Tuesday, June 16, 2015

इज्जत देने से इज्जत मिलती है


वाल्मीकि प्रसाद मिश्र अपनी चाय की दूकान के बाहर
आज सुबह आज 4 बजे ही जग गये। लेकिन उठे साढे पांच पर। मुंह धोकर निकले साइकिलिंग के लिये। कमरे से बाहर निकलकर बरामदे से सामने सड़क पर देखा तो रोहिनी (जो रोज सबेरे सुबह की सैर पर दिखती/मिलती हैं) अपनी सुबह की सैर से वापस लौट रही थी। हमने हाथ हिलाया तो उसने भी जबाब दिया। फ़िर मेस से निकलकर आगे केवी स्कूल से शोभापुर रेलवे क्रासिंग तक धीरे-धीरे साइकिल चलाते हुये उससे बात करते गये।
पिछले तीन दिन से रोहिनी की करीब दो साल की बच्ची बीमार थी। इसलिये सुबह की सैर पर नहीं आई थी। अब ठीक है। सैर के समय बच्ची सोती है। जग जाती है तो पति संभालते हैं। खुद की रिसर्च और पति की प्रैक्टिस के चलते बच्ची को बच्चों के क्रच में रखना होता है। रिसर्च की जो संदर्भ सामग्री मिली है रोहिनी को उसमें सबमें एक दूसरे की ’कट-कापी-पेस्ट’ है। भारत में रिसर्च ऐसे ही होती है।

रोहिनी का फ़ेसबुक पर खाता है। मेरी कुछ नयी पोस्टें पढीं भी हैं। पोस्टों की तारीफ़ करते हुये उसने सलाह भी दी कि मैं अपनी साइकिल पर ’फ़ुरसतिया’ का बोर्ड लगाकर चलूं।

शोभापुर रेलवे क्रासिंग के आगे रोहिनी अपने घर की तरफ़ मुड गयीं। मैं आगे चाय की दुकान की तरफ़ गया।दूध वाला चाय की दुकान में दूध देकर रास्ते में आता मिला। ’रमेश’ वगैरह जा चुके थे। चाय की दुकान की पास नाली में खूब सारी पालीथीन अपने होने की कहानी कह रही थीं। दुकान वाले से पूछा कि यहां सफ़ाई नहीं होती क्या तो उसने कहा- होती है। लेकिन यह इंडट्रियल एरिया है। फ़िर गंदगी हो जाती है।

लौटते हुये रांझी की तरफ़ मुड़ गये। मिसराजी से मिलने का मन था। रास्ते में एक पान की दुकान का नाम लिखा था- ’अंजू पान पेलिस’। पेंटर पक्का कम उमर में स्कूल से बाहर आकर दुनिया के स्कूल में दाखिल हो गया होगा।’पैलेस’ और ’पेलिस’ उसके लिये बराबर रहा होगा।

एक चाय-नास्ते की दुकान पर पोहा बनाने के लिये चिउड़ा एक बांस की टोकरी में सूख रहा था। कुछ देर पहले गीला किया गया होगा। पोहा बनेगा अब कुछ देर में।

रांझी में मिसराजी से मुलाकात हुई। उनको बताया कि उनके बारे में फ़ेसबुक पर लिखा है। खुश हुये मिसरा जी। चाय के पैसे लेने से मना कर दिये। लेकिन हम जबरियन दिये। इस बीच पीछे थाने से एक सिपाही ने चाय ली और मिसरा जी से बतियाया। हमने पूछा- थाने वाले पैसा देते हैं। मिसराजी ने कहा- हां सब पैसा देते हैं। बाकी पांचों उंगरी बराबर नहीं होती।

हमने पूछा -आपकी जिन्दगी संघर्षपूर्ण रही । सबसे कठिन समय कब गुजरा?

मिसरा जी ने बताया - हमने बचपन , जवानी और बुढ़ापा कुछ नहीं जाना। जब से होश संभाला तब से संघर्ष ही कर रहे हैं। पिता बचपन में गुजर गये। 14-15 साल के थे तब रीवां से जबलपुर आये। तब से संघर्ष करते हुये इतने साल हो गये। अब भगवान की दया से सब कुछ है। चार बच्चे हैं ( एक खुद का तीन छोटे भाई के)। रीवां और जबलपुर में मकान, जमीन , जायदाद है। संयुक्त परिवार है। भगवान की दया से सब आराम है।

अपने बारे में बताते हुये मिसराजी बोले- हमने आजतक किसी को ’बे’ नहीं कहा। न आजतक हमको किसी ने अबे-तबे कहा। इज्जत देने से इज्जत मिलती है।

अख़बार बांटने के पहले अपनी कह सुन लें
 मिसराजी पांच तक पढे हैं लेकिन जिन्दगी के स्कूल ने उनको जो अभिव्यक्ति झमता दी है वह बड़े-बड़े पढे-लिखों तक को नसीब नहीं होती। मैंने महसूस किया है कि जिन्दगी में संघर्ष करके आगे बढे लोगों की अभिव्यक्ति क्षमता नदी की धार के साथ बहते पत्थरों की तरह तराशी हुई होती है। खूबसूरत , आकर्षक, मोहक। अपनी बात सलीके और सटीक तरीके से कहने का हुनर जिन्दगी की पाठशाला सिखा देती है। यह वह हुनर होता है जिसे पाने के लिये नन्दन जी जैसा रचनाकार तक कहता है:

मैं कोई भी बात कह लूं कभी करीने से
खुदारा मेरे मुकद्दर में वो हुनर कर दे।


बातचीत करते हुये मिसरा जी ने एक चाय अपनी तरफ़ से पिलायी। इस बार जबरदस्ती नहीं चली मेरी। पैसे नहीं लिये। हम उनकी ’लक्स कोजी’ वाली बनियाइन सहित फ़ोटो ली। नमस्ते की और चले आये। फ़िर मुलाकत के लिये आने की बात कहकर।

आगे महेश अपने काउंटर पर खड़े दूध बेच रहे थे। मिले तो नमस्ते किया और हाथ मिला। बिटिया के हाल-चाल पूछा। बोले -चाय पीकर आये हैं अब दूध भी पी लीजिये। हम हंसते हुये आगे बढ लिये।

रास्ते में एक अखबार वाला साइकिल पर अखबार धरे अपने दोस्त से बतिया रहा था। जिन घरों में वो अखबार देता है वे शायद खबरों के इंतजार में हों। खबरें जिनमें प्रमुख हैं:

1.मध्यप्रदेश पीएमटी की परीक्षा निरस्त
2. ललित मोदी की ’मानवीय आधार पर’ सहायता पर हंगामा

इन मियमित खबरों से अलग भास्कर की एक खबर है- एक नेत्रहीन महिला आई एफ़ एस अफ़सर बनी।

खबर की बात चली तो कल से ’आस्तीन का सांप’ का जुमला भी मीडिया में चल रहा है। यह भी याद आया कि आज सैर के दौरान एक बच्चा सांप और एक बड़ा सांप सड़क पर मरे पड़े दिखे। किसी ने उनको कुचल दिया था। ये सड़क के सांप थे। कुचल गये। आस्तीन के सांप के क्या हाल हैं कह नहीं सकते। वे शायद समझदार सांप होते हैं। जैसा इरफ़ान झांस्वी ने लिखा है:

संपेरे बांबियों में बीन लिये बैठे हैं
सांप चालाक हैं दुरबीन लिये बैठे हैं।


सुबह-सुबह कहां-कहां टहला दिये आपको। चलिये अब मजा कीजिये।

आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो।

फ़ेसबुक की टिप्पणियां


  • Gautam Kumar सही सलाह है सर जी:- सायकिल पर फुरसतिया का बोर्ड जरूर लगाएं ।
  • Anchal Chaudhary Aipmt ki pariksha bhi nirast kar di gayi
    Har exam me dhandhali ho rai h. . .
  • Shahnawaz Khan आप घूमो हम घूमे....आपकी सेहत ताज़ा रहे
  • Akhilesh Mishra सुप्रभात सर। आज का वृत्तांत भी बहुत बढ़िया है। वैसे वो चाय की दूकान के पास भरी नालियों में जो पॉलीथिन है उसके जिम्मेदार भी तो वही हैं। खुद उन्हें भी सोचना चाहिए।
  • Nishant Yadav अनूप शुक्ल साहब आपके लेखन में गजब का आकर्षण है इस पोस्ट को पढ़ने बाद चहरे पर मुस्कराहट आ गई और मन भी हल्का हो गया धन्यवाद ऐसे ही लिखते रहिये
  • Kamlesh Bahadur Singh ........Aaj Humne Seekha....."हमने आजतक किसी को ’बे’ नहीं कहा। न आजतक हमको किसी ने अबे-तबे कहा। इज्जत देने से इज्जत मिलती है"
  • Aashish Sharma आस्तीन का सांप * * *हा हा
  • Nidhi Dixit ab jabalpur shahar apna sa lgta h shahar se pahchan krane k liye dhanywaad
  • Ram Singh अनूप शुक्ल जी आज अलसाए से उठे तो साईकिलिंग भी सुस्ताने पर उतारू हो चली । मन की अवस्था लेखन में झलकेगी ही , बनावटी उमंग की कोशिश भी नहीं की गई ।टहलने वाली रोहिनी के साथ साईकिल का घिसटना पाठकों के हित में ही रहा कि शोभापुर तक ' फुरसतिया ' की प्रसिद्धि क...और देखें
  • Vishal KS Kundu Halat-ae-dil kuch aise huye hain...
    Aapka likha na padhein to din poora sa nahi hota...
  • Shailendra Kumar Jha जिन्दगी में संघर्ष करके आगे बढे लोगों की अभिव्यक्ति क्षमता नदी की धार के साथ बहते पत्थरों की तरह तराशी हुई होती है। खूबसूरत , आकर्षक, मोहक। अपनी बात सलीके और सटीक तरीके से कहने का हुनर जिन्दगी की पाठशाला सिखा देती है।...............sachhi me............ekdummai se man me utar aate hain aap...............pranam.
  • Chandra Prakash Pandey जिंदगी खूब चली खूब चली मीलों तक।
    छाँव चली चार कदम धुप चली मीलों तक।।
  • Supriya Singh Suparbhat Anup bhaiya.kya bolu aapki abhivyekti ke liye shabd nhi hai.
  • Anamika Vajpai बहुत दिनों के बाद आज आपकी पोस्ट पूरी पढ़ पायी, ज़िन्दगी की पाठशाला सही सिखाती है, सबकुछ सिखाती है, कौन क्या सीख पाता है ये उसपर है। एक शेर याद आ गया, "देनेवाले ने कुछ कमी न की, किसको क्या मिला ये मुक़द्दर की बात है"।
  • Ashok Agrawal इज्जत देने से इज्जत मिलती है , अच्छी सोच है । पर आज तो हालत यह हो गई है कि इज्जत करो तो सामने वाला सोचता है कि दिखावा कर रहा है या कुछ काम निकालना होगा । न्यूसेंस वैल्यू का जमाना है , मिसराजी जैसे किस्से कहानी में रह गए हैं ।
  • Pandey Rekha wah bhut accha likha , pareshaniya to sabke amne samne ghomti rahti hai . kuch log likh kar ya dosoro k samne kah kar apna man halka kar lete hai bhut log apne man me rakh lete h , duniya me aye ho , yeh sab to chalta rahta hai.post padkar bhut accha lagta hai
  • Gyan Dutt Pandey अच्छा है यह 'फुरसतिया पेलिस'।
  • Rajendra Kumar Soni · 5 पारस्परिक मित्र
    Bahut khoob likha hai Shukl ji, subah ki sair ke sath ek jindgi ka bakhan , bahut badiya
  • RB Prasad मन को शीतल करता लेख .
  • Hirendra Kumar Agnihotri इरफ़ान झांसवी का शेर बहुत पसंद आया " संपेरे बांबियों में बीन लिए बैठे हैं, सांप चालाक हैं दूरबीन लिए बैठे हैं "
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