Tuesday, July 08, 2014

जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें देर तक साथ बह नहीं सकते


आज जल्दी तैयार हो गये सुबह। अम्मा की अंतिम विदाई के लिए। अम्मा होती तो पक्का चहकते हुए कहतीं-"बाबू जी आज बड़ी जल्दी चेकोलाईट हो गये।आज सूरज कईसी उगा है।"

घर के बाहर सूरज तो वैसे ही उगा है। लेकिन यह कहने वाली आवाज विदा हो गयी।सबेरे से रमानाथ अवस्थी की पंक्तियाँ याद आ रही हैं:

आज आप हैं हम हैं लेकिन
कल कहाँ होंगे कह नहीं सकते,
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।


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