Tuesday, February 09, 2016

वर ‘अनूप’ को ‘सुमन’ सदृश सुरभित झंकृत उर तार मिला


अनूप -सुमन फोटो सौजन्य अनन्य
.....और मजाक-मजाक में 27 साल फुर्र हो गए साथ-साथ चलते।
कंटकवर ‘अनूप’ को ‘सुमन’ सदृश सुरभित झंकृत उर तार मिलाजी का स्वागतगीत सुनाई दे रहा है:
'बरसों बाट जोहते बीते था नयनों को कब विश्राम ,
सहसा मिले खिला उर उपवन सुरभित वंदनवार ललाम।

जीवन पथ पर मिले इस तरह जैसे यह संसार मिला।'
स्वागतगीत पूरा सुनने मन हो तो यहां पढ़/सुन सकते हैं : (http://fursatiya.blogspot.in/2010/02/blog-post_19.html )
ये 'सुरभित झंकृत उरताल' जबसे मिला है तबसे (सच्चाई और समझदारी के तकाजे के तहत) हम यही कहते आये हैं- ' हमारे जीवन और परिवार में जो भी अच्छा हुआ है उसके पीछे सुमन की मौजूदगी अहम कारण रही। अम्मा तो जब तक साथ रहीं कहतीं रहीं-'गुड्डो,अगर नहीं होती तो हम इतने दिन नहीं जी पाते।'


शादी की सालगिरह का केक
25 वीं सालगिरह में अम्मा साथ थीं। बगीचे में सब लोग इकट्ठा हुए थे और निरुपमा दीदी ने हम दोनों के लिए रची अपनी कविता (सलोनी पच्चीसवीं उमर को मुबारक हो) पढ़ी थी।






Kiran दीदी ने सुबह-सुबह हमारी शादी की सालगिरह का नगाड़ा बजा दिया। हमारी खूब तारीफ़ भी करी। हम यही सोच रहे हैं -'मैन इज नोन बाई द कंपनी ही कीप्स।' सुमन-संगत का असर है यह तारीफ़।
ये कविता पहली मुलाकात पर लिखी गयी थी:

दीदी की कविता अनूप-सुमन की 25 वीं सालगिरह पर
"तुम
कोहरे की चादर में लिपटी
किसी गुलाब की पंखुड़ी पर
अलसाई सी ठिठकी
ओस की बूँद हो।

नन्हा सूरज
तुम्हें बार-बार छूता
खिलखिलाता है।
मैं सहमा सा
दूर खड़ा
हवा के हर झोंके के साथ
तुम्हें गुलाब की छाती पर
कांपते देखता हूँ।
अपनी हर धड़कन पर
मुझे सिहरन सी होती है
कि कहीं इससे चौंककर
तुम फूल से नीचे न ढुलक जाओ।"

इसके बाद फाइनल शेर लिखकर कलम माने कि माउस तोड़ दिया:
'तेरा साथ रहा बारिशों में छाते की तरह
कि भीग तो पूरा गए, पर हौसला बना रहा।'



27 साल का साथ काम भर का लंबा साथ होता है। बकौल अनूप सेठी इतने समय में :

'पति-पत्नी आपस में घिसकर सिलबट्टा बन जाते हैं।'


सुमन फूलों की संगत में
27 साल में पता नहीँ यह कविता कितनी कारगर हुई हमारे ऊपर लेकिन लगता है कि तमाम मौलिक अनगढ़ता और बेवकूफियां हमने अभी तक बचा के रखी हैं। इसका पुख्ता प्रमाण तब और मिल जाता है जब गाहे-बगाहे सुनने को मिले-'इतने साल हो गए लेकिन तुमको हम सिखा नहीं पाये।'

अब तो बच्चे भी बड़े हो गए हैं। बड़े होते बच्चे कब अभिभावक सरीखे हो जाते हैं, पता नहीं चलता। बड़े बच्चे ने कल केक भेजा और आज पिक्चर देख आने के लिए कहा है। पैसे उसकी तरफ से। पिक्चर तो शाम को देखी जायेगी। अभी तो गुलगुले खाते हुये आपसे कह रहे हैं केक खाइये। :)


दीदी ने दो साल पहले अपनी कविता में आदेश दिया था:

"मुबारकों की बेला में
आओ सुमन अनूप बढ़ चलें
अपने प्यारे कारवाँ के साथ
शादी के पच्चीसवें मोड़ के आगे.....
प्यार से प्यार के साथ
सदियों से दुर्लभ रहे प्यार के लिए।"
तो भैया हम तो आगे बढ़ लिए। आप भी आइये साथ में। गुलगुला भी खिलाएंगे। :)
हमारी शादी के किस्से पढने का मन करे तो यहां आइये :
http://fursatiya.blogspot.in/2005/01/blog-post_25.html


https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10207290023462324

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