Sunday, April 05, 2020

इंद्रधनुष हमारे आस-पास


 सुबह होते ही सूरज भाई खिड़की के रास्ते हमारे कमरे में घुस आते हैं। बिस्तर पर, कुर्सी पर, जमीन पर अपना राजपाठ फैला लेते हैं। जहां पसरते हैं, वह हिस्सा चमक जाता है। अगल-बगल भी ।

सूरज भाई सीधे चलते हैं। सीधा हिसाब। जो सामने आता है उसको रोशनी, ऊष्मा बांट देते हैं। बिना किसी भेदभाव के। बिना किसी लागलपेट के। जितना क्षेत्रफल उतनी रोशनी। यह नहीं कि कोई दूसरा डबल रोशनी बटोर के ले जाये और फिर उसको ब्लैक में बेच ले।
रोशनी की नदी हैं सूरज भाई। उमंग के फव्वारे फूटने लगते हैं उनकी संगत में।
फव्वारे से याद आया कि हमारी निर्माणी में मेन गेट के एकदम सामने एक बड़ा फव्वारा है। गेट खुलते ही एकदम सामने से दिखता है फव्वारा। पानी का गुंबद बनाते हुए पानी नीचे गिरता है। उसके बाद फिर ऊपर पानी का गुम्बद बनता है।
जब हम आये थे फैक्ट्री तो देखा कि फव्वारा बन्द है। फव्वारा क्या असल में यह फायर सेफ्टी के लिहाज आग बुझाने के पानी का टैंक था। उसी पर किनारे पाइप लगाकर नोजल लगा लिए गये। बन गया फव्वारा।
हां तो अपन आये तो राउंड के लिए निकले। नया मुल्ला प्याज खाता है कि नहीं यह मुझे नहीं पता लेकिन यह पक्का पता है नया अफसर राउंड जरूर लेता है। जिसको राउंड करने की जगह नहीं मिलती वह मीटिंग करके अपनी इच्छा पूरी करता है। राउंड और मीटिंग के दौरान अक्सर अपने से पहले के अफसर द्वारा किये सारे कामों में कमी निकालता है। कई काम रुकवाकर अपनी तरह से करवाता है। नतीजतन ,अकसर, पहले से बड़ी से बेवकूफियां कर जाता है। अगले के लिए और ज्यादा काम छोड़ जाता है।
राउंड के पहले ही दिन फव्वारा टाइप दिखा गेट के सामने। उसके आगे सन्तरी की पोस्ट। लिए बंदूक खड़ा सन्तरी गोया फव्वारे की रक्षा के लिए खड़ा हो। हमें बुन्देलखण्ड के तालाब याद आ गए। गर्मी के दिन में पानी की चोरी बचाने के लिए वहां लोग लिए बन्दूक पहरा देते हैं।
फव्वारे के बारे में हमने पूछा - 'यह फव्वारा बन्द क्यों है?'
'यह बन्द ही रहता है। जब कोई वीआइपी आता है तब चलाया जाता है।'- हमको बताया गया।
हमने फौरन कहा -'अरे यार फैक्ट्री के लिए फैक्टरी के वर्कर से बड़ा वीआइपी कौन हैं। वह तो रोज आता है। फव्वारा रोज चलना चाहिए। फौरन चलवाओ।'
हमने इसी बहाने खुद को भी वीआईपी में शामिल कर लिया। आखिर हम भी तो फैक्ट्री के वर्कर हैं। रोज आते हैं फैक्ट्री।
बहरहाल कुछ ही दिन में फव्वारा चालू हुआ। कुछ दिन तो बहका बहका चला। अड़ियल कामगार की तरह उसने भी सोचा होगा कि बहककर चलेंगे तो पिंड छोड़ देंगे ये लोग हमारा। लेकिन हम भला कहां छोड़ने वाले। मानो हम एक बार को छोड़ भी दें लेकिन हमारे साथ के लोग कहां छोडने वाले जिनको यह जिम्मेदारी मिली है कि वे फव्वारा चलाएं। लिहाजा अब फव्वारा दिन भर चलता है। फैक्ट्री में घुसते ही मन खूबसूरत फव्वारा देखकर मन खुश हो जाता है।
फव्वारा हमारे दफ्तर से दो मिनट की दूरी पर ही है। आते जाते दिखता है। अक्सर उसके पास जाकर देखते हैं। सूरज की रोशनी में पानी में बना इंद्रधनुष देखते हैं। मन खुश हो जाता है।
पानी मे बने इंद्रधनुष को जब साथ के लोगों को दिखाते हैं तो उनको ताज्जुब होता है कि इंद्रधनुष उनके इतने पास है। कइयों को तो इंद्रधनुष देखे सालों हुए। उनको लगता है कि इंद्रधनुष तो केवल बरसात में खिलता है। उनको पता ही नहीं कि इंद्रधनुष उनके पास भी दिखता है। जहां सूरज की रोशनी में पानी खिलखिलाता है वहां इंद्रधनुष खिलता है।
यह हमारी जिंदगी में भी होता है। हमारे पास खुशियों के अनगिनत इंद्रधनुष खिले होते हैं लेकिन हम उनको देख ही नहीं पाते। इंद्रधनुष देखने के लिए उनको देखने की नजर चाहिए होती है। जिनकी नजर होती है उनको बीहड़ चुनौतियो के बीहड़ अंधकार में भी आशाओं के इंद्रधनुष दिखते हैं।
कल शाम जब लगभग सब कामगार घर जा चुके थे तब हमें लगा कि कुछ बेडरोल कम बने हैं। तब तक काम करते हुए हमको शान मोहम्मद दिख गए। हमने उसको कहा -'तुम जाओ बेड रोल की सिलाई कर दो।'
शान गया और देर रात साढ़े नौ तक उतना काम किया जितना दिन भर लोगों ने किया होगा। हमारा मन खुश हो गया। मन में एक इन्द्रधनुष और खिल गया।
कल देखा फव्वारा तो लगा फव्वारे की धार पानी की टँकी को हाथ जोड़कर आदर सहित प्रणाम कर रही है। पानी की टँकी से उतरा पानी ऊपर उठकर पानी की टँकी की ऊंचाई तक पहुंचता दिखा।
फव्वारे के पानी में सतरंगा इंद्रधनुष खिला है। हम सोचते हैं कि सारे रंगों टोंक दें -'दूर रहो यार तुम लोग। एकदम चिपके हुए हो - सत्ता से कारपोरेट की तरह। कोरोना से बचो।'
हमारे ऐसा सोचते ही इंद्रधनुष पानी में खिलखिलाकर हंस सा दिया। बोला -'हमको कोई कोरोना-'हम ऐसे ही मिलकर रहेंगे। हम साफ दिल के हैं। हमको कोई कोरोना का डर नहीं।'
इंद्रधनुष की बात सुनकर हमको अच्छा लगा। हमारे मन में भी एक ठो इंद्रधनुष खिल गया। आप भी देखिए आपके मन में भी खिल रहा होगा इंद्रधनुष। देखिये जी भरकर। का करेंगे बैठे-बैठे घर में।
देखिए , बताइए कैसा लगा। तब तक हम आते हैं फैक्ट्री में सच्ची का इंद्रधनुष देखकर।

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