Wednesday, September 09, 2015

लहर का हर छोर, दोनों और लिखना

लहर का हर छोर, दोनों और लिखना
रात में भी तुम, सुनहली भोर लिखना।

मौसमों की जिदें सारी तोड़ देना,
हवा में कुछ खुले पन्ने छोड़ देना,
मन! हमेशा पंख खोले मोर लिखना।

फूल पर ठहरी हुई सी ओस लिखना,
जिंदगी भर तुम नहीँ अफ़सोस लिखना,
आँधियों में पत्तियों का शोर लिखना।

नहीं छूटे कहीं कोई छुपा कोना,
गीत के हर अन्तरे में साँस बोना,
लिखो बारिश तो बहुत घनघोर लिखना।

एक धीमीं आंच पर गुनगुना करना,
वक्त को सुनना, नहीं अनसुना करना,
खुले मन से कभी, मन का चोर लिखना।

--यश मालवीय

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