Saturday, April 13, 2019

जो सीधे-सीधे लिखा जाये वह साहित्य नहीं होता- मनोहर श्याम जोशी

 मनोहर श्याम जोशी जी हमारे पसंदीदा लेखकों में हैं। बहुतों के होंगे। उनका लिखा अधिकतर पढ चुके हैं। फ़िर-फ़िर पढते हैं। पिछले दिनों प्रभात रंजन की जोशी पर संस्मरणात्मक पुस्तिका आई - ’पालतू बोहेमियन’। जिस दिन आन लाइन खरीद का लिंक मिला उसी दिन खरीदने का मन किया। लेकिन रह गया। शायद नेट धीमा था और भुगतान तक पहुंचते-पहुंचते थक गया।

एक बार टल गया तो फ़िर काफ़ी दिन टला रहा मामला। लेकिन इस बीच प्रभात रंजन जी Prabhat Ranjan जोशी जी के बारे में संस्मरण पोस्ट करते रहे। ऐसे ही एक दिन संस्मरण पढते हुये फ़िर खरीद ही डाली किताब। जब एक बार खरीदने बैठे तो 10-15 और भी किताबें आर्डर कर दीं। इनमें से अधिकतर किताबें वे थीं जिनको लेना पहले से तय था। कुछ दूसरी भी। कल किताबें पहुंची घर तो सारी देख डालीं। उलटी-पलटी। लेकिन पढने के लिये पहले जोशी जी पर लिखी किताब लपकी।
किताब का आकार देखकर थोड़ा अफ़सोस हुआ। इतनी पतली किताब। इसमें क्या होगा। ऐसा लगा कि किसी बहुत भूखे को बहुत कम खाना मिला हो और वह देखकर उदास हो जाये। जोशी जी के बारे में कुल जमा 136 पेज की किताब। बस्स।
बहरहाल कल और आज सुबह आहिस्ते-आहिस्ते पढी किताब। कल पुष्पेश पंत जी द्वारा लिखी प्रस्तावना पढी। आज प्रभात रंजन लिखित संस्मरण। बहुत अच्छा लगा।
किताब इस मायने में भी अच्छी लगी कि इसमें आगे पढी जाने वाली किताबों की लिस्ट भी बन गयी। उनमें से सबसे पहले ’ऑंट जूलिया एंड द स्क्रिप्ट राइटर’ जुगाड़नी है। इसमें लेखक और उससे बड़ी उम्र की आंटी की प्रेम कहानी है। 19 साल की उम्र में भागकर उसने अपनी आंटी से शादी कर ली। प्रभात रंजन इसे कई बार पढ चुके हैं। हम भी पढेंगे।
किताब में जोशी जी से जुड़े कई आत्मीय संस्मरण हैं । जोशी जी की रचना प्रक्रिया, सोच , अध्ययनशीलता आदि के कई किस्से हैं। उनका जिक्र करके किताब का सार -संक्षेप बताना ठीक नहीं। आप खुद पढिये मजा आयेगा।
इस किताब को पढते हुये चाय पीने का एक नया तरीका पता चला। जोशी जी फ़ीकी चाय के साथ गुड़ का टुकड़ा दांत से काटकर खाते थे। हम भी चाय पीने का यह अंदाज आजमायेंगे।
प्रभात रंजन जी ने बताया कि जोशी जी बहुत चिढ जाने पर चश्मा उतारकर आंख मलने लगते थे। हमें लगा इस तरह भी चिढकर देखा जायेगा कभी।
पसंदीदा 100 किताबों की लिस्ट बनाने वाली अच्छी लगी। बार पढने की बात भी। देखिये कितना सफ़ल होते हैं।
जोशी जी के बारे में लिखते हुये प्रभात रंजन ने उनके तमाम अनगिनत उपन्यासों के बारे में लिखा है। उनको पूरा करने की दिशा में कुछ किया जाये प्रभात रंजन जी। न् हो तो अधूरे ही प्रकाशित किये जायें।
किताब में एक जगह जिक्र है -उन्हीं दिनों राजकमल प्रकाशन के मालिक श्री अशोक माहेश्वरी ने मुझे ’ऐन फ़्रैंक की डायरी’ पुस्तक अनुवाद के लिये दी और उसका अच्छा भुगतान भी किया।
संयोग कि मंगवाई गयी किताबों में यह डायरी भी शामिल है। हालांकि आर्डर करते समय पता नहीं था कि इसका अनुवाद प्रभात रंजन ने किया है। जल्दी ही उसका भी पाठ होगा।
भुगतान से याद आया कि राजकमल की साइट से किताबें बुक कराते हुये दो बार पैसे कटे। लेकिन दोनों बार 'पेमेंट इरर' बताते हुये मामला खत्म हो गया। तीसरी बार फ़िर और नुकसान झेलने का मन नहीं हुआ। बाद में एक भुगतान की किताबें तो आ गयीं। दूसरे भुगतान का अभी पता करना है। इस मामले में हिन्दी के प्रकाशनों की भुगतान व्यवस्था बहुत ’गरीब’ है। कभी भुगतान होगा नहीं। कभी हो जायेगा तो इरर बतायेगा। जबकि अमेजन से किताब मंगवाने पर इस तरह की समस्या नहीं आती।
राजकमल की बात चल रही है तो एक कमी और उनके यहां की। मैं राजकमल की पुस्तक मित्र योजना का सदस्य हूं। इसमें 1000 /- देकर सदस्य बने थे। 25 % डिस्काउंट मिलता इस योजना के अन्तर्गत। लेकिन आनलाइन खरीद में इस सुविधा का कोई लिंक नहीं है। क्या राजकमल वाले इसे देखेंगे?
बहरहाल बात जोशी जी की किताब की। एक बहुत प्यारी किताब लिखी है प्रभात रंजन ने। एक बेहतरीन संस्मरण किताब लिखने की उनको बधाई ।
प्रभात जी से कहने का मन है वे जोशी जी के बारे में और लिखें। लोगों से लिखवायें। जोशी जी के अधूरे काम पूरे करवायें। उनके लिखे के बारे में लोगों को बतायें। अपने गुरु जी का कायदे से ’उद्धार’ करें।
यह भी कि प्रभात जी को अगर पता हो तो जोशी जी के फ़ार्मूला 99 में तीसरी कैटेगरी की किताबों की लिस्ट बतायें।
किताब के कुछ अंश जो मैंने पढते हुये रेखांकित किये।
1.हमें हमारे गुरुओं ने समझाया था कि किसी लेखक की रचनाओं पर शोध करना असल में उस लेखक का कल्याण करना होता है। कुछ-कुछ अहसान सरीखा या उद्दार करना समझ लीजिये।
2. गम्भीरता की धूल झाड़ने वाली अपनी जिस शैली के कारण मनोहर श्याम जोशी पाठकों के प्रिय बने , लेखक समाज से उसी वजह से हमेशा ’आउट ऑफ़ कोर्स’ बने रहे।
3. जनता छाप और इंटेलेक्चुअल छाप , दोनों चीजें पढने और लिखने में मुझे रस आता है। यों इसके चलते मेरी जनता छाप कृतियों में भी थोड़ी बहुत साहित्यिकता है और साहित्यिक कृतियों में भी इस माने में जनता छाप हैं कि अपनी तमाम इंटेलकचुअलता (नागर जी का दिया शब्द) पठनीय हैं।
4. जीवन में संयोग भी होते हैं।
5. तुम हिन्दी पट्टी वाले अपनी अंग्रेजी ठीक करने के लिये तो डिक्शनरी देखते हो लेकिन कभी यह नहीं सोचते कि हिन्दी भाषा ठीक करने के लिये भी कोश देखना चाहिये।
6. जो सीधे-सीधे लिखा जाये वह साहित्य नहीं होता, वह किसी मुदर्रिस के नोट्स की तरह होता है।
7. “उन्होंने जमकर लिखने का मूड बनाने के लिये फ़ार्मूला ९९ आजमाने की सोची।’ इसके अन्तर्गत वे एक आध्यात्मिक, एक किसी शास्त्र-विज्ञान सम्बन्धी और एक हल्की सी अश्लील –तीन पुस्तकों का लगभग समान्तर पारायण करते थे और अक्सर यह देखा गया कि इस पुस्तक अनुष्ठान में तीसरी पुस्तक को बराबर प्राथमिकता मिलती रहती थी।
8. जितना जरूरी सही समय पर गुरु बनाना होता है , उतना ही जरूरी यह भी होता है कि सही समय पर उस गुरु को लात मार दें।
9. कोई आदमी किस तरह का है, इसका पता इससे चल जाता है कि उर्दू शेरों का उसका जौक कैसा है यानी वह किस तरह के शेरों को पसन्द करता है।
10. हिन्दू धर्म को इसका जाति-विभाजन ही ले डूबेगा। अलग-अलग जातियां अपनी-अपनी पहचान को लेकर मुखर होती जायेंगीए और हिन्दू धर्म कमजोर पड़ता जायेगा।
11. किसी भी बड़े लेखक की आलोचना करने से अधिक उनसे कुछ सीखने का प्रयास करना चाहिये।
12. उसने (हेमिंग्वे ने) कहानियों में एक ऐसी तकनीक विकसित की जिसमें जो बात कही नहीं जाती , वही सबसे महत्वपूर्ण हो जाती । इसको आलोचकों ने ’हिडेन फ़ैक्ट’ का नाम दिया। हिन्दी में निर्मल वर्मा की कहानियों में यह तकनीक अपने सबसे अच्छे रूप में दिखाई देती है।
13. उन्होंने अपना चश्मा उतारा और अपनी आंखों को मलने लगे। बाद में मुझे समझ में आया कि जब वे बहुत चिढ जाते थे तो ऐसा करने लगते थे।
14. आदमी को अपने जीवन में १०० किताबों की सूची बना लेनी चाहिये और बार-बार उनका ही अध्ययन करना चाहिये। जीवन और लेखन के बहुत सूत्र हाथ आते हैं।
15. हमारे भीतर पश्चिमी शिक्षा व्यवस्था ने इतनी तार्किकता भर दी है कि हम संकेतों को देखते हुये भी नहीं देखने के आदी हो गये हैं। उनको समझते हुये भी न समझने के आदी हो चुके हैं।
16. हिन्दी के लेखकों का सारा संघर्ष नौकरी पाने तक ही होता है।
17. कहकर उन्होंने चाय की एक घूंट ली और गुड़ का एक छोटा सा दांतों से टुकड़ा काट लिया।
18. विस्थापन २० वीं शताब्दी की सबसे बड़ी पीड़ा थी और अविकसित माने जाने वाले समाजों के लोग रोजी-रोटी के लिये विकसित माने जाने वाले समाजों की तरफ़ जाते रहे, इसलिये इस विषय पर चाहे जिस समाज का लेखक लिखे , यह सुपर हिट विषय है।
19. अगर अच्छा लिखोगे तो सभी लेखक तुम्हारा नाम लेंगे।
20. जोशी जी लगातार कुछ लिखने के लिये कहते रहते थे।
21. किसी की जीवनी लिखने का मतलब है कि आप उस व्यक्ति की सात पीढियों की कथा लिखें। क्योंकि कहते हैं , किसी व्यक्ति में उसकी सात पीढियों के गुण अवगुण झलक जाते हैं।
22. ’मेरे लिये मुश्किल यह नहीं है कि मैं क्या लिखूं, क्या प्रकाशित करवाऊं। मुश्किल यह है कि मैं अपने मानकों पर खरा नहीं उतर पा रहा हूं। मेरे सभी उपन्यास अलग-अलग शैली के लिये जाने गये लेकिन अब मैं कोई नया लहजा नहीं बना पा रहा हूं। मुझे लगता है कि एक लेखक को सबसे ज्यादा तकलीफ़ इस बात से होती होगी जब वह अपने आप को दोहराने लगता है। आखिर हिन्दी के लेखक को पाठकों के प्यार के अलावा मिलता ही क्या है जो वह बेस्टसेलर लेखक के रूप में अपने को दोहराता रहे? उपलब्धियों का तो पता नहीं , लेकिन मुझे लेखक के रूप में अपने मानकों पर खरा न उतर पाने का बहुत अफ़सोस है।’
23. आने वाले समय में हिन्दी का बाजार बहुत बढने वाला है। चूंकि इस बाजार को भरने के लिये हिन्दी में उत्कृष्ट लेखन है नहीं , इसलिये अंग्रेजी के माध्यम से अनुवाद का बाजार बहुत तेजी से बढने वाला है। इसमें घुस जाओ।
24. हर बार एक ज्युरी बैठती है और अपनी पसन्द के किसी लेखक को पुरस्कार दे देती है। इस बार संयोग से ऐसी ज्यूरी जो मुझे पसन्द करती थी। हिन्दी में पुरस्कारों का यही हाल है।
25. हिन्दी लेखक को सम्मान से अधिक कुछ नहीं मिलता।
26. लेखक को अपना लेखन ईमानदारी से करना चाहिये। लिखने से अधिक पीआर करने वाले लोग कहीं के नहीं रहते।
पुस्तक का नाम: पालतू बोहेमियन मनोहर श्याम जोशी
लेखक: प्रभात रंजन
प्रश्तावना: पुष्पेश पंत
किताब की कीमत: 125 रुपये मिली 113 रुपये में
किताब के कुल जमा पन्ने- 136
किताब की खरीद का लिंक:

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10216545195715846


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