Monday, October 15, 2018

कानपुर से भोपाल

चित्र में ये शामिल हो सकता है: आकाश, वृक्ष, बाहर और प्रकृति
सूरज भाई ने भोपाल में लपक कर हाथ मिलाया
कल सुबह भोपाल पहुंचे। ब्राह्ममूहुर्त और गजरदम से भी पहले। गाड़ी को नौ बजे पहुंचना था। लेकिन मुंडी पर 'दुर्घटना से देर भली' का झंडा लहराते हुए मुई 3 बजे पहुंची। इस बीच हर घण्टे घंटे भर लेट होती रही। हम कई बार सोये। हर बार संभावित समय के बाद नींद खुलती और लगता हाय भोपाल निकल गया। लेकिन भोपाल शरीफ स्टेशन है। किसी बार निकला नहीं। तसल्ली से आया पांच घण्टे लेट।
स्टेशन पर सवारी का इंतजार करते हुए ओला किराया देख लिया। 180 रुपये बताया। जबतक बुक करें ऑटो वाला आ गया। शान्तिलाल जैन जी ने ओला बुक करने की सलाह इस जानकारी के साथ दी थी कि भोपाल के ऑटो वाले बड़े बदमाश होते हैं। हमने पूछा कि क्या भोपाल के सभी ऑटो वाले व्यंग्यकार हैं क्या जो बदमाशी वाली बात कही। इसका कोई साफ जबाब नहीं दिया शान्तिलाल जी ने लेकिन ओला से आने की सलाह दी।
एक बार ओला किराया जान लिया तो फिर आटो वाले से बात शुरू की। 200 रुपये से शुरु हुई बार दो मिनट में 180 रुपये पर आकर खत्म हुई। चल दिये।
रास्ते में चाय की दुकान देखकर कहा चाय पी लें। ऑटो वाले ने बढ़िया चाय पिलाने की बात कहकर आगे बढ़ा दिया ऑटो। चाय की दुकान रात को भी गुलजार थी। ऑटो वाले ने उँगलियों से विक्ट्री वाला निशान बनाकर कैंची की तरह चलाते हुए दो चाय लाने का इशारा किया। फौरन चाय पानी आ गया। पीकर निकल लिए।
रास्ते में ऑटो बालक ने बताया वह रात को ही ऑटो चलाता है। दस बजे निकला था। 3 बजे उसकी दूसरी सवारी हमारे रूप में मिली। उसने ओला, उबेर को निस्पृह भाव से कोसते हुए कहा- 'इनके चक्कर में धंधा चौपट हो गया। वर्ना अब तक पांच सवारी हो जाती।'
बात करते हुए सुनसान इलाके की तरफ आ गए। हमको लगा कि कहीं कुछ ऊंचनीच न हो जाये। शक भी हुआ कि चाय में कुछ मिला तो नहीं था। हमने फौरन अपने चुटकी काट के देखा की हम सो तो नहीं रहे। लेकिन बहुत देर तक सूनसान रास्ते में कुछ हुआ नहीं तो हमने मन को डरपोक, शक्की, बुजदिल, कायर बताते हुए बहुत हड़काया कि बेफालतू में शक किया।
मन बेचारा डांट खाकर चुप हो गया। इधर उधर देखने लगा। रास्ते मे दुकानों के बंद शटरों पर appo और vivo मोबाइल के नाम लिखे थे। मतलब बन्दी में भी विज्ञापन।
हमको ठिकाने लगाकर ऑटो वाला चला गया। हमने नींद को बुलाया लेकिन नींद आई नहीं। शायद अकेली होने के चलते डर रही हो।। आजकल कोई किसी पर भरोसा नहीं करता।
बहरहाल कुछ देर बाद आलोक पुराणिक की आवाज सुनाई दी। वे अपना कमरा विवरण पूछ रहे थे। हम निकल कर मिले। तब तक सबेरा भी हो गया था। हम। चाय की खोज में बाहर निकल लिए।
बाहर निकलते ही सूरज भाई पेड़ की आड़ में दिखे। करोड़ों मील लंबा हाथ फैलाकर हाथ मिलाया। मुस्कराने लगे। अपन ने पूछा -'आप कब आये सूरज भाई।' सूरज भाई मुस्कराने लगे। लगा गाना गा रहे हों -'तू जहां जहां रहेगा, मेरा साया साथ होगा।'
हमने कहा -'खूब शायरी हो रही है सूरज भाई, बिना मतलब बूझे। क्या चक्कर है।' सूरज भाई हंसने लगे। हम चाय की दुकान खोजने निकल लिए।
चाय की दुकान खोजते-खोजते हम 4500 कदम चल लिए। ऐसा आलोक जी की घड़ी ने बताया। हमको भी सलाह दी कि खरीद लो घड़ी। हमने चाय का आर्डर किया। एक साथ चार। तसल्ली से दो-दो चाय पी। तमाम यादें साझा की। जल्दी-जल्दी बुराई भलाई निपटाई।
रास्ते में आलोक जी ने एक अखबार वाले के पास के सारे अखबारों की एक प्रति ली। बताया कि रोज 12 अखबार पढ़ते हैं। हमें लगा इसीलिए बन्दा इत्ता अपडेट रहता है। पराठे को फोटोजनिक बना देता है। नागिन का ' मी टू ' करा देता है। अपन से कायदे से एक अखबार न पढ़ा जाता।
आलोक पुराणिक से जलने वालों की सूचना के लिए बता दें कि वो पाकिस्तान का अखबार 'द डॉन' भी रोज पढ़ते हैं। इस खबर के आधार पर उनके खिलाफ बयानबाजी की जा सकती है कि वे पाकिस्तानी अखबारों से भी व्यंग्य का विषय उठाते हैं।
बहरहाल लौटकर आये तो फिर चाय हुई। दबाके मेथी के पराठे खाये गए और फिर निकल लिए आयोजन स्थल के लिए। सोनी जी हमको लेने आये थे।
घटना स्थल तक पहुंचते हुए अपन ने सोचा कि रिजर्वेशन कन्फर्म वाला करा लें। इस कोशिश में कामयाब होते तब तक नेट का सिग्नल गोल हो गया। हमने दोबारा कोशिश की तब तक सब रिजर्वेशन हाउस फूल हो गये थे। हमने दोबारा कोशिश की लेकिन तब तक वहां पहुंच चुके थे। हमको मोबाइल में डूबा देख सब हूटिंग करने लगे कि स्टेटस अपडेट कर रहे।
आयोजन स्थल पर कई मित्र मिले। व्यंग्यकार अरुण अर्णव खरे जी को देखकर मैंने उनको ब्रजेश कानूनगो समझकर उनके उपन्यास 'डेबिट-क्रेडिट' की बधाई दे डाली। रास्ते में पढ़े उपन्यास का इत्ता जलवा। हम शर्मिंदा हुए लेकिन हमको इसका फायदा भी हुआ कि शाम तक अरुण अर्णव जी अपना व्यंग्य संग्रह ' हैश टैग और मैं' भेंट किया।
हमने भी बाद में ब्रजेश कानूनगो जी और अरुण अर्णव खरे जी के साथ फोटो खींचकर अपने भरम को साबित करके अपनी शर्म कम करने की कोशिश भी की।
बहरहाल कार्यक्रम शुरू हुआ। शुरुआत सुशील सिद्धार्थ स्मरण से हुई।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10215379279408667

No comments:

Post a Comment