Monday, March 16, 2020

ब्लॉगरों के अधूरे सपनों की कसक -एक अनूठी किताब

 

कल ' ब्लॉगरों के अधूरे सपनों की कसक' किताब मिली। सक्रिय ब्लॉगर रहीं रेखा श्रीवास्तव जी ने 2012 से ब्लॉगरों के अधूरे रह गए सपनों का रजिस्टर खोला था। दोस्तों के अधूरे रह गए सपनों को लिखने को कहा था। कुछ न लिखा, कुछ ने नहीं लिखा। आठ साल में कुल जमा 50 साथियों के अधूरे सपनों की दास्तान इकट्ठा करके किताब की शक्ल दी।

सामान्य समझा जाने वाला यह काम बड़ा झंझटी काम है। कभी लोग समझते हैं, कभी नहीं समझते। कोई लिखता है , कोई नहीं। रेखा जी की सफलता ही कही जाएगी कि उन्होंने कभी सक्रिय रहे ब्लॉगरों से उनके अधूरे सपने लिखवा लिए। इनमें से ज्यादातर सपने महिला ब्लॉगरों के हैं। इससे क्या यह समझा जाये कि स्त्रियां अपनी बातें स्त्रियों से साझा करने में ज्यादा सहज होती हैं ? 🙂
2012 में शुरू किया काम किताब रूप में 2020 में आना रेखा जी के सतत प्रयासों की कहानी ही है। इसमें उनको वंदना गुप्ता जी की हौसला अफजाई का भी सहयोग मिला।
आईआईटी कानपुर में मशीन अनुवाद परियोजना में 24 वर्ष रिसर्च एसोसिएट के पद पर कार्य कर चुकी रेखा जी ब्लागिंग और अन्य मंचो पर अनेक सम्मान मिल चुके हैं । उनकी गज्जब की सक्रियता देखकर ताज्जुब होता है।
किताब की भूमिका कई नामचीन ब्लॉगर्स ने लिखी है। मुझे भी कई बार कहा रेखा जी ने लेकिन तमाम जरूरी/ग़ैरजरुरी कामों में उलझा होने के कारण मुझे याद ही नहीं रह पाया कि लिखना क्या है? जब भी रेखा जी तकादा करतीं , मैं लिखने का वायदा करता। तकादे और वायदे की जुगलबंदी इतनी लम्बी खिंची की रेखा जी बोर हो गई और उन्होंने किताब छपवाने भेज दी।
जिन लोगों ने लिखा है किताब के बारे में वे हिंदी ब्लागिंग के नामचीन साथी रहे हैं। इसलिए मेरे न लिखने किताब का कुछ नहीं बिगड़ा , अलबत्ता लिखता तो मेरा नाम भी होता भूमिका लेखकों में।
साथी ब्लॉगरों के अधूरे सपनों के किस्से पढ़ना रोचक है। कोई डॉक्टर बनना चाहता था, कोई थिएयर आर्टिस्ट। कोई सिर्फ महिला होने को जीना चाहता है तो कोई पुस्तकालय खोलना चाहता था। किसी की आत्मा नृत्य से जुड़ी है तो किसी का सपना पत्रकारिता का रहा। कुछ दोस्तों के सपने चोरी भी हो गए जिनकी रपट उन्होंने पहली बार इस किताब के बहाने रेखा जी के थाने में लिखवाई। बहुत रोचक है साथियों के कसक भरे सपनों की कहानी पढ़ना।
किताब उत्कर्ष प्रकाशन दिल्ली से छपी है। शायद नेट पर भी हो। मैं खरीदने की सोचता तब तक मुझे रेखा जी ने किताब लेखकीय प्रति के तौर पर मुफ्त में भेजी है। इसके लिए उनका आभार। 148 पेज की किताब के दाम 250 रुपये हैं। इसमें रेखा जी के पैसे कितने लगे यह मुझे नहीं पता लेकिन काम उन्होंने नायाब किया है इसके लिए रेखा जी को
बधाई
। हिंदी ब्लॉगिंग पर शोध कार्य करने वाले लोगों के लिए यह किताब काफी काम आएगी।
इस किताब के बाद रेखा जी अगर फेसबुक के साथियों के अधूरे सपनों की कसक का संकलन करेंगे तो उसकी भूमिका अवश्य समय पर लिख दूंगा। 🙂
किताब का नाम: ब्लॉगरों के अधूरे सपनों की कसक
सम्पादक : रेखा श्रीवास्तव
मुद्रक एवं प्रकाशक : उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ/दिल्ली
प्रकाशक की वेबसाइट :utkarshprakashan.in
पृष्ठ संख्या: 148
किताब का मूल्य : 250

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