Wednesday, May 01, 2019

मई दिवस की सुबह

सुबह सड़क चमकदार दिखी। धूप खूब खिली-खिली। गर्म होने की तैयारी करती सी।

बच्चे स्कूल की तरफ बढ़ रहे। कुछ के माता-पिता-भाई छोड़ने आये हैं। एक बच्ची स्कूटी पर जाती दिखी। सामने कोई आ गया। बच्ची ने पहले स्कूटी के ब्रेक लगाए। स्कूटी धीमी हुई। इसके बाद उसने पैर से ब्रेक लगाकर स्कूटी रोकी। फिर आगे बढ़ी।
एक महिला अपने एक बच्चे को स्कूल छोड़ने जा रही है। बच्चा स्कूल ड्रेस में तैयार है। साथ में दूसरा बच्चा है। वह एकदम घरेलू ड्रेस में है। चड्ढी - बनियाइन में। 'चड्ढी पहन के फूल खिला है' याद आ गया।
ऑटो वाला अपने बच्चे स्कूल में छोड़कर ऑटो पर बैठा है। सीट पर एकदम सिंहासन पर नबाब की तरह बैठने की मुद्रा। सीट की

खासियत ही ऐसी होती है, जो बैठता उतरना नहीं चाहता इससे। सच पूछें तो आदमी गद्दी पर बैठता इंसान गद्दी पर नहीं बैठता, गद्दी ही उस पर सवारी करती है। आसानी से उतरती नहीं।
एक ठिलिया में लोहे के एंगल लादे दो लोग चले जा रहे हैं। एक आगे से खींच रहा है। दूसरा पीछे से धक्का लगा रहा है। पीछे वाले का शरीर पसीना-पसीना हो रहा है। सूरज की किरणें उस पसीने को चमका रहीं हैं। हवा उसको ठंडा करने का प्रयास कर रही हैं।
रिक्शे पर रखी प्लाई पर चप्पलें रखी हैं। बीच में एक बच्चा बैठा है। बच्चा लोहे के एंगल को ढोते हुए लोगों से बेपरवाह अपने में मगन है। उसके मुंह से निकलती लार उसकी हथेली से चिपककर तार की तरह फैल रही है। बच्चा बड़े ध्यान से अपनी

लार को देखता है। सूरज की किरणें उसको चमका रही हैं। बच्चा अपने में मगन है।
चढ़ाई पर पसीने से लथपथ मजदूर और जोर लगाता है। हमारा मन किया कि हम भी थोड़ा जोर लगा दें हैइस्सा करते हुए। लेकिन जब तक मन की बात अमल में लाएं तब तक वह आगे बढ़ जाता है।
याद आया कि आज मजदूर दिवस है। आज की सुबह मई दिवस की चमकीली सुबह है।

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