Thursday, June 11, 2015

कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप

सुबह जब निकले तो सूरज भाई दिखे। गुडमार्निंग करते हुये देखा कि सूरज के दोनों तरफ़ बादल छाये थे। मानों उसकी आंखें बंद कर रखी हों और उसको बता रहे हों रोशनी इधर भेजो, उधर भेजो। सूरज को धृतराष्ट्र जैसा बना दिया हो। लेकिन सूरज देर तक बादलों के कब्जे में न रहा। अंधेरे को तिड़ी-बिडी करके आसमान पर चमकने लगा। पूरी कायनात को अपनी रोशनी से चमकाने लगा।

आज फ़िर वह बच्ची मिली जिससे कल मिले थे। आज सड़क के पार से उसने भी गुडमार्निंग भी की। अब उसका इंतजार रहता है। कभी और बातें होंगी।

व्हीकल मोड़ से आज खमरिया की तरफ़ मुड लिये। गोकुलपुर के एक स्टाप पर दो महिलायें बैठी बतिया रहीं थीं। फ़ोटो खैंची तो देखकर बोली बहुत बढिया है। फ़िर एक जन बोलीं चाय पिला दो। पास में कोई चाय की दुकान नहीं थी और हमारे पास फ़ुटकर पैसे नहीं थे सौ का नोट था। जो देते सो यही बताकर चल दिये आगे। यह सोचा कि कल से फ़ुटकर पैसे जरूर रखा करेंगे। कोई कहे तो चाय के पैसे तो दे ही सकें।

रांझी में थाने के पास चाय की दुकान पर चाय पी। दुकान मालिक वाल्मीकि प्रसाद मिश्र से बतियाये। 52 साल से दुकान लगा रहे हैं। बचपन में आये थे रीवां से जब 10-12 साल के थे। पिता बचपन में नहीं रहे। दो भाई हैं। पिता तब नहीं रहे जब मिसिर जी जब तीन साल के थे और भाई एक महीने का तब पिता नहीं रहे।  किसी रिश्तेदार के साथ आये थे। अब 70 साल की उमर है। लेकिन चुस्त, दुरुस्त, चैतन्य।

बताया --"जब आये थे तो यहां सब जंगल था। यहां बिल्डिंगे बनी हैं वहां नाली में सुअर लोटते थे। सामने बीही का जंगल था। खमरिया भर था यहां। ये सब तो धन्ना सेठों की दुकानें हैं वो हमारे सामने बनीं। व्हीकल तो अभी बनी सन 73 में। थाना और स्टेट बैंक भी उसई के बाद बनीं।"

व्हीकल फ़ैक्ट्री बने 42 साल हो गये। उसको मिसिर बताये -’व्हीकल तो अभी बनीं।’ ऐसे ही कोई तारा अरबों वर्ष पुरानी पृथ्वी को देखकर कहता होगा -"जे छोकरिया तो अभै पैदा हुई कल हमारे सामने। देखो कित्ती खबसूरत है मोड़ी।"

मिसिर जी दुकान भले लगाते हैं यहां पर  20 एकड़ जमीन है रीवां में। अभी प्लाट खरीदा 20 लाख का। रहने को अपना मकान है जबलपुर में। एक बेटा है उसके तीन बच्चे हैं। लेकिन बेटा खुद कुछ ज्यादा करता नहीं। कभी-कभी एकाध घंटे दुकान पर बैठता है। हमने कहा -जो बाप का प्यार खुद नहीं मिला वो लड़के को तसल्ली से दे रहे हो।

फ़ोटो खैंचा तो देखकर खुश हुये। साथ का बच्चा बोला- मस्त आई है।

आगे खमरिया की तरफ़ निकले तो एक भाई जी मिले। साइकिल पर ढोलक लादे लिये जा रहे थे। बनाते हैं और खुद बेचते हैं। गांव-गांव जाते हैं। एक ढोलक 400 रुपये करीब की। आज कुंडम के लिये निकले थे। कुंडम मतलब 50 किमी। जब मिले तो 6 बजे थे। बोले - आठ बजे तक तक पहुंच जायेंगे।

साथ चलते हुये बतियाते रहे हम। खमरिया इस्टेट में सुबह डीएससी के जवानों को दौड़ते देखकर पूछा भाईजी ने- ये लोग दौड़ते क्यों हैं? हमने बताया -सेहत बनाते के लिये। दिन भर  मेहनत नहीं कर पाते तो सुबह-शाम पसीना बहाते हैं। दौड़ते-धूपते हैं।

ये लोग दौड़ते क्यों हैं? इस सवाल से मुझे श्रीकांत वर्मा की हस्तक्षेप कविता की  पंक्तियां याद आ गयीं:

कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप -
वैसे तो मगधनिवासियो
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से -
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुजरता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है -
मनुष्य क्यों मरता है?


बोले- हमारी तो जिन्दगी ही दौड़ धूप में गुजर गयी।  27 साल की उमर के आदमी के मुंह से जिन्दगी गुजर गयी सुनकर दुख हुआ। हमने कहा- हौसला रखो। बोले -फ़ौसले के सहारे ही तो जिन्दगी चल रही है।

आगे फ़िर चाय की दुकान पर हमने साथ चाय पी। बात की। पता चला चार बच्चे हैं हिकमत अली के। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के गांव मिर्जापुर के रहने वाले हैं। पिता ने यही काम सिखाया उसी से गुजर-बसर कर रहे हैं। चार बच्चे हैं। एक बच्चा बीमार रहा। उसको पेशाब सही जगह से नहीं होती थी। प्राइवेट में इलाज कराया। दस हजार लग गये। अब कुछ ठीक है। लेकिन अभी फ़िर दो टांके खुल गये हैं। डाक्टर बोला है कि ले आओ देख लेंगे।

पत्नी भी बीमार रहती है। खाते ही लेटरीन होने की बीमारी है। चार बच्चे हैं। सब सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। हमने कहा- 27 साल की उमर में चार बच्चे? आपरेशन काहे नहीं करवाते? बोले जल्दी शादी हो गयी थी। अब आपरेशन करा दिया है बीबी का।

ढोलक पर बकरे या बकरी का चमड़ा चढ़ता है। बकरी की खाली मोटी होती है। लकड़ी का ढांचा बाहर से आता है। बाकी बनाने का काम खुद करते हैं।

चाय वाले के पास दूध नहीं था सो काली चाय ही पी।  नाश्ता कराने का मन था हिकमत अली को लेकिन कुछ था नहीं दुकान पर। दस रुपये दिये कि आगे नाश्ता कर लेना। मुफ़्तिया माताजी को फ़ुटकर न होने के कारण चाय के पैसे न दे पाने का अफ़सोस खत्म हो गया।

लौटते में खमरिया के जंगल हरे-भरे पेड़ हिलते-डुलते हुये नमस्ते करते मिले। एक पेड़ अपनी डाल ऐसे जमीन से घुमाकर  सटाये खड़े थे मानो अपनी मसल्स दिखा रहे हों।

बजरंग नगर की एक दुकान के बाहर एक कुत्ता फ़र्श पर गंदगी कर गया था। दुकान वाला एक कांच के टुकड़े को चम्मच की तरह इस्तेमाल करते हुये सावधानी से दुकान के सामने की गन्दी को बीच सड़क पर डाल रहा था। दुकान साफ़ कर रहा था। सड़क गंदी कर रहा था।

सड़क किनारे नलों में पानी आ रहा था। 6 से साढे सात तक सुबह आता है पानी और शाम को आधा घंटे। जगह-जगह प्लास्टिक की बाल्टियों , डब्बों में लोग नलों के नीचे पानी भरने में भरने में लगे हुये थे।

अले बाप ले। आथ बद गये। थुबह हो गयी।  तलें फ़ैक्तली के लिये तैयाल होना है।

आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो। हौसला बना रहे।

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