Tuesday, April 28, 2020

कोशिशें अक्सर कामयाब हो जाती हैं

 


आजकल देश में कोरोना से लड़ाई के लिए पीपीई किट की बड़ी मांग है। पीपीई किट मतलब कवर आल, मास्क और फेसशील्ड। कवर आल मतलब सर पर कैप, शरीर पर गाउन और जूते के लिए शू कवर। इनमें से कोई भी हमारा नियमित उत्पाद नहीं है। लेकिन देश की जरूरत को देखते हुए हमारी निर्माणियों ने इनका उत्पादन शुरू किया। सप्लाई भी।
अब तक हमारी निर्माणियों से करीब 4 लाख मास्क और करीब 10000 कवरआल भारत सरकार के अधिकृत संस्थान HLL को सप्लाई हो चुका है। इसके अलावा लगभग एक लाख लीटर सैनिटाइजर भी भेज चुके हैं। फेस शील्ड का उत्पादन भी दमदम फैक्ट्री में शुरू हो चुका है।
कवरआल बनने के पहले जांच कपड़े और उसकी सिलाई की जांच होती है कि दोनों ठीक है कि नहीं। इसके लिए 'ब्लड पेनेट्रेशन टेस्ट' होता है। असल में कोरोना के लिए कोई अलग से पीपीई किट नहीं बनी है। इसमें भी वही किट इस्तेमाल हो रही है जो सर्जरी में इस्तेमाल होती है। इस किट में जांच होती है कि सर्जरी के समय अगर खून निकला तो सर्जरी किट ऐसी होनीं चाहिए ताकि खून आदि ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर की ड्रेस के अंदर न जाए।
इसके लिए ड्रेस का कपड़ा ऐसा होना चाहिए कि खून अगर निकले भी तो अंदर न जा पाए। कपड़े तो इस तरह के बन जाते हैं। लेकिन किस जगह से सिलाई होती है वहां से खून अंदर जा सकता है। इसके लिए सिलाई पर टेप लगाया जाता है। कपड़ा, सिलाई मशीन तो देश में बहुतायत में हैं। असल कमी सीम पर टेप लगाने वाली मशीन की हैं। ज्यादातर मशीन चीन से आती हैं या कोरिया से। सब बन्द है। इसीलिए पीपीई किट बनने में देरी होती है। सिलाई होती है 1000 किट की तो उस पर सीम लग पाती है 100 किट पर। किसी पर वह भी नहीं।
इसका उपाय निकालने के लिए हाथ से लगाने वाले टेप बनाये गए हैं देश में। लेकिन एक तो अधिक सफल नहीं हुए टेप और सफल भी हुए तो समय काफी लगता है इसमें। जितनी कुल कवरआल की कीमत उतना तो लेबर कास्ट हो जाती है।
बनाने की समस्या से पार पाने के बाद इनको टेस्ट कराना होता है। कपड़ा और सीम दोनों पास होने चाहिए टेस्ट में। दबाब में कृत्तिम खून छोड़ा सप्लाई किया जाता है टेस्ट पीस में। पहले कपड़े को पास होना होता है, फिर सीम को। दोनों में सफल होने पर ही सैम्पल पास होता है। एक कोड मिलता है जिसमें कपड़े और सीम का उल्लेख होता है। उसी के अनुसार बनानी होती है ड्रेस। उल्लेख करना होता है कोड का। कपड़ा या सीम में से कुछ भी बदलने पर नया टेस्ट कराना होता है, नया कोड लेना होता है -तब सप्लाई कर सकते हैं।
हमने ग्वालियर की लैब से आठ तरह के सैम्पल पास कराए थे। जब जो जिस तरह का सामान मांगता है, बना के सप्लाई कर देते हैं।
दो हफ्ते पहले तक पूरे देश में मात्र दो जगह पीपीई किट की टेस्टिंग होती थी। एक कोयम्बटूर और दूसरी ग्वालियर में। भयंकर भीड़ दोनों जगह। घण्टे भर की जांच के लिए कई दिन लग जाते।
देश की जरूरत देखते हुये हमारे संस्थान के महानिदेशक हरिमोहन जी ने अपने यहां ही टेस्टिंग उपकरण बनाने की योजना बनाई। रातों रात उपकरण बना आयुध निर्माणी कानपुर में। टेस्टिंग हुई। मान्यता मिली आयुध निर्माणियों की लैब को। इसका परिणाम यह हुआ कि महीने की शुरुआत में जहां पूरे देश में केवल दो जगह टेस्टिंग होती थी पीपीई किट की वह अब 12 जगह हो सकती है। इनमें से 10 लैब आयुध निर्माणियों की है।
पिछले हफ्ते हमारी निर्माणी को भी प्रयोगशालाओं को मान्यता देने वाली संस्था एन ए बी एल द्वारा इस टेस्ट को मान्यता मिली। इसके पीछे हमारे साथियों की अनथक मेहनत रही। लाकडाउन पीरियड में कानपुर, ग्वालियर, लखनऊ जाकर टेस्ट कराना, दुकानें खुलवाकर रसायन लाना, उनके सर्टिफिकेट हासिल करना। इसके बाद वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग करते हुये ऑडिट करवाना और ऑडिट टीम से यह सुनना -" आपकी मेहनत और तैयारी को हम सलाम करते हैं। 10 दिन की तैयारी में बिना किसी कमी के सफ़ल होने के लिए आप लोग
बधाई
के पात्र हैं।" अपने में खुशनुमा अनुभव है। खुशनुमा के साथ यह विश्वास भी मजबूत है कि सच्चे मन से की गई मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।
इस काम में हमारी टीम ने बहुत मेहनत की। टीम के समूह अधिकारी अनिल यादव लगातार हर तरह से 'जो है सो' अपनी टीम की तैयारियों का जायजा लेते रहे, सुमित पटले बराबर सहयोग और मार्गदर्शन करते रहे, अरुण वर्मा सम्भावित कमियों की तरफ इशारा करते रहे, योगेंद्र और उनके साथी जो जरूरत हो वह सामान मंगाते रहे। इस सबसे अलग और मुख्य रूप से पूरे दिल और जान से मेहनत की ऋषि बाबू ने। लैब को प्रमाणपत्र दिलवाना उनके लिए जीवन का सबसे अहम काम हो गया था। इसमें सफल होने के बाद उनकी जो खुशी छलकी उसको बयान करते जो मेसेज ऋषि ने मुझे किया उसको पढ़कर हमारी आंखे भी छलक आईं। हम यह भी कहने की स्थिति में नहीं थे -'बस कर , रुलाएगा क्या?'
इस सफ़लता का महत्व इस मायने में और बढ़ जाता है कि दस दिन पहले ही टेस्टिंग उपकरण पर आपत्ति जताते हुए हमारा दावा खारिज हो गया था। उस दिन भी ऋषि ने सारी कमी को अपने ऊपर अफसोस जाहिर करते हुए सुबह जो मेसेज किया उससे पता चला बाबू रात भर सो नहीं पाए। न केवल नींद से वंचित रहे, उससे आगे भी बढ़कर शुरुआती असफलता का सारा ठीकरा अपने सर पर फोड़ लिया और बताया कि उनको इसके लिए अफसोस है।
मेसेज पढ़कर हमको लगा कि जिस बात को हम पिछले दिन ही सिर्फ -'कोई बात नहीं। अच्छा ही हुआ। इसी बहाने नया उपकरण आयेगा। फिर लैब को प्रमाणपत्र मिल जाएगा।' कहकर भूल चुके थे वही बात उससे सीधे जुड़े अधिकारी को इतना बेचैन रखे कि अगले की नींद उड़ जाए। वह निराश टाइप हो जाये।
ऋषि बाबू के सन्देश को देखते ही हमने लिखा :
'पागल हो। निराश क्यों? अफसोस क्यों? कोई हमारी गलती थोड़ी थी। यह तो शुरुआत है। हो जाएगा। इसमें हमारी कोई गलती भी नहीं।'
इसके बाद का किस्सा हम बता ही चुके। सफलता मिली और फिर अपने दोस्त के माध्यम से सुनी बात याद आ गयी:
किसी समस्या के हल हो जाने के बाद उसकी ( समस्या की) सरलता देखकर ताज्जुब होता है। Simplicity of the problem when solved is amazing.
अब दनादन पीपीई बन रहे हैं। दिन में कई बार लैब टेस्ट करते हैं। उत्पादन बढ़ाने के तरीके सोचे जाते हैं। कल ही 2100 कवरआल और 60000 मास्क और भेज दिए। इस तरह कुल 3100 कवरआल और 85000 मास्क कुल हो गए जो हमने एच एल एल को भेजे। इसके अलावा जो भेजे उसकी तो कोई गिनती ही नहीं।
कोरोना युध्द में हमारा सहयोग जारी है।

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