Friday, February 17, 2017

व्यंग्य श्री सम्मान-2017 की रपट -1


पिछले साल के आखिरी दिन सुबह-सुबह फ़ोन पर बतियाते हुये साल का आखिरी धमाका टाइप करते हुये Alok Puranik ने उनको ’व्यंग्य श्री सम्मान’ से सम्मानित होने की सूचना दी। सुनकर हमें कोई ताज्जुब नहीं हुआ। इंसान की करनी का फ़ल उसको कभी न कभी तो भोगना ही पड़ता है। किसी को देर में मिलता है किसी को जल्दी। आलोक पुराणिक को जल्दी भुगतना पड़ा। आलोक पुराणिक के व्यंग्य लेखन पर फ़िदा होते हुये पंडित गोपाल प्रसाद व्यास जी की स्मृति में दिया जाने वाला व्यंग्य के क्षेत्र का सम्मानीय पुरस्कार ’व्यंग्य श्री सम्मान’ देने का निर्णय लिया गया। करमगति टारे नाहिं टरी।
खबर मिलते ही हमने फ़ोन रखकर सबसे पहले चाय मंगाई और पीते हुये खबर छाप दी देखिये लिंक [ https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10210133472866782 ]
हमने यह भी लिखा था :
" आम तौर पर वरिष्ठ नागरिक की उम्र के आसपास पहुंचने पर दिये जाने वाले इस इनाम को आलोक पुराणिक ने पचास साल की 'बाली उमर' में ही झटक लिया। इतनी कम उमर में यह इनाम आज तक किसी को नहीं मिला।
आलोक पुराणिक द्वारा व्यंग्य के क्षेत्र में नित नये प्रयोग करने की भी इस इनाम के निर्धारण में भूमिका रही होगी। "
पिछले वर्ष यह सम्मान Subhash Chander जी को मिला था। जब सुभाष जी ने इस इनाम को मिलने की सूचना दी थी तब हम जबलपुर जाने के लिये गोविन्दपुरी स्टेशन पर चित्रकूट एक्सप्रेस पर चढ रहे थे। एक हाथ में मोबाइल और दूसरे में वीआईपी वाला झोला लटकाये हाल यह था कि जरा सा और चूकते तो हैंडल हाथ से उसी तरह छूट जाता जैसे हर साल तमाम लोगों के हाथ आते-आते व्यंग्यश्री रह जाता है। सुभाष जी की पिछले साल की व्यंग्यश्री की मिठाई अभी तक बकाया है। वो हम लेकर रहेंगे।
सम्मान की तारीख 13 फ़रवरी तय हुई थी। हमने ट्रेन में फ़ौरन रिजर्वेशन कराया और निकल लिये सुबह-सुबह 13 को। निकले ही दो हसीन हादसे हुये जिसमें एक का संबंध दिल्ली पहुंचने से था और दूसरे का वापस लौटने से। लेकिन उसका किस्सा फ़िर कभी तफ़सील से। अभी बात सम्मान समारोह की।
ट्रेन , फ़िर मेट्रो और फ़िर आटो रिक्शे से होते हुये हम ठीक पांच बजे हिन्दी भवन पहुंचे। पहुंचते ही एक तरफ़ से संतोष त्रिवेदी और दूसरी तरफ़ से अर्चना चतुर्वेदी दिखीं। साथ में Alok Saxena Satirist और सुनीता शानू। संतोष त्रिवेदी ने देखते ही हमारा बैग झपटने की कोशिश की। बोले - ’झोला हम उठायेंगे।’ लेकिन हमने उनकी कोशिश को सफ़ल नहीं होने दिया। संतोष ने लगभग छीनने की कोशिश की। सच्चा व्यंग्य लेखक जैसे अपने सरोकार नहीं छोड़ता वैसे ही अपना बैग छोड़ा नहीं। संतोष तो खैर अपने दोस्त हैं लेकिन हमारे जीवन का अनुभव है कि झोला उठवाने वाले का मुंह अंतत: खाली झोले जैसा ही लटक जाता है। इसीलिये अपन अपना झोला खुद ही उठाते रहे हैं हमेशा।
इस मामले में संतोष का रिकार्ड और भी शानदार है। जिसको उन्होंने उठाया है या जिसका भी झोला उठाया उससे बाद में बोलचाल के सम्बन्ध भी न रहे। हम उनके प्रेम से वंचित नहीं होना चाहते इसलिये हम अपना झोला अपनी इज्जत की तरह खुद थामे रहे।
ऊपर सभा स्थल के बाहर बरामदे में आलोक पुराणिक के प्रसंशकों का जमावड़ा दिखा। दिल्ली के लगभग सभी परिचित व्यंग्यकार साथी वहां मौजूद थे। जितने परिचित थे उससे कहीं ज्यादा अपरिचित लोग दिखे मुझे वहां। सभी के भाव से लगा आलोक उनके खास हैं। आलोक पुराणिक की लोकप्रियता का नमूना दिखा ।
ऊपर पहुंचते ही आलोक पुराणिक की बिटिया और श्रीमती जी दिखीं। वे इनाम में मिलने वाले चेक को सुरक्षित घर लेकर जाने के लिये आयीं थीं। आर्थिक विषयों पर व्यंग्य लिखने वाले की आर्थिक हरकतों पर घरवालों की इतनी पैनी नजर देखकर सुकून हुआ।
वहां चाय और एक पैकेट में कुछ नमकीन टाइप बंट रहा था। हमने चाय का कप कब्जे में किया और चाय पीते हुये इधर-उधर आलोक पुराणिक को ताकने लगे। पूछा - दूल्हा किधर है। पता लगा आ रहा है दूल्हा। जरा सजने गया है।
आलोक पुराणिक आये और आते ही सबसे मिलने लगे। उनको सबसे इतनी विनम्रता से मिलते देखकर लगा कि अगले को डर लगा है कोई भी एक नाराज हुआ तो गया इनाम हाथ से।
हमने चाय आधी ही पी थी कि याद आया कि हम कैमरा भी लाये हैं। हमने आधी चाय कुर्बान करते हुये थर्मोकोल का ग्लास फ़ेंका और कैमरा चकमाने लगे। फ़िर तो हम एकदम पक्के फ़ोटोग्राफ़र में बन गये। जैसे शादी व्याह में फ़ोटू खैंचने वाले दूल्हा-दुल्हन के तमाम जरूरी-गैरजरूरी फ़ोटो खैंचने के लिये जोड़े को इधर-उधर खैंचते रहते हैं वैसे हमने तमाम लोगों को इधर-उधर करते हुये फ़ोटोबाजी की।
फ़ोटो ग्राफ़ी के उस जुलूस में कई लोग हर फ़ोटो में अपने आप आकर खड़े होते गये। हमने भी मना नहीं किया काहे से कि हम पता था कि कैमरा वाले फ़ोटो में ’क्राप’ का विकल्प मौजूद है।
संतोष अपने आईपैड के साथ इधर-उधर फ़ोटो खैंचते जा रहे थे। जो भी आये उसके साथ सेल्फ़ी खींचते हुये या फ़िर बगल में खड़े होकर हमसे खिंचवाते हुये।
इस बीच हमने आलोक पुराणिक के घर वालों बिना मांगे वाली सलाह दे डाली कि मिलने वाले -111111/- रुपये में कुछ पैसे आलोक पुराणिक से लेकर रकम कम से कम 112000/- करके अपने कब्जे में कर लें। इसको सभी लोगों ने फ़ौरन स्वीकार कर लिया।
रपट अभी जारी है .....

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10210586310027428

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