Tuesday, February 07, 2017

आलोक पुराणिक के बहाने -1


Alok Puranik आज के समय के सबसे चर्चित व्यंग्यकार हैं। छह दिन बाद 13 फ़रवरी को नई दिल्ली में उनको व्यंग्यलेखन का प्रतिष्ठित पुरस्कार ’व्यंग्यश्री’ प्रदान किया जायेगा। उनको पचास साल की ’बाली उमर’ में यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिलना कोई ताज्जुब की बात नहीं है।
आलोक पुराणिक से अपन का परिचय करीब दस पुराना है। जब परिचय हुआ था तब उनकी केवल एक किताब आई थी -’नेकी कर अखबार में डाल’। हमसे परिचय के बाद उनकी दस किताबें आ गयीं। आलोक पुराणिक अकेले में भले इस बात का क्रेडिट हमको देते रहते हैं लेकिन सार्वजनिक रूप से कभी स्वीकार नहीं किया। 
इस मामले में उनका व्यवहार अन्य व्यंग्य लेखकों की तरह ही हैं जो अकेले में खलीफ़ा लेखकों की तमाम बुराइयां करते हैं लेकिन सार्वजनिक रूप से कहने में हिचकते हैं - ’कहीं भाई साहब बुरा न मान जायें।’ कभी गलती से भावावेश में ’भाईसाहब’ के खिलाफ़ किसी टिप्पणी से गोल-मोल अंदाज में सहमत भी हो गये तो उसकी भरपाई करने के लिये वहीं कहीं ’दसगुनी तारीफ़ी टिप्पणी’ करके खिलाफ़त की संभावित सजा से बचने के लिये अग्रिम जमानत टाइप ले लेते हैं। विसंगतियों का चित्रण करने वाली विधा की यह अपने आप में हसीन विसंगति है कि लोग इज्जत और स्तुति को एक खाते में डालकर व्यवहार करते हैं।
आलोक पुराणिक हमारे पसंदीदा व्यंग्यलेखक हैं। उनको पसंद करने के कारण कई हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि बन्दा ईमानदार टाइप है। अपनी मेहनत पर भरोसा है। नकारात्मक बातें नहीं करते। समय से आगे की बातें सोचते-सुझाते रहते हैं।
आज से दस साल पहले जब फ़ेसबुक, टिवटर का इतना चलन नहीं था। हम चिट्ठाचर्चा करते थे। उसमें वनलाइनर भी लिखते थे। किसी के लेख के शीर्षक के साथ कुछ मजे की लाइन जोड़ना। आलोक पुराणिक उसको नियमित देखते थे। जब कभी वनलाइनर नहीं लिख पाते वे कहते- आज वनलाइनर किधर गये? 2008 की चिट्ठाचर्चा की एक पोस्ट का अंश देखिये- http://chitthacharcha.blogspot.in/2008/09/blog-post_30.html
"यहां वनलाइनर जो आप देखते हैं उनको जारी रखवाने और लगातार लिखवाने के पीछे आलोक पुराणिक की ही साजिश है। उन्होंने यह भ्रम हमारे मन में बैठा दिया कि आगे केवल वनलाइनर ही चलेंगे और सब बैठ जायेगा। इसी झांसे में फ़ंसकर यहां वनलाइनर पेश किये जाते हैं।"
आज फ़ेसबुक और टिवटर पर वनलाइनर की ही भरमार है। लम्बी पोस्ट्स पसंद भले कर लें लोग लेकिन पढते कम हैं। यह बात आलोक पुराणिक ने काफ़ी पहले नोट कर ली थी और बताई भी थी।
आलोक पुराणिक जिस तरह अच्छे बच्चों की तरह, बिना नकारात्मक ऊर्जा में अपना समय गंवाये , लिखने और छपने में जुटे रहते हैं , उससे मुझे इस बारे में कोई दुविधा नहीं कि व्यंग्य के क्षेत्र में मिलने वाला हर इनाम झक मारकर इनके पायेगा। जो पुरस्कार इनको नहीं मिलेगा, वह संदिग्ध हो जायेगा।
फ़िलहाल इतना ही, शेष अगले अंक में 

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