Sunday, November 04, 2018

मुश्ताक़ अहमद युसूफी

1.ऐसा लगता है मनुष्य में अपने आप पर हंसने का साहस नहीं रहा। दूसरों पर हंसने में उसे डर लगता है।
2. व्यंग्यकार को जो कुछ कहना होता है वो हंसी-हंसी में इस तरह कह जाता है कि सुनने वाले को भी बहुत बाद में खबर होती है।मैंने कभी किसी ठुके हुए मौलवी और व्यंग्यकार को लिखने-बोलने के कारण जेल में जाते नहीं देखा।
3. बिच्छू का काटा रोता और सांप का काटा सोता है। इंशाजी (इब्ने इंशा)का काटा सोते में मुस्कराता भी है। जिस व्यंग्यकार का लिखा इस कसौटी पर न उतरे उसे यूनिवर्सिटी के कोर्स में सम्मिलित कर देना चाहिए।
4. समाज जब अल्लाह की धरती पर इतरा-इतरा कर चलने लगते हैं तो धरती मुस्कराहट से फट जाती है और सभ्यताएं इसमें समा जाती हैं।
5. मुस्कान से परे वो विपरीतता और व्यंग्य जो सोच-सच्चाई और बुद्धिमत्ता से खाली है, मुंह फाड़ने , फक्कड़पन और ठिठोल से अधिक की सत्ता नहीं रखता।
6. धन, स्त्री और भाषा का संसार एक रस और एक दृष्टि का संसार है, मगर तितली की सैकड़ों आँखे होती हैं और वो उन सबकी सामूहिक मदद से देखती हैं। व्यंग्यकार भी अपने पूरे अस्तित्व से सब कुछ देखता, सुनता, सहता और सराहता चला जाता है। फिर वातावरण में अपने सारे रंग बिखेरकर किसी नए क्षितिज, किसी और रंगीन दिशा की खोज में खो जाता है।
-मुश्ताक़ अहमद युसूफी
अपने उपन्यास 'धन यात्रा' की भूमिका में

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