Thursday, September 12, 2019

बस निकल लो गुरु आगे जो होगा देखा जाएगा



लेह से भारत के आखिरी गांव थांग तक के रास्ते में कई बाइकर्स मिले। मोटरसाइकिल पर धड़धड़ाते जाते। खरदुंगला पास पर भी कई टोलियां मिलीं। उनमें कुछ लड़कियां भी थीं। इन बाइकर्स को देखकर लगा कि यही असल जिंदगी यही है, घूमना। यायावरी, घुमक्कड़ी। बाकी तो सब ऐं-वैं ही है।

जो बाइकर्स मिले थांग में वे कोलकता से आये थे। उनमें से एक कोल इंडिया में काम करते थे। दूसरे किसी प्राइवेट फर्म में और तीसरे अभी नौकरी के चक्कर से बचे थे। कुछ और साथी भी साथ में आये थे। लेकिन एक का गाजियाबाद के पास कहीं एक्सीडेंट हो गया था तो वो लौट गए वापस।
काफी समय तक उनके यात्रा के अनुभव सुने। उनके खर्च के बारे में जानकारी ली। अपनी बचत के पैसे ख़र्च करके यात्रा कर रहे थे ये बाइकर्स। मुझे अपनी साइकिल यात्रा की याद आई। बिहार में एक जगह एक दरोगा जी ने हमको अपने पास के सारे पैसे खर्चे के लिए दे दिए थे। उसको याद करके भावुक हो गए अपन। मुझे लगा कि दरोगा जी के वे पैसे हमारे पास जमा हैं। उधार हैं। हमने तुरन्त लगभग जबरदस्ती उन बाइकर्स में से एक को कुछ पैसे ख़र्च के लिए दिए।


मेरे पैसे देने से उनके खर्चे नहीं पूरे होने वाले। लेकिन 35 साल पहले का एक अच्छा अनुभव मेरे मन मे कल के अनुभव की तरह सुरक्षित था। उसने मुझे मजबूर सा किया कि हम भी वैसा ही करें। जो प्रेम मिला मुझे वह आगे बढ़ाएं।किसी के साथ कि अच्छाइयां कभी बेकार नहीं जाती। वे आगे और कई गुना खूबसूरत होकर निखरती हैं।
उन बाइकर्स से विदा होकर हम वापस लौटे। वे रास्ते में कई बार मिले। जितनी बार मिले, हमने तय किया कि दुनिया घूमनी है एक दिन। अब वह दिन कब आएगा यह तो पता नहीं लेकिन यह यकीन है कि एक दिन आएगा जरूर।


जब भी ऐसे घुमक्कड़ों को देखते हैं तो मन करता है कि अपन भी निकल लें। याद आता है कि कालेज के दिनों में कैसे निकल लिए थे, बिना कुछ आगा-पीछा सोचे। तीन महीने साइकिल चलाई। इलाहाबाद से कन्याकुमारी तक हो आये। 35 से भी पहले की कहानी है यह। लेकिन लगता है कल की बात है। मन करता है कि फिर निकल लें। पूरी दुनिया घूमने। लेकिन दुनिया के इतने लफड़े कि बस सोच कर ही रह जाते हैं। स्व. शायर वाली असी के शेर याद आते है:
मैं रोज मील के पत्थर शुमार (गिनती) करता था
मगर सफ़र न कभी एख़्तियार (शुरू)करता था।
तमाम काम अधूरे पड़े रहे मेरे
मैँ जिंदगी पे बहुत एतबार (भरोसा)करता था।
तमाम उम्र सच पूछिये तो मुझ पर
न खुल सका कि मैं क्या कारोबार करता था।
मुझे जबाब की मोहलत कभी न मिल पायी
सवाल मुझसे कोई बार-बार करता था।
लौटकर लेह में देखा कि वहां मोटरसाइकल किराये पर भी मिलती हैं। यात्रा के शौकीन लोग वहां से किराये पर लेकर टहलने निकल सकते हैं। आप का भी मन कर रहा हो तो बस निकल लो गुरु बाकी जो होगा देखा जाएगा।

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