Monday, February 22, 2016

अपना तो यह रोज का किस्सा है


गोविन्दपुरी रेलवे स्टेशन
कल सुबह जब नींद खुली तो ट्रेन की खिड़की से बाहर झाँका। सूरज भाई आसमान के माथे पर टिकुली सरीखे चमक रहे थे। आसमान सुहागन के माथे सा दमक रहा था।

ट्रेन पटरी पर छम्मक छैंया करते हुए चल रही थी। खटर खट करती हुई। पटरी पर कैटवॉक सरीखा करती दायें-बाएं होते हुए दुलकी चाल से चल रही थी। थोड़ी-थोड़ी देर में सेंसेक्स जैसा ऊपर भी उछल जा रही थी। ठण्डी हवा जैसे ट्रेन से सटी हुई चल रही थी। उसकी मिजाजपुर्सी सी करती हुई।

ट्रेन एक पुल के पास गुजरी तो सूरज भाई कोने में खड़े दिखे। ट्रेन पुल से जैसे ही गुजरी सूरज भाई ट्रेन के पीछे लग लिए। जैसे लड़के लोग कालेज जाती लड़की के घर से निकलने का इन्तजार चौराहे/मोड़ पर करते हैं और लड़की के आते ही उसको एस्कार्ट करने लगते हैं कुछ वैसे ही सूरज भाई ट्रेन के साथ चलने लगे।

एक बार जब साथ हुआ तो सूरज भाई एकदम ट्रेन की नकल करने लगे। ट्रेन जैसे पटरी पर इठलाते हुए चल रही थी, सूरज भाई उसी तरह आसमान में इठलाने लगे। पेड़ों की फुनगियों पर साइन कर्व सरीखा बनाने लगे। एक बारगी यह भी लगा कि ट्रेन को अपना ईसीजी सा दिखा रहे हैं।

ट्रेन भी सूरज भाई की हरकतें कनखियों से देखते हुए अनदेखा करती रही। जब काफी दूर का साथ हो गया तो वह सूरज भाई की संगत कुछ ज्यादा ही शिद्दत से महसूसने लगी। एक जगह नदी पड़ी तो सूरज भाई उसमें उतरकर नहाने लगे। शायद उनको लगा हो कि राजा बेटा बन जाने में इम्प्रेशन अच्छा पड़ेगा।

ट्रेन ने जब सूरज भाई को साथ आते नहीं देखा तो बिना स्टेशन के ही पटरी पर खड़ी हो गयी। इन्तजार सा करने लगी सूरज भाई का। जैसे ही सूरज भाई आते दिखे वह आगे चल दी यह जताते हुए मनो वह अपने किसी काम से रुकी थी। लेकिन सूरज की किरणें सब देख रहीं थी। वह यह सब देखकर मुस्कराने लगीं और सूरज भाई से कहने लगीं -'क्या बात है दादा, आज कुछ ज्यादा ही जम रहे हो।' सूरज भाई उनसे प्यार से अपना काम करने करने और पूरी कायनात में चमकने की कहकर ट्रेन के ऊपर आकर आसमान में चमकने लगे।

मेरी सीट पर एक महिला आकर सिकुड़ी सी बैठ गई थी। मैं भी उठकर बैठ गया और उससे बतियाने लगा।
महिला ने बताया कि वह घाटमपुर के आगे रागौर की रहने वाली है। वहीं उसका मायका है। शादी उसकी बांदा जिले में हुई थी। लेकिन ससुर गाली-गलौज , मारपीट करते थे। पेड़ से बांधकर मारने की धमकी करते थे। नशा पत्ती करते भी करते थे। इसलिए वह भागकर मायके आ गयी थी।

ससुराल बहुत पिछड़े इलाके में थी। एक बच्चा इलाज के अभाव में मर गया। डायरिया हो गया। इसलिए भी मायके आ गए। ससुराल में 12-15 लोगों का परिवार था। सबके लिए चक्की का आटा पीसना। खाना बनाना ऊपर से बिना बात मारपीट। रह नहीं पाये वहां। चले आये मायके। पंचायत बैठी और यह वायदा किया ससुर ने कि ठीक से रखेंगे लेकिन फिर वही हरकत। एक बार तो मायके तक में हाथ उठा दिया तो अम्मा ने कहा-'अब नहीं भेजना।'

सास और खुद के बच्चे साथ-साथ होते रहे। अब तो ससुर रहे नहीं। कैंसर हो गया था। पहले पति भी मार-पीट करता था लेकिन अब नहीं करता। घर जमाई बनकर सुधर गया है। अब साइकिल की मरम्मत का काम करता है।

चार बच्चे हैं। सब लड़के। 10 वीं, 7 वीं , 4 थी और दूसरी में पढ़ते हैं।
महिला खुद फूल का काम करती है। शिवाले जा रही थी फूल लेने। कोई सहालग है। सुबह 4 बजकर 7 मिनट पर उठी थी। नहाकर, पूजा करके खाना बनाया और फिर साढ़े पांच बजे ट्रेन पकड़ ली कानपुर के लिए। लौटते में साढ़े दस बजे ट्रेन है। अगर मिल गयी तो ठीक वरना नौबस्ता, घाटमपुर होते हुए बस से लौटेगी।
बात करते हुए फोन बजा उसका। झोले से काला नोकिया का मोबाइल निकाल कर बतियाई। घर में बच्चों को खाने की हिदायत दे रही थी। पूड़ी-सब्जी बनाकर आई थी। सब्जी सेम की। :)

हमने कहा-'तुम तो बहुत बहादुर हो।अब मायके में तो सुखी होगी।'

वह थोड़ा मुस्कराई। दांत विको वज्रदंती टाइप। लेकिन चेहरे पर समय के थपेड़े के निशान। बोली-'सुख-दुःख सबको मिलते हैं। छोटे आदमी को छोटे दुःख लगते हैं। बड़े आदमी के बड़े दुःख। पैसे वाले को बड़ी बीमारी मिलती हैं।

कुछ देर में उठकर वह शायद बाथरूम की तरफ गयी। ऊपर की सीट की एक सवारी जहां वह बैठी उसकी जगह आकर धँस गयी। उसका झोला सरका दिया। सीट हमारी थी पर वह जिस धमक के साथ बैठे उससे कोई समझता की सीट उनकी ही है। मैंने सोचा कि जब वह महिला लौटकर आएगी तो और सरक जाएंगे और उसके लिए बैठने की जगह बन जायेगी। एक बर्थ पर 3 लोग तो आराम से बैठ सकते हैं।

लेकिन जब वह महिला लौटकर आई तो उसने अपनी जगह किसी दूसरे को बैठे देखा तो अपना झोला उठाकर तेजी से बिना कुछ कहे दूसरे डिब्बे की और चली गयी।

कुछ ही देर में हमारा स्टेशन भी आ गया। सुबह सुहानी सी थी। महेश ऑटो वाले स्टेशन पर ही इंतजार करते दिखे। बताया कि रात को पानी बरसा था इसलिए मौसम बढ़िया हो गया वरना गर्मी काफी थी।

सूरज भाई स्टेशन पर मुस्कराते मिले। हमने कहा -'क्या भाई, आज तो खूब मजे हो रहे हैं।' इस पर सूरज भाई ठहाका मारकर हँसते हुए बोले-' अपना तो यह रोज का किस्सा है।'

हमने कहा -'क्या बात है। झाड़े रहो कलट्टर गंज।'   :)

सूरज भाई भी बोले-' हटिया खुली, बजाजा बन्द।'

यह तो कल का किस्सा था। अब्बी याद आया तो सूना दिया लौटते हुए।

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10207377505009308&set=a.3154374571759.141820.1037033614&type=3&theater

No comments:

Post a Comment