पता चला कि मानसून आज केरल पहुंच गया।


मैं सोच रहा हूं कि मानसून अगर आज केरल पहुंचा तो कल दिल्ली और बंगलौर में सड़कें गीली कैसी हो हुईं। वहां कैसे झमाझम हुआ दो दिन पहले ही। क्या मानसून भी उस खुफ़िया रिपोर्ट की तरह हो गया जिसके प्रकाशन के पहले ही उसकी प्रतियां अखबार में छप जाती हैं। मानसून का पर्चा आउट कैसे हुआ? क्या यहां भी मामला फ़िक्सिंग का है? केरल में बरसने से पहले ही दिल्ली/बंगलौर में बरस जाना तो ऐसा ही हुआ न जैसे कि सटोरियों को मैच के रिजल्ट पहले से ही पता हों।


जैसे पायलट लोग हवाई जहाज को आटो मोड में डालकर ऊंघते हैं वैसे ही मानसून भी बादलों को आटो बारिश मोड में डालकर अंगड़ाई लेते हुये टी.वी. देख रहा होगा। वैसे देखा जाये तो देश भी आटो मोड में चल रहा है। देश चलाने वाले ऊंघते हुये देश सेवा में जुटे हुये हैं।


मानसून का कोई मलयाली दोस्त उससे कह रहा होगा -तेरे आते ही राजीव शुक्ला चले गये। दो दिन और पहले आ जाता तो अब तक श्रीनिवासन का सीमेंट भी उखड़ जाता।


श्रीनिवासन के बहाने आई.पी.एल. पर हुई कल की बहस याद आई। कोई भाई साहब कह रहे थे कि अगर इससे गड़बड़ियां खतम हो जायें तो इससे क्रिकेट का बड़ा भला होगा।


मुझे लगा जैसे वो कहना चाह रहे हों कि मकान की नींव हटा दो तो मकान मजबूत हो जायेगा।


आई.पी.एल. की तो बुनियाद ही गड़बड़ है। दो नंबर का पैसा। गिरोहों की भागेदारी। सट्टेबाजी। फ़टाफ़ट क्रिकेट के बहाने फ़टाफ़ट पैसा। बेपनाह पैसे का ही जलवा है। अमेरिका में रेड इंडियन को बेदखल करके अंग्रेजों ने वहां पर कब्जा कर लिया था। ऐसे ही क्रिकेट में मनी माफ़ियाओं और धन्ना सेठों ने खिलाड़ियों को बेदखल करके अपना कब्जा कर रखा है। भूतपूर्व बड़े खिलाड़ी खाली माइक थामे कमेंट्री करने के काम में लगे हुये हैं। पेंशनर को रोजगार मिला।


इसमें खिलाड़ी खरीदे जाते हैं। पैसे का ही जलवा है कि बिके हुये खिलाड़ी अपने देश की टीम से खेलने की बजाय आई.पी.एल. में खेलने को तरजीह देते हैं। जो व्यवस्था खिलाड़ियों को इतना बौरा दे वहां थोड़े-बहुत रन देकर, तौलिया, हाथ कंगन हिलाते हुये अगर कुछ और पैसे मिलते हैं तो खिलाड़ी उसको गलत कैसे समझ सकते हैं। उनको तो यह भी कूल गेम लगता होगा। धरे गये बेचारे गफ़लत में।


बहरहाल आई.पी.एल. में गड़बड़ियां दूर होने पर यह देश के क्रिकेट के लिये अच्छा होने की बात ऐसी ही है जैसे कोई कहे कि अगर भ्रष्टाचार की गड़बड़ियां दूर हो जायें तो यह देश के भले के लिये होगा। भ्रष्टाचार की खूबी गिनाते हुये कोई कहे कि इससे काम तेजी से होता है,धोखा नहीं होता, काम के होने की गारंटी पक्की होती है, काम न होने पर पैसे वापस हो जाते हैं, काबिलियत का झमेला नहीं होता, रेट फ़िक्स हैं। आदि-आदि वगैरह वगैरह।


देखिये कहां अच्छी-भली मानसून से बात शुरु की थी लेकिन पहुंच गये करप्शन पर। करप्शन भी बड़ा बवाली है न। जहां देखो घुस जाता है। न जगह देखता है न मौका। और कहने लगता है-


अब तो बाजार में बिकने को आ गये ’कंबरी’,

अपनी कीमत को और हम कम क्या करें?