Friday, March 05, 2021

सड़क पर राग मल्हार

 

ये भाई लोग इतवार को मिले थे। मुख मुद्रा से उदास टाइप लग रहे। पता नहीं क्या सोच रहे हों। इनके जीवन के संकट क्या हैं हमको पता नहीं। हम तो बस कयास ही लगा सकते।
जिस मैदान की तरफ इनकी पीठ है वह शाहजहाँपुर का प्रसिद्द खेल का मैदान है। कभी यहां नियमित हॉकी का अभ्यास होता था। कई नामी खिलाड़ी इस मैदान की देन हैं। अब वे खिलाड़ी नहीं रहे। कोई अभ्यास करते नहीं दिखता इस मैदान पर। मैदान भी उजाड़ हो गया। शायद उसी का दुख मना रहे हों भाई लोग।
सामने जिधर की तरफ मुंह किये खड़े हैं दोनों लोग उधर शहीद उद्यान है। शहर के सबसे बेहतरीन पार्को में से एक। शहीदों के नाम पर बने पार्क भले बेहतरीन हों लेकिन उनके आदर्शों पर चलने वाले कम होते जा रहे। शहीदों के नाम पर मेले लगने की बात तो दूर , उनकी याद तक लोग कायदे से नहीं करते। हो सकता है इसी बात पर दुखी हों ये भाई लोग।
पास ही शाहजहाँपुर के तीन प्रसिद्द ओज कवियों की मूर्ति लगी है। लगभग एक समय में ही हुए तीनो कवि। आज कोई ओज कवि उतना प्रसिद्द नहीं । इसका दुख भी हो सकता है इन लोगों को।
लेकिन इन बातों से इनका क्या लेना-देना? ये न तो इंसान है और न ही कवि, खिलाड़ी या शहीद खानदान के लोग। इनकी चिंता कुछ और होगी। हम समझ नहीं पा रहे। बिना समझे हम अपनी चिंताएं इनके माध्यम से व्यक्त कर रहे।
चिंता व्यक्त करते हुए हम भूल गए कि ये जोडीदार भी हो सकते हैं। एक नर दूसरा मादा। नर मादा घराने के लफड़े भी हो सकते हैं इनके बीच। ये मियां-बीबी भी हो सकते हैं। लेकिन शादी का चलन तो होता नहीं गधों के यहां। एक दूसरे को ऐसे ही पसन्द करते होंगे। साथ-साथ रहते होंगे। लिव-इन टाइप कुछ। कुछ बात हो गयी सबेरे-सबेरे इनके बीच। खटपट में मूड उखड़ गया होगा।
लेकिन मूड खराब होने की बात तो मैं इनके चेहरे और लटके मुंह को देखते हुए कर रहा। क्या पता इनके समाज मे यह परम सन्तुष्टि की मुद्रा हो। हो सकता है हमारे लिए जो सबसे खराब स्थिति हो, वही इनके लिए परम् सन्तुष्टि की हालत हो।
गधों की क्या कहें? हमारे समाज में ही ऐसा मतभेद होता है। जब सारा समाज अपनी त्रासदी में हाहाकार करता तब भी कुछ लोग कहते हैं कि इससे बेहतर समय कोई नहीं। यह हमारा स्वर्ण युग है। यह भी कि जब बहुतायत में लोग खुश हों तो चंद लोग कहें-'बड़ा खराब समय है।'
दोनों वर्ग अपने-अपने हिसाब से सही होंगे। जब बहुतायत में लोग हलकान हो रहे होंगे तब कुछ लोग खुश होंगे। उन कुछ लोगों की आवाज बहुतो पर भारी होगी।
इसके लिए कोई कहावत भी होगी। है न -'आग लागे हमरी झोपड़िया में, हम गाये मल्हार।' जब हमारी ही झोपड़ी में लगी आग के बावजूद हम मल्हार गा सकते हैं तो समाज बेहाल लगने पर कुछ लोग खुश क्यों नहीं हो सकते।
क्या पता सड़क पर खड़ा यह हसीन जोड़ा मौन स्वर में राग मल्हार गा रहा हो। हम अज्ञानतावश उसको समझ न पा रहे हों और इनको दुखी समझकर दुखी हो रहे हों।

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