Monday, July 08, 2019

'घुमक्कड़ी की दिहाड़ी ' का सड़क पर विमोचन


कल पंकज बाजपेयी से मिले। बहुत दिन बाद। गए तो ठीहे पर नहीं थे। ठीहा मतलब डिवाइडर जहाँ वो बैठे मिलते हैं। ठीहे पर नहीं मिले तो इधर-उधर देखा। लगा कि कहीं निकल गए होंगे। लेकिन ज्यादा खोजना नहीं पड़ा। वहीं मोड़ पर सड़क पार करते दिख गए। आवाज दी तो रुक गए। लौटे। पास आकर बोले -' कहां चले गए थे? बहुत दिन बाद आये।'

जलेबी-समोसा लेकर खुश हो गए। हाल चाल बताया सब ठीक है। बोले - ' मम्मी से मिल लेना।'
किताब साथ ले गए थे। दिखाई तो खुश हुए। बोले बहुत बढ़िया है। किताब में उनसे जुड़े कई किस्से हैं। पढ़वाया तो पढ़ते हुए बोले -' ये तो हमारे बारे में लिखा है। हमको देना पढेंगे।'
हमने कहा -' यह किताब तुम्हारे लिए ही लाये हैं। ले लो।'
बोले -' अभी हम देर में घर जाएंगे। अगली बार आना तब लेते आना।'


हमने किताब को पंकज बाजपेयी को दिया। विमोचन मुद्रा में फोटो लेने के लिए कहा। एक हाथ में कई दिन पुराना अखबार और झोला थामे पंकज जी ने एक हाथ से किताब सामने करके पोज दिया। हमने कहा -' झोला नीचे धर दो। दोनो हाथ से पकड़कर करो विमोचन। '
इस पर बोले -' सड़क पर गंदगी बहुत है। झोला गन्दा हो जाएगा।' लेकिन हमारी बात मानकर किताब दोनों हाथ में पकड़कर फोटो खिंचाये।
इस तरह बीच सड़क पर घूमते हुए सम्पन्न हुआ - 'घुमक्कड़ी की दिहाड़ी' का विमोचन।
विमोचन के पहले चाय भी पी गयी। चाय वाला भी कह रहा था - 'बहुत दिन बाद आये।'
विमोचन के बाद हालचाल हुए। इसके बाद मोलभाव। पंकज बक़जपेयी बोले - 'अबकी बार बहुत दिन बाद आये हो। ज्यादा पैसे लेंगे। '
हमने पूछा - ' कितने ?'
बोले -' पचास । '
हमने बचे हुए फुटकर सारे पैसे उनको थमा दिए। कहा - 'पचास रुपये ले लो।'
पंकज जी ने पचास रुपये गिनकर निकाले। बाकी वापस कर दिए। दो बार गिने पैसे - कहीं, कम ज्यादा तो नहीं हो गए।


पैसे देने के बाद हमने पूछा -' क्या करोगे इसका ?'
बोले -' चाय पियेंगे।'
हमने कहा -' चाय तो तुमको सब मुफ्त में पिलाते हैं। फिर किसका पैसा?'
बोले -' मिठाई नहीं खिलाते हैं।'
फिर बोले - 'हम तुमको इसका सर्टिफिकेट देंगे। नोट जलाने का सर्टीफिकेट।'
इसके बाद गाडी की तारीफ की। बोले-' इसको बेंचना नहीं। ' इसके बाद बोले -' इसके शीशे में आटोमैटिक सिस्टम क्यों नहीं है।'
इसी तरह की और भी तमाम बेतरतीब बातें जिनका कोई तारतम्य जोड़ना मुश्किल। मानसिक रूप से टहल गए इंसान की बातें समझना मुश्किल बात।

इस तरह देखा जाए तो हम लोग ही कौन तरतीब से बातें करते हैं। न जाने क्या आंय-बांय-सांय लिखते-बोलते-छपाते रहते हैं। इस किताब में भी ऐसा ही तमाम कुछ है । किताब जिसका कल विमोचन हुआ। किताब जिसका नाम है -' घुम्मकड़ी की दिहाड़ी।'
सड़क पर घूमते हुए इकट्ठा किये हुए किस्सों की किताब का सड़क पर घूमते हुए इंसान द्वारा विमोचन । अरविंद तिवारी जी के शब्दों में - 'ग़ज़ब लेखक की पुस्तक के अजब विमोचनकर्ता ।'

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10217127547354273

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