Wednesday, January 06, 2016

स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती

 
कल दोपहर लंच के बाद पुलिया पर हरिप्रसाद विश्वकर्मा से मुलाक़ात हुई।

भेलुपुरा में रहते हैं हरिप्रसाद। टेलर का काम करते थे। तीन साल पहले काम छोड़ दिया। कारण सुगर की समस्या है। बहुत थकान होती है। काम करते नहीं बनता। पहले सब कपड़े बनाते थे। कोट, सूट भी। अब कुछ नहीं होता। मशीनें बेंच दीं। एक सिलाई मशीन बची है। कोई ग्राहक मिल गया तो वह भी बेंच देंगे।

सुगर लेवल कित्ता है पूछने पर बताया 320 है। 120 नार्मल होता है यह भी कहा। इलाज फिलाज से कोई फायदा नहीं होता। बोले- 'साली सुगर होती है तो आँख, किडनी, लिवर, बीपी सब गड़बड़ा जाता है।'

सुगर, कैंसर, ब्लडप्रेसर और एकाध बीमारियों को बहन की गाली देते हुए बोले-- 'जिसको देखो यही सब घेरे रहती हैं। ये हुई तो आदमी किसी काम का नहीं रहता।'

हमने परहेज और खानपान ठीक रखकर सुगर कण्ट्रोल करने का सुझाव दिया तो बोले-'अरे क्या परहेज करें। कुछ नहीं ठीक होता। दवाएं सब महंगी हैं। कोई सुधार नहीं होता।'

जब काम नही करते तो घर का खर्च कैसे चलता है? पूछने पर बताया कि पत्नी 'दत्ता कम्पनी' में काम करती है। लड़का भी वहीं काम करता है। उससे खर्च चलता है। दूसरा बेटा 'बुढ़िया के बाल' बेंचता है ।

हरिप्रसाद खाली कमीज पहने बैठे थे। नीचे बनियाइन भी नहीं थी। कमीज की बटन के बीच से पेट दिख रहा था। हम उनके सामने कोट के नीचे स्वेटर मिलाकर चार परत के कपड़े पहने उनसे बतिया रहे थे।

पत्नी कमाती है तो ख्याल रखती होगी न ! अच्छा है।यह कहने पर हरिप्रसाद बोले:
सुर, नर, मुनि सब की यह रीती
स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती।


बोले--'बीमारी जब दो, चार,दस दिन में ठीक हो जाती है तो सब ख्याल करते हैं। अच्छा लगता है। लेकिन लम्बी खींचती है तो कोई ख्याल नहीं रखता। सब अपने में मस्त हो जाते हैं। खुद झेलना पड़ता है।'

50 के करीब के हरिप्रसाद के सामने के दांत टूटे हुए, आँखे अंदर और शरीर पस्त टाइप दिखा। बोले -'कोई बैठे का काम मिल जाए तो दरबान टाइप का तो अच्छा रहेगा। और मेहनत का कोई काम हो नहीं पाता।'

हमने पूछा कहीं कोशिश की ? किसी के पास गए काम मांगने तो बोले --'हमने किसी से कहा नहीं अब तक।'
हमने सहज सलाह दे दी-' कोशिश करो मिलेगा काम।'

बात करते हुए अपनी पांच पीढ़ियों के किस्से सुना दिए हरिप्रसाद ने। बोले पांच पीढ़ी पहले रहेली , गढ़ाकोटा के पास से उनके पूर्वज लालजी सिंह आये थे जबलपुर। मिस्त्री का काम करते थे। व्हीकल फैक्ट्री भी उनके पूर्वजों ने बनाई। पांच पीढ़ियों के नाम भी गिना दिए। लालजी सिंह (परबाबा)-जोराबल सिंह(बाबा)-दीनदयाल(पिता)-हरिप्रसाद( स्वयं)-दीपक (बेटा)।

पिक्चर कभी देखते हैं क्या ? पूछने पर बोले-' बहुत देखते थे पहले। ऐसा कोई टाकीज नहीं जबलपुर का जहां पिक्चर न देखी हो। देवानंद की पिक्चर आई थी --जानी मेरा नाम। वह कई बार देखी। अब तो सालों हुए कोई पिक्चर देखे।

और कोई शौक है? क्या करने का मन करता है ? यह पूछने पर बोले-'क्या शौक? यही कभी-कभी नमकीन खाने का मन करता है। कभी कुछ मीठा।'

चलने-फिरने में थकान होती है तो घर से 2 किलोमीटर दूर टहलते हुए कैसे आ गए यहां? -हमने पूछा।
बस ऐसे ही चले आये। क्या करते घर में पड़े-पड़े। ऐसे ही चले जाएंगे अभी।

हमने फोटो खींचने के लिए पूछा तो बोले खींच लो। फिर अपना अंगौछा अलग रखा। कमीज के बटन ठीक किये। फोटो खिंचाया। मैंने उनको फोटो दिखाया तो बोले--'वाह ये तो बहुत बढ़िया फोटो आया।'
आप भी देखिये। बताइये कैसा है फोटो?

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10207072741070400?pnref=story

No comments:

Post a Comment