक बच्चा सर झुकाये बैठा था। दोस्तों ने बताया कि सऊदी अरब से आया है।

कुछ बच्चे और थे जो वहां सिगरेट फूंक रहे थे। बोले-दिन में एकाध दो पी लेते हैं। टेंशन दूर करने के लिए। सिगरेट के बाद मसाला फांकते हुए देखा तो टोंका-ये बहुत खतरनाक है। इसमें केमिकल मिले होते हैं। बोले- हमेशा नहीं खाते। सिगरेट की महक कम करने के लिए खाते हैं मसाला। घर वालों से छिपकर पीते हैं। उनकी इज्जत का सवाल है।

इज्जत के नाम पर याद आया कि अपने यहां अनगिनत काम इज्जत की रक्षा के लिए होते हैं। लोग प्रेम करने पर अपने बच्चों को इज्जत के लिए मार देते हैं। हजारों पद्मणियां अंगारों पर इज्जत के लिए आग में कूद गयीं। इन्द्राणी ने अपनी बच्ची का खून इज्जत के लिए ही किया था शायद क्योंकि वह रिश्ते में अपने भाई के साथ शादी करना चाहती थी।पता नहीं उसने राहुल सांकृत्यायन की 'वोल्गा से गंगा' से पढ़ी थी कि नहीं जिसमें समाज के शुरूआती दिनों की कहानियाँ है जिसके अनुसार एक ही महिला का पुत्र उसका पति भी होता था। अगर वह हार्वड फ्रॉस्ट का उपन्यास स्पार्टाकस पढ़ी होती तो उसको पता होता-जीवन सबसे अमूल्य होता है। जीवन से कीमती कुछ भी नहीं होता। इसकी हर हाल में रक्षा की जानी चाहिए।

पोस्ट लिखते हुए अपने बच्चे और भतीजे और युवा मित्र याद आये। सब कहीं न कहीँ संघर्षरत हैं। कोई मन से कोई अनमने ढंग से। कोई सफल होता जा रहा है किसी के हाथ से सफलता बार-बार फिसलती है।उन सबसे यही कहना है सफलता-असफलता तो इंद्रधनुषी रंग हैं जिंदगी के।जीवन सबसे अमूल्य होता है। भरसक सार्थक जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए। शानदार,जबरदस्त,जिंदाबाद।

लौटते हुए देखा सड़क पर सूरज भाई ने हमारी अगवानी में धूप की कालीन बिछाई हुई थी। सड़क एकदम झक्क लग रही थी।धूप हम कुछ कहने के लिए मुंह खोले लेकिज अं अं अं कहकर रह गए। धूप खिलखिलाते हुए हमारे मजे लेती हुई और खूबसूरत लगने लगी। हमको लगा कि धूप थोडा सा और खूबसूरत होती तो किसी प्यारे दोस्त के चेहरे की मुस्कान सरीखी लगती।
अब आप पूछेंगे कौन सा प्यारा दोस्त? तो यह आप ही हैं । सच्ची। मुस्कराइए ताकि सुबह की शुरुआत हो सके और दिन शुभ हो सके।
अच्छे से रहिये। चलते हैं काम पर निकलने के लिए तैयार होने। आपका दिन शुभ हो।

No comments:

Post a Comment