Saturday, December 23, 2017

अपन सही तो सब सही



भोपाल स्टेशन गाड़ी पहुंची डेढ़ बजे। मल्लब केवल 4 घण्टे लेट। स्टेशन पर ही चाय पी। घर के बाद की पहली ठीक चाय। इसके पहले कानपुर , झांसी में पी लेकिन वह स्टेशन की चाय की तरह ही थी। फ़ीकी, बेस्वाद, ठण्डी।



हमने जुमला भी सोच लिया था -'अपने देश की स्टेशन की चाय और जनसेवक कभी सुधर नहीं सकते। ' लेकिन फिर लिखा नहीं। सच क्या लिखें बार-बार बेफालतू में।
स्टेशन पर चाय की दुकान पर एक आदमी चाय वाले से बतिया रहा था। किसी बात पर बोला -'किसी भोपाली की बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए। '
हमने उसकी इस बात पर भरोसा करते हुए पूछा - 'फिर जो पता और रास्ता बताया उस पर भरोसा करें कि नहीं?' वह हंसने लगा।
बाहर रसीद मियां मिले। ऑटो वाले। बोले 180 रुपये लेंगे। हमने ओला चेक किया । किराया बताइस 185 रुपया । हम बैठ गए ऑटो में। बतियाते हुए आये। आने के पहले। स्टेशन पर ही सचिन भाई से 500 के फुटकर ले लिए रसीद भाई ने।
27 साल से ऑटो चला रहे हैं रसीद। रात को निकालते हैं ऑटो। 150 रूपया किराया। तीन -चार सवारी मिल गई तो काम हो गया। दिन में सोते हैं। हमारे रूप में पहली सवारी मिली रात 2 बजे।
'अपन सही तो सब सही' मानने वाले रसीद के खुद के ऑटो थे। 3-4रखे। फिर बेंच दिये। कौन कागद के झंझट में पड़े। किराए वाले में 150 रुपये दिए। चलाया। खड़ा कर दिया।
दोनों बेटे काम करते हैं रसीद के। एक कपड़ा मिल में, दूसरा दर्जी है। बेटी 12 वीं में पढ़ती है। कोई नशा नहीं। दाल-रोटी मजे में चल जाती है।
जरा देर में ही आ गए गेस्ट हाउस। रात में चाय बनवाई । मजे से पीते हुए फेसबुकिया स्टेटस बांचते रहे। देखा कि आलोक बाबू ट्रेन से पिछली पोस्ट को लाइक करते पाये गए। वो भी आ रहे हैं भोपाल। पहला ज्ञान चतुर्वेदी सम्मान समारोह है कल। कैलाश मन्डलेकर जी को मिलना है।
इस सम्मान की मूल भावना से असहमत रहे अपन। इस बारे में विस्तार से लिख भी चुके। लेकिन जब हो रहा है तो आ ही गए भोपाल। अब ज्यादा कुछ लिखेंगे तो सुशील जी अनफ्रेंड और ब्लाक कर देंगे। वे थानवी जी के बाद दूसरे नम्बर के 'ब्लाक प्रमुख' हैं।खैर पहुंच गए मौका-ए-वारदात पर। इसी बहाने तमाम दोस्त लोगों से मिलना होगा।
इस सम्मान के बहाने कैलाश मन्डलेकर जी से परिचय हुआ। बढिया लिखते हैं।
इनाम शुरू हुआ भोपाल के ज्ञानजी के नाम पर। घोषणा की दिल्ली के सुशील सिद्धार्थ जी ने। इंतजाम का जिम्मा ठेल दिया भोपाल के लोगों पर।संयोजक सुशील जी ट्रेन में मजे से सो रहे होंगे। बेचारे भोपाल वाले आने वालों की ट्रेन की आवाजाही देख रहे हैं। हमको भी शांतिलाल जी के कई संदेशे दे चुके। अपन आ गए। मजे में हैं ।
अब फिलहाल इतना ही। बाकी की खबर सुबह।

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