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नयी-नयी फ्राक आई है दीपा की |
आज सुबह काफी दिन बाद साईकल स्टार्ट हुई। सुबह सात बजे। मेस के बाहर ही
देखा एक महिला बगल में कुछ लकड़ियाँ दबाये चली जा रही थी। आगे मोड़ पर
तीन-चार महिलाएं खूब सारी लकड़ियाँ इकठ्ठा किये घर वापस लौटने की तैयारी में
दिखीं।
और आगे कुछ महिलाएं तालाब से नहाकर वापस लौट रहीं थीं। गीले कपड़े साथ में लिए। टोकरी जैसी चीज में धरे लपकती चली जा रहीं थीं।
शोभापुर क्रासिंग के पास का शराब का ठेका बन्द था लेकिन सप्लाई चालू थी। लोग जाली के अंदर हाथ डालकर जैसे टिकट खरीदते हैं वैसे दारू खरीद ले रहे थे और खड़े-खड़े पी रहे थे। जिन राज्यों में शराब बंद हैं वहां भी क्या पता इसी तरह बिकती हो शराब।
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सीधे खड़े होकर भी फोटो अच्छी आती है |
पत्नी और बेटियों ने बताया कि पीने के लिए मना करते हैं वो लोग पर ये मानता नहीं। लेकिन यह भी बताया कि पीकर मारपीट नहीं करता। हमने उनसे कहा कि तुम लोग बहुमत में हो। घर में पीने मत दिया करो। उसने भी वादा किया कि छोड़ देंगे अब पक्का।ऐसे वादे पहले भी कर चुका है वह। लेकिन एक बार और सही।
अच्छी बात यह है कि वह अपनी कमियों के बारे में झूठ नहीं बोलता। जो गलती करता है खुद सच बता देता है। बस यही है कि वादे पर अमल नहीं करता। लेकिन राजनीतिक पार्टियों से तो बेहतर है व्यवहार। वे वादे भी नहीं पूरे करती, झूठ ऊपर से बोलती हैं।
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जरा इस्टाइल भी हो जाए |
दीपा नई फ्राक पहनती है। सर फंस जाता है। पीछे की चेन खुली नहीं है। हमसे कहती है खोलने को। हम चेन खोलकर फ्राक पहनाते हैं। हम कहते हैं -'हीरोइन लग रही हो।' वह हंसती है। कई तरह से फोटो खिंचवाती है। हर फोटो को बड़ा करके देखती है। कहती है -'ये अच्छी है।'
हम बताते हैं कि हम आज कानपुर चले जायेंगे। ट्रांसफर पर। मेरा तबादला कानपुर हो गया है। वह मेरा फोन नंबर नोट करती है।
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एक पोज यह भी |
तालाब की तरफ गए। सूरज भाई गर्मी की तलवार सरीखी चमका रहे थे। पानी शांत था। लहरें थमी हुई थीं। हर तरफ रोशनी का साम्राज्य पसरा हुआ था। हमने सूरज भाई से कहा कि अब कानपुर में मुलाकात होगी। सूरज भाई मुस्कराये और बोले-' जरूर होगी मुलाकत कानपुर में। पर कभी-कभी यहाँ भी आते रहना।'
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गर्मी की तलवार चला रहे हैं सूरज भाई |
बातचीत में उसने मसाला की तोहमत कानपुर वालों पर मतलब बहाने से हमारे ऊपर भी डाल दी। बोला -'वहीँ कानपुर में ही तो बनता है।आप जा भी रहे हैं कानपुर।'
बताओ शहर के लोगों के चलते क्या-क्या सुनना पड़ता है।
यह जबलपुर से सुबह की सैर की इस दौर की आखिरी पोस्ट। आज शाम को यहां से चलकर सुबह कानपुर पहुंचेगे। अब जब तक कानपुर में रहेंगे वहां के किस्से सुनाएंगे। कानपुर फिर से जाना बहुत अच्छा लग रह है। मन कहने का हो रहा है- झाड़े रहो कट्टरगंज। :)
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