Wednesday, December 11, 2019

हिन्दुस्तान अमेरिका बन जाये तो क्या होगा



हाल में अमेरिका के किस्से लिखते हुये 12 साल पुरानी पोस्ट याद आई। तब बिना अमेरिका गये हमने अमेरिका के जीवन की कल्पना की थी। लिखा था - हिन्दुस्तान अमेरिका बन जाये तो क्या होगा! अमेरिका घूमने के बाद आज लिखते तो मामला कुछ अलग होता। क्या होता वह फ़िर कभी। फ़िलहाल तो बांचिये कि 12 साल पहले हम क्या सोचते थे इस मामले में।
1. जैसे ही भारत अमेरिका बना, अमेरिका में भब्भड़ मच जायेगा। तब न ग्रीन कार्ड होगा न फ़्रीन कार्ड। सारे भारत के लोग भाग-भाग के झोला-झंडा लिये अमेरिका पहुंच जायेंगे। सारे बिहारी बच्चे दिल्ली की लड़कियों के बजाय न्यूयार्क की लड़कियां देखते हुये आई.ए.एस. का इम्तहान देंगे। अमेरिका का अमेरिकापन तभी तक है जब तक हिंदमहासागर और अटलांटिक सागर के बीच की दूरी बरकरार है। दूरी मिटते ही वो बेचारा कौड़ी का तीन हो जायेगा। अभी तो वहां हमारे देश के लोग कम संख्या में हैं इसलिये थोड़ा अमेरिकी टाइप बनने की कोशिश करते हैं। जहां यहां से रेले के रेले पहुंचे वहां वैसे ही हर तरफ़ भारतीयों के मेले लगे दिखेंगे। सब तरफ़ आनंद की बयार बहेगी।
2. बाहर से आये लोग हमेशा से अंदर के लोगों के मुकाबले मेहनती होते हैं। जो भारतीय वहां जायेंगे वे अपना परिवार साथ लेकर नहीं जायेंगे। कोई और काम न होने की वजह से कुछ दिन में ही मार मेहनत करके वे अमेरिकियों के छक्के क्या अट्ठे छुड़ा देंगे। तमाम काम अपनी तरह से करेंगे। कोई अमेरिकी अंग्रेजी में पिनपिनायेगा – व्हाट आर यू डूइंग मैन इट्स अगेन्स्ट ला। आई एम गोइन्ग टु सू यू। जवाब शायद छोटे पहलवान वाली स्टाइल में दिया जाये- अबे चिमिरखी दास, ज्यादा सू-सू न करो नहीं तो पड़ेगा एक कन्टाप तो सारी फ़ंटूसी पिल्ल से निकल पड़ेगी। हम गंजहें हैं जहां रहते हैं वहां अपना कानून चलाते हैं। जब तक हम हैं यही चलेगा। तफ़रीह करने आये हैं कोई खूंटा गाड़ने नहीं। जितने दिन हैं अपना कानून धो-पोंछकर तहाकर रखो। जब चले जायें तब आराम से फ़हराना। और हां, ये सींकिया बदन लिये घूमते हो,मर्द के नाम पर कलंक है। शाम को अखाड़े आना सेहत सुधर जायेगी।
3. अमेरिका के जितने हाई वे हैं वे सब के सब साल भर में कई बार लो-वे में बदल जायेंगे। जहां बरसात खतम हुई सारे चौड़े रास्तों पर गड्डे खोदकर बल्ली गाड़कर रामलीला का तम्बू तन जायेगा। इधर से 150 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से आती गाड़ी सड़क पर अवरोध देखकर चीं-चीं करके ब्रेक मारेगी। खिड़की से सर बाहर निकालने पर उसे जनक विलाप सुनाई देगा- लिखा न विधि वैदेहि विवाहू/तजहु आस निज-निज ग्रह जाहू। वो हार्न दे-देकर हलकान हो जायेगा उसके पीछे गाड़ियों की मीलों लंबी कतार लग जायेगी और उसे परशुराम की आवाज सुनाई देगी -रे सठ सुनेसि सुभाव न मोरा। दूसरी तरफ़ लगी गाड़ियों की कतार वाला कोई मोबाइल वाला ट्रैफ़िक वाले को बुलायेगा। वह बेचारा आने से मना कर देगा क्योंकि उसने पहले ही लक्ष्मण का रोष वीडियो कैमरे पर देख सुन लिया है- जौ राउर अनुशासन पाऊं/कंदुक इव ब्रह्मांड उठाऊं/ कांचे घट जिमि डारौं फ़ोरी। वो बेचारा इसकी कल्पना मात्र से सिहर जायेगा । आने से साफ़ मना कर देगा। सारा जाम सियावर रामचंद्र के जय के साथ ही समाप्त होगा।
4. अब चूंकि भारत के सारे प्रांतों के लोग अमेरिका जायेंगे तो कुछ हाईवे माता के भक्त भी घेरेंगे। कुछ गणपति बप्पा मोरिया वाले भाई। तमाम जगह बात-बात पर ईंट बजा देने वाले आंदोलनकारी। बची-खुची जमीन पर बाबा लोग अपने तम्बू तानकर अमेरिकनों का परलोक सुधार देंगे। वैसे भी जब भारतीय वहां पहुंचेंगे बहुतायत में तो उनका परलोक ही सुधरने लायक बचेगा। उनके लोक का तो टोटल हो जायेगा। कुछ जगह हनुमान भक्तों और ढाबे वालों को तो चाहिये ही हो्गी।
5. जो लोग इस खामख्याली में हैं कि अमेरिका का कानून बहुत सख्त है सबको जेल में भर देगा। उनका ख्याल भारतीयों के वहां पहुंचते ही ट्विन टावर के तरह ढह जायेगा। अमेरिका का कानून चाहे जितना सख्त हो भारतीय उसे वहां पहुंचते ही या तो मुलायम और मानवीय बना देंगे या फिर छेनी-हथौड़ी से चकनाचूर कर देंगे। तब शायद नाजुक मिजाज अमेरिकी अनुरोध करें- हमारी सुरक्षा के लिये हमें जेल दो। हम इन भारतीयों का मुकाबला नहीं कर सकते।
6. जब देश के लोग जायेंगे तो देश की संस्कृति के रक्षक भी तो जायेंगे कि नहीं। सुना है वहां बहुत चूमा-चाटी है। खुले आम चिपका-चपकौवल चलती है। जहां यहां के मेरठ , हरियाणा के जाट वहां पहुंचे और उधर से सैनिक लोग उनकी सारी मस्ती हवा हो जायेगी। जगह-जगह गोरे लोगों को कान-पकड़वा कर मुर्गा बनवाते हुये बहादुर लोग दिखेंगे। फ़्रेंडशिप बैंड की जगह राखी बैंड बंधवा देंगे। तमाम अमेरिकन लोग आई लव यू माई डार्लिंग भूल-भाल के बहना ने भाई की कलाई पर प्यार बांधा हैं। सारे अमेरिका में भारतीय संस्कृति की बयार बहने लगेगी।
7.तमाम अमेरिकी जमीन पर भारतीय भू माफ़िया कब्जा कर लेंगे। जब कोई अमेरिकन इस पर अपना एतराज जतायेगा कि यह उसकी जमीन है तो भारतीय बिल्डर उस जमीन पर बनी इमारत की तराई करते हुये परमहंस वाले अंदाज में प्रवचनियायेगा- अयं निज: परोवेति, गणना लघु चेत शाम/ उदार चरितांनाम वसुधैव च कुटुम्बकम।यह मेरा है वह पराया है यह छोटों का दर्शन है। उदार चरित वालों के लिये वसुधा ही कुटुम्ब के समान है। यह सब हमारा है। हमने मेहनत करके इधर नींव खोद ली ईंटे जमा लीं। तुम बगल में अपना तंबू लगा लो। कुछ ईंटे बचीं हैं हमसे ले लो, खरीद दाम पर दे देंगे।
इसकी वैचारिक व्याख्या करते हुये कोई समझदार मासूम अमेरिकी लोगों को समझायेगा। बन्धुओं वस्तुत: यह तुम्हारे ही विश्व को सुधारने के दर्शन का विस्तार है। तुम वियतनाम गये उसे नेस्तनाबूद करने, अफ़गानिस्तान गये दुश्मनों का संहार करने, ईराक गये उसको लोकतांत्रिक बनाने। हर जगह असफ़ल से रहे। मजा नहीं आया न तुमको न उन लोगों को। बहुत पैसा बरबाद कर दिया। तमाम जाने चलीं गयीं। इसीलिये हम तुम्हारा बौद्धिक करने आये हैं कि यह सारा क्रियाकर्म कम खर्चे में कैसे किया जा सकता है घर बैठे। जैसे ही सिखा देंगे वैसे ही चले जायेंगे जैसे तुम चले थे दूसरे देशों में अपना काम करके।
8.. भारतीय व्यक्ति स्वभाव से ही अतीतजीवी होता है। जब भारतीय जन वहां छा जायेंगे तो सारे अमेरिकियों का अतीत तलाशा जायेगा। यहां से कुछ मौलवी जी और पंडितजी लोग भी जायेंगे। वे अपने इलाके के सारे बिछड़े हुये लोगों को मिलायेंगे। इलाहाबाद और गया के पंडे राबर्ट और जूलिया को जमशेदपुर, दरभंगा के रामदयाल, बरसातीराम का वंसज साबित कर देंगे। वे अगली फ़्लाइट से भारत अपनी जड़ों की तलाश में सरपट भागते चले आयेंगे। इंडियन एअर लाइंस के बल्ले-बल्ले होंगे। जमशेदपुर, दरभंगा पहुंचते -पहुंचते उनकी इतनी जड़ खुद जायेगी कि वे जड़ीभूत होकर यहीं कहीं टिककर शायद हिंदी में ब्लाग लिखते हुये दो संस्कृतियों का तुलनात्मक अध्ययन करने लगें।
9. पंडितजी लोग तीसरी पत्नी के चौथे पति के पांचवे बच्चों की परंपरा की ऐसी कम तैसी ज्यादा कर देंगे। ऐसे सारे कर्मों को कुकर्म बताकर धर्म की स्थापना में जुट जायेंगे। तलाक की मैगी नूडल टाइप दुईमिन्टिया अवधारणा की जगह तलाक का बीरबल की खिचड़ी वाला पैकेज चलाया जायेगा। मतलब कि अमेरिका के लोगों को दुनिया की सारी नेमतें मिल जायेंगी लेकिन तलाक नहीं मिल पायेगा। बिना शादी के साथ रहने वालों के कान गरम करने के लिये हमारे वीर बालक हैं ही। साल भर में सारे अमेरिका गायन्ति देवा किलकीत कानि वाले माहौल में सांस लेने लगेंगे। एक बीबी का एक पति।इस संस्कार की स्थापना होते ही अमेरिका जाने वाले भारतीयों की संख्या में महती गिरावट होगी। हर जाने वाला यही सोचेगा /गी जब एक ही के के साथ रहना है तो भारत ही क्या बुरा है।
10. अभी अमेरिकी बहुत डरपोंक हैं। एक ठो इमारत गिरी पूरी दुनिया में पटाखे बाजी करने लगे। जरा सा पाउडर मिला कुछ लिफ़ाफ़ों में सारे देश के आफ़िस बंद कर दिये। भारत से जो लोग जायेंगे वे उनको बहादुरी का पाठ पढ़ायेंगे। कैसे दंगों के बीच जिया जाता है, कैसे हजारों लोगों के मरने के बावजूद संयम से पेश आया जाता है। कैसे अपने दुश्मन को माफ़ किया जाता है। यह सारे पाठ पढ़ाये जायेंगे। हो सकता है कि इस पर झमाझम बहसें हों और वहां के लोग यह साबित करते हुये बताने की कोशिश करें अपने दु्श्मनों को माफ़ करना कमजोरी है। लेकिन जब बहस की बात हो और भारतीयों से कोई जीत जाये- असम्भव। इम्पासिबल। हमारा एक बच्चा तक उनको समझा देगा- देखो भाई अमेरिकाजी, अभी आप बच्चे हैं। कुल जमा पांच सौ साल की उमर है तुम्हारी। भारत के सामने लौंडे हो अभी। अभी हर जगह असफ़ल रहने के बावजूद तुम्हारे भेजे में यह बात नहीं घुसती कि ताकत से सब कुछ नहीं हासिल होता। हमारे देश में तमाम लोग तुमसे ज्यादा ताकतवर रहे लेकिन अंतत: विश्वबंधुत्व के दर्शन का पैकेज ही सबसे अच्छा साबित हुआ। अपने तर्क की पुष्टि के लिये वह सम्राट अशोक, चंद्र्गुप्त, चाणक्य ,हर्षवर्धन और न जाने किस-किस शासक के कौन-कौन से उदाहरण पटक देगा सामने। इस रहस्योद्घाटन से बेचारे अमेरिकी की आंखे ऐसी फ़टी की फ़टी रह जायेंगी कि दुबारा किसी भी तरह सिली न जा सकेंग। फिर शायद उनका इलाज डाक्टर टंडन के होम्योपैथिक इलाज से ही किया जा सके।
11. जो भी भारत को अमेरिका बनाने की सोच रहा है वह पछतायेगा जब यह देखेगा कि भारत तो अमेरिका नहीं बन पाया अलबत्ता अमेरिका जरूर भारत बन रहा है। देश और समाज के संबंध सरल रेखीय नहीं होते। वहां न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का संबंध भी लगता है तो शिवपालगंज के गंजहों के नियम भी। चुंबकत्व के नियम लगते हैं तो जड़त्व का सार्वभौमिक सिद्धांत भी।
भारत के अमेरिका बनते ही हो सकता है तमाम लोग किसी ट्रांसपोर्टर की तलाश मे निकल पड़ें कि यार ये दो सौ वर्ग गज का प्लाट ले जाना है। बताओ कै पैसे लोगो। लौटते समय अमेरिका से भारत की ढुलाई मिल जायेगी।
और भी न जाने कित्ते धांसू च फ़ांसू आइडिया दिमाग में हैं लेकिन समय के आगे सब बेकार। समय हमारे काबू में नहीं है। सच तो यह है कि वह किसी के काबू में नहीं है। न भारतीय के हाथ में न अमेरिकी के हाथ में कहा भी है -
पुरुष बली नहिं होत है समय होत बलवान
भीलन लूटी गोपिक वहि अर्जुन वहि बान।
लिखने को तो हम पोथा लिख मारें। पांच बातें कही बताने को हमने दस तो बिना सोचे गिना दीं। आगे कभी लिखेंगे सोचकर तो पचास क्या पचहत्तर ,सौ तक गिना देंगे। और लिखंगे भी आगे कभी। लेकिन मालिक हमको अमेरिका बनने में कौनो दिलचस्पी नहीं है। अपन तो यहीं इंडिया दैट इज भारत में ही चुर्रैट हैं।
और यह भी बता दें कि हम अकेले नहीं हैं। हमारे साथ तमाम लोग हैं, शायद आप भी। अच्छा सच्ची बताओ है कि नहीं।

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