Saturday, July 06, 2019

घुमक्कड़ी की दिहाड़ी



कनपुरिया घुमक्कड़ी के किस्से - घुमक्कड़ी की दिहाड़ी। Puranik जी ने इसका नामकरण (हमारी किताबों का नामकरण उनके ही जिम्मे है) के पीछे का तर्क बताया - घूमने में जो अनुभव हुए वही असली कमाई है बाकी सब फर्जी है। किताब की भूमिका भी आलोक पुराणिक जी ने ही लिखी है। आलोक पुराणिक कहते हैं :
"दुनिया तमाशा है यह कहने के लिए दार्शनिक औऱ फुरसतिया और दोनों एक साथ होना बहुत जरुरी होता है। अनूप शुक्लजी दोनों एक साथ हैं-दार्शनिक औऱ फुरसतिये भी। सिर्फ दार्शनिक होने से काम ना चलता, सौ सौ जूते खाये, तमाशा घुसके देखे-वाली प्रतिबद्धता आवश्यक है। दुनिया कई तरह की है। हरेक की अपनी दुनिया है। दफ्तर से घर, घऱ से बाजार, बाजार कभी लोकल बाजार, कभी महंगा माल, बच्चों जैसी उत्सुकता से दुनिया को देखने का अलग आनंद है, अलग दुख भी है। निस्पृह होकर देखो, तो बंदा दर्शन की ओर जा सकता है। अनूप शुक्लजी एक साथ आवारा, दार्शनिक और समाजसेवी की भूमिका में घूमते रहते हैं। कुल मिलाकर वह ऐसे व्यक्तित्व हैं, जो हर तमाशे को पूरी संजीदगी से वक्त देकर देखते हैं, हालांकि उनके पास वक्त होता नहीं है। पर ऐसी नावक्ती में भी पूरी गंभीरता से आवारगी के लिए वक्त निकालना यह दर्शाता है कि वह अगर कुछ जिम्मेदारियों से बंध ना गये होते, तो मार्को पोलो या मेगस्थनीज टाइप ग्लोबल घुमक्कड़ वृत्तांतकार बन सकते थे।"
आलोक पुराणिक यह भी कहते हैं:
"यूं आलोक पुराणिक जब अनूप शुक्ल को वृत्तांत कार बताते हैं तो अनूप शुक्ल इसे साजिश मानते हैं आलोक पुराणिक की, कि वह अनूप शुक्ल जी को व्यंग्य के मैदान में उतरने से रोकना चाहते हैं।इसलिए उनको सिर्फ वृत्तांत कार मानकर सीमित कर देते हैं। पर वृत्तांत कार का कैनवस बहुत बड़ा होता है।"
आगे की कहानी किताब में ही। फिलहाल तो किताब उपलब्ध होने की सूचना।
किताब कानपुर के बचपन के दोस्तों को समर्पित है। लिखने में हमारे नियमित पाठकों का योगदान रहा जिनकी प्रतिक्रियाएं हमको लिखने को उकसाती रहीं। सभी का आभार।
किताब मंगाने की कड़ियां नीचे दी गई हैं:

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10217112182490161

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