Thursday, October 14, 2004

आधे हाथ की लोमडी,ढाई हाथ की पूंछ

मेरी पत्नी का नाम आशा नहीं है और एक पत्नीशुदा व्यक्ति होने के कारण मेरा 'आशा'से फिलहाल कोई संबंध नहीं है.पर इस देश का यारों क्या कहना - तमाम आशायें पालता है. आस्ट्रेलिया की क्रिकेट टीम से हम हारने की आशा लगाये बैठे थे सो पूरी हुयी.'अतिथि देवो भव'की स्वर्णिम परंपरा का निर्वाह किया हमने पहले टेस्ट मैच में.देवताओं को जीत समर्पित की.शानदार तरीके से हारे.दुनिया की सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजी के सहयोग से हमने शानदार हार हासिल की.

वो तो बुरा हो इन कम्बख्त, नामुराद पुछल्लों -पठान और हरभजन का जिनकी अनुभवहीन बल्लेबाजी की वजह से हम रिकार्ड अंतर की हार से वंचित रह गये.

हमने बीच में टोंका भी पठान-भज्जी को --अरे जब हारना ही है तो काहे नहीं रिकार्ड बना के हारते.पर कोई सुने तब ना.आजकल के बच्चे बुजर्गों की कहां सुनते हैं.

मैच खतम होने पर किसी ने सिद्दू से पूछा -पाजी,अपने टाप बल्लेबाज तो टापते रहे पर पुछल्लों ने उनकी गेंदबाजी को पटरा कर दिया .इस बारे में आपका क्या कहना है?पाजी बोले ---इसे कहते हैं आधे हाथ की लोमडी,ढाई हाथ की पूछ.शिखर धडाम -जमीन आसमान.जब मैंने सिद्दू को सुना तो मन किया कि देखें अपने शरीर के पांच गुना पूंछ वाली लोमडी कैसी होती है.

लोमडी मिलती है जंगल में .जंगल पर विनम्रता पूर्वक वीरप्पन,ददुआ और लकडी के ठेकेदारों आदि-इत्यादि का कब्जा है.उनसे पूछा तो पता चला कि सारी लोमडियां महाराष्ट्र चुनाव में लगीं हैं सो मिलना मुमकिन नही है.सरकार बनवाकर ही वापस आयेंगी.

मैं प्रत्यक्षत:लोमडी देख नहीं पाया.पर -'जहां न जाये रवि वहां जाये कवि'.अवस्थी को पता नहीं कहां से मेरी लोमड-दर्शन इच्छा का सुराग लग गया.ये -'जेन मित्र दुख होंहि दुखारी,तिनहिं बिलोकत पातक भारी' के झांसे में आ गये.कविता लिखना ये तभी छोङ चुके थे जब से अपना नाम लिखना सीख लिया.पातक से बचने के लिये इन्होंने चार लाइन कीकविता लिखी.कहा लोमडी हम बना दिये.पूछ खुद बनेगी.इस चार लाइन की लोमङ कविता में अभी तक पचास लाइन की टिप्पणी(पूंछ)जुङ चुकी है.शरीर के मुकाबले १२ गुना से ज्यादा लंबी पूंछ.

यह कुछ ऐसा ही है जैसे किसी सक्षम अधिकारी का मूल वेतन अंगद के पांव की तरह स्थिर रहे पर कमाई की पूंछ धूमकेतु की तरह बढती रहे.क्या करे इसमें उसका कोई बस तो है नहीं.सामाजिक नियमों-परंपराओं का पालन करने से खुद को व दूसरों को कैसे रोक दे?वो बेचारा असहाय अपनी पूंछ को बढते देखता है-आबादी की तरह.इतने त्याग के बावजूद लोग तमाम तरह तरह से तंग करते हैं.कभी-कभी पूछ नापकर फिजूल के सवाल करते हैं.शरीर- पूंछ की तुलना करते है.कहां जायेगी दुनिया.भले आदमी का कहीं गुजारा नहीं.

हम आंख मूंद के सबके चिट्ठे पढ रहे थे.अच्छे पाठक की तरह.एक दिन हमारे प्रवासी मित्र ने हमें टोंक दिया-का परेसानी है ?कुछ लिखते काहे नहीं?.अब हमारे तो काटो तो खून नहीं.सन्न.हमारी हालत पचास साला सर्वत्र उपेक्षिता उस षोडसी सी हो गयी जिससे अचानक कोई पूंछ ले-आप कैसी हैं?इस पर उसके गाल शर्म से लाल हों जायें और वह कहे-आप बडे वैसे हैं.कही ऐसे पूछा जाता है.पर वह ससुरा दोस्त ही क्या जो सिर्फ न पूछने वाली बातें ही न पूछे.कहा भी है:-

हमारे सहन में उस तरफ से पत्थर आये
जिस तरफ मेरे दोस्तों की महफिल थी.

पहले भी हमारा भला चाहने वाले साथी ने हमें सुझाया था.कहा-आपके कमेंट बढिया हैं.पर आप अपना ब्लाग बंद कर दें तथा प्रति शब्द पैसा लेकर कमेंट सर्विस(टिप्पणी सेवा)चालू करें.हम झांसे में आते-आते रह गये.ऐन मौके पर हमने सोचा-अभी तो तुलना करने को मेरा ब्लाग है.सो इनको मेरे कमेंट बेहतर लगते हैं.ब्लाग बंद कर देने पर बताया जायेगा-आप पाठक अच्छे हैं,बशर्ते कमेंट करना बंद कर दें.हम तो कहीं के न रहेंगे(अभी भी कहां है?).लिहाजा हम लालच में फंसते-फंसते बाल-बाल बचे.

टिप्पणी का भी शाष्त्र होता है.टिप्पणी करना मतलब टिपियाना--बिना टिप्पणी का चिट्ठा चिट्ठाकार के लिये जवान लडकी की तरह बोझ सा लगता है.टिप्पणी होने पर लगता है लडकी की मांग भर गयी.पोस्टिंग को सुहाग मिल गया.जिसको जितने अधिक सुहाग मिलते हैं वह उतना अधिक चर्चित होता है-दौपद्री और एलिजाबेथ टेलर की तरह.

टिप्पणी का आम नियम है.आंख मूंद के आपका ब्लाग पढा.वाह-वाह,आह-आह लिखा.जहां तारीफ हुई नहीं कि गया लेखक काम से.तारीफ ऐसा ब्रम्हास्त्र है जिसकी मार से आज तक कोई बचा नहीं.तारीफ के बाद भाग के अपना ब्लाग पूरा किया.झक मार के आयेगा वो आपका ब्लाग पढने.खुद भले आप कतरायें,अपना लिखा पढने में.

जबसे हमने अपने चिट्ठे में काउंटर(गणक)लगाया है,तबसे हम बहुत हिसाबी हो गये हैं.जैसे किसान अपनी लहलहाती खेती देखता है वैसे हम अपने काउंटर को निहारते है.दिन में कई बार.कितने लोगों ने हमारा ब्लाग देखा यह हम बार-बार देखते हैं .जाहिर है सबसे ज्रयादा बार हम ही देखते हैं इसे.हमारे गणक में १२ अक्टूबर का ग्राफ हमें एफिल टावर की तरह लगता है.ठेलहा काउंटर में ८ अक्टूबर के पहले की खाली जगह देख के लगता है कि यहीं कहीं 'ट्रिवन टावर'रहे होंगे जो आज जमींदोज हैं.हमारा अभी तक का एक दिन सर्वाधिक हिट का आंकङा ६२ का है.पहले यह ६० था.एक दिन रात १२ बजे के कुछ पहले हमने देखा कि हमारे ब्लाग में उस दिन ६० हिट हो चुकी थीं.मामला'टाई'पर था.ऐतिहासिक क्षण से हम मात्र एक हिट दूर थे.मन किया कि दन्न से दुबारा फिर देख लूं ब्लाग.रिकार्ड खुद ही तोड लूं.क्या किसी का भरोसा करूं.पर पता नहीं क्यों हम भावुक नैतिकता के शिकार हो गये.हम ठिठक गये.लगा कि यह गलत है.वैसे मुझे बाद में लगा कि यह एहसास कुछ ऐसा ही है जैसे करोडों का घपला करने वाले किसी खुर्राट पर अचानक नैतिकता हमला कर दे और वह घर जाने से पहले सोचे कि आफिस का पेन घर ले जाना गलत है और वह पेन निकालकर वापस ड्रार में रख दे तथा सोंचे कि मैं पतन से बच गया.

हम परेशान थे कि अचानक मेरे एक मित्र का नेट पर अवतार हुआ.वो बोला -हेलो.हम बोले -पहले हमारा ब्लाग देखो तब बात करते हैं.वो बोला -ब्लाग ? ये क्या होता है? हम बोले ये सब बाद में पूंछना पहले 'फुरसतिया'ब्लाग देखो.१० मिनट हम इन्तजार किये.हिट ६० पर अटकी थी.हमारा धैर्य जवाब दे रहा था.हम 'बजर'पर 'बजर'मार रहे थे उधर से कोई जवाब नहीं.हम मोबाइल पर फोन किये उसको.पूछा -देखा?वो बोला -कहीं दिखा ही नहीं.'गूगल'सर्च में भी कोई रिजल्ट नहीं मिला.हमने सोचा-दुनिया का सारा अज्ञान लगता है मेरे मित्र के संरक्षण में है.पर वो लिक्खाङ भी क्या जो अपना लिखा दूसरे को पङा न दे?हमने अंधे को सङक पार कराने वाले अंदाज में उसको अपना ब्लाग देखने पर मजबूर किया.वो देख के बोला-इसमें लिखा क्या है? कुछ दिख नहीं रहा है.सिर्फ लाइनें हैंं.हम बोले- कोई बात नहीं छोङ दो. फिर देखना.हमारा काम हो चुका था.हमारे '६२'हिट हो चुके थे.पुराना रिकार्ड टूट चुका था.नया बन चुका था.मुझे नहीं लगता कि राजा जनक को 'शिव-धनुष'टूटने पर इतनी खुशी हुयी होगी जितनी मुझे अपने ब्लाग के हिट का पुराना रिकर्ाड टूटने पर हुयी.मुझे खुशी मिली इतनी कि मन में न समाये.

पर जब इन्दर बोले-कुछ लिखते काहे नहीं तो हम सही में अचकचा गये.भावुक हो गये.जबसे जितेन्दर भइया ने बताया कि लोग उनसे मेल लिख के तमाम ऐसी-वैसी बातें भी पूंछते हैं तबसे हमे बडी शरम आ रही थी कि हाय हमसे कोई कुछ पूंछता क्यों नहीं?मेल लिखकर अलग से पूछता तो दूर यहां खुले में भि कोई कुछ नहीं पूछता नहीं.पर जिस दिन से हमसे पूंछा गया-लिखते क्यों नहीं?तब से हमें लगा कि दुनिया में कदरदानों की कमी नहीं है.हमारा सारा हीन भाव गायब हो गया.अवस्थी ,आओगे अबकी तो तुमको चाय पिलायेंगे बनाके.

पिछले दिनों कईप्रवासियओं द्दारा प्रवासियओं के बारे में काफी कुछ लिखा गया.लिटमस टेस्ट भी आ गया .सबके फटे में टांग अङाने की पवित्र परंपरा का निर्वाह करने से मैं अपने को रोक नहीं पा रहा हूं.लिहाजा हम भी कुछ हालते-बयां करेंगे.

जब परदेश जाता है पहली बार प्रवासी तो कहता है:-

उस शहर में कोई बेल ऐसी नहीं
जो देहाती परिंदे के पर बांध ले,
जंगली आम की जानलेवा महक
जब बुलायेगी वापस चला आऊंगा.

घर वाले भी कहते है:-

चाहे जितने दूर रहो तुम
कितने ही मजबूर रहो तुम,
जब मेरी आवाज सुनोगे-
सब कुछ छोङ चले आओगे.

कुछ दिन-साल रहने के बाद की स्थिति स्व.रमानाथ अवस्थी के बताते हैं:-

आज आप हैं हम हैं लेकिन
कल कहां होंगे कह नहीं सकते.
जिन्दगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते.

समय की नदी में लोग मन माफिक तैर सकें यही कामना है.

मेरी पसंद

अजब सी छटपटाहट,
घुटन,कसकन ,है असह पीङा
समझ लो
साधना की अवधि पूरी है

अरे घबरा न मन
चुपचाप सहता जा
सृजन में दर्द का होना जरूरी है.

-कन्हैयालाल नंदन

6 comments:

  1. बोले तो ससुरऊ यही! इसी दिन के लिये कहे थे कि लिखो!

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  2. वाह भाई, मजा आ गया...
    सौ सुनार की एक लुहार की....
    चलो भाई, हाथ तो फिर से खुला....अब लगातार बार बार, ब्लाग लिखें, और हम परिजनो पर कृपा रखें.

    जहाँ चार यार मिल जाये वही रात हो गुलजार



    जीतेन्द्र चौधरी

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  3. एक इन्द्र दूसरे जीतेनद्र.दोनों के ब्रम्हास्त्र हम अकेले कैसे झेल पायेंगे?है कोई बचाने वाला हमें इनसे दिग्गजों से?
    लगता है वीर्प्पन जी हमारे ब्लाग में अपना नाम देखने को जिन्दा थे.लोगों को उठाते
    थे, कल खुद उठ गये.
    जैसे इनके दिन बहुरे ,वैसे बाकियों के भी बहुरे.

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  4. हिट काउँटर की गिरफ्त में सभी छपास पीड़ित शामिल होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है| अभी तक मेरे पन्ने पर भी दिन में ज्यादा आमदरफ्त नहीं रहती थी पर लिटमस टेस्ट रिकार्ड तोड़क साबित हुआ| ताज्जुब है ज्यादातर लोगो ने फोन पर ही प्रतिक्रिया दी कि हमें तो आपके ज्यादातर विकल्प पसंद नहीं आये| अब या तो मैं परफेक्ट एनआरआई बन गया हूँ या ज्यादातर लोग ढ़पोरशंखी है| खैर भाई साहब आपने और जीतेंद्र भाई ने हिंदी चिठ्ठा जगत के शांत तालाब में पत्थर मारकर जो हलचल मचायी तो मजा ही आ गया|

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  5. पेज की हिट रेट बढाने का एक गुरूमन्त्र

    आज भी इन्टरनेट पर सबसे ज्यादा ढूंढा जाने वाला शब्द है "SEX"
    मैने एक ट्रायल मारा था, http://o3.indiatimes.com पर एक छोटा सा ब्लाग बनाया, उसमे क्या लिखा आप खुद पढ लो.

    http://o3.indiatimes.com/hotblog_naya

    भाईसाहब आप विश्वास नही करोगे....दो दिन मे एवरेज पेज हिट्स साठ से बढकर २४० हो गयी...... लेकिन मेरा मानना है कि ब्लाग तो मन की भड़ास है...पेज हिट जाये भाड़ मे.... ये क्षणिक पेज हिट्स मिलने मे किसी का कोई भला नही होता.

    इसलिये लिखते रहो और मस्त रहो....

    रही बात कमेन्टस की.... अभी भी लोग आनलाइन कमेन्ट्स लिखने मे जाने क्यो घबराते है, लोग फोन करेंगे...इमेल करेंगे.... लेकिन कमेंट्स मे नही लिखेंगे. चलो धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा.

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  6. अतुल भाई,ये बडा उल्टा चलन है वहां अमेरिका में.लोग फोन पर नापसंदगी जाहिर करते हैं.अपने यहां तो फोन पर तारीफ और पीठ पीछे बुराई का रिवाज है.फिर वहां पीठ पीछे क्या करते हैं?बहरहाल बधाई खूबसूरत टेस्ट के लिये और खुबसूरत छायाचित्रों के लिये.

    जितेन्दर भाई,हम तो बिना आपके कहे ही यह मानते हैं कि यौन विषय की सबसे ज्यादा मांग है.लंदन की एक वेश्या का चिट्ठा विश्व में सबसे ज्यादा पढा जाने वाला चिट्ठा है.पर बंधुवर आप इस झांसे में कैसे आ गये कि हम ज्यादा हिट्स के मंत्र की खोज में है.बङे प्यारे हैं आप.ई छोटा ट्रायल कहीं बङा करने का तो विचार नहीं है?सोच लो मातायें-बहनें भी पढेंगी इसे.

    आनलाइन कमेंट्स का तो अइसा है कि अभी ब्लागिंग शरीफ लोगों के हाथ में है.लोग औपचारिक तारीफ भले करें,अनौपचारिक,स्वत:स्फूर्त टिप्पणी लिखने में संकोच करते हैं.अवस्थी कहते हैं --सारी समस्या लिखने के बाद कापी करने और पेस्ट करने की है.

    हम तो शुरुयै से मस्तै हैं.

    बकिया एक हफ्ता नहीं हुआ हमारा 'एफिल टावर' नीचे हो गया.१९ अक्टूबर आगे हो गया.

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