Thursday, April 18, 2019

जरूरतें कम तो जिन्दगी आसान

हमारे घर के बाहर लगे पेड़ की छाया में अक्सर रिक्शेवाले, टेम्पोवाले आराम करते हैं। इनमें से एक हीरालाल भी हैं।

हीरालाल कालपी के रहने वाले हैं। कानपुर में रहकर रिक्शा चलाते हैं। कालपी में पत्नी हैं, पांच लड़कियां, एक लड़का है। सबकी शादी हो गयी। सब अपने-अपने ठिकाने अलग-अलग। ये सबसे अलग कानपुर रहते हैं।
हाथ में कुष्ठ रोग है हीरालाल को। उंगलियों के पहले पोर गले हैं। एक शीशी में कोई तेल लिये मलते रहते हैं हाथ-पैर में। कहते हैं इससे आगे नहीं बढ़ता।
चुपचाप पेड़ की छांह में आराम करते रहते हैं हीरालाल। कभी आते-जाते बात हो जाती है।
रिक्शा खुद का है हीरालाल का। रोज किराया नहीं देना पड़ता। खाना होटल में खाते हैं। रेल की पटरी के किनारे एक कोठरी में किराये पर रहते हैं।
एक दिन दोपहर बाद मिले तो बताया सुबह से ६५ रुपये की कमाई हुई। खा-पीकर सब बराबर हो गये। नाश्ते में पूड़ी सब्जी खाई। दोपहर में ब्रेड-पकौड़ा। शाम की चिंता नहीं। दोपहर बाद फ़िर निकलेंगे सवारी की खोज में। कुछ न कुछ मिलेगा। उसी से शाम का खाना होगा।
हमने कहा - ’कभी न मिले सवारी तो आ जाया करो। खाना, पैसा कुछ ले लिया करो। कभी चाय,पानी कर लिया करो।’
बोले-’ सब हो जाता है। कोई कमी नहीं। उपर वाला सब इंतजाम देखता है।’
कोई नशा पत्ती करते नहीं। कोई और खर्चा है नहीं। जो कमाते हैं उसी से खर्च चल जाता है। कोई जरूरत नहीं और पैसे की।
खोपड़ी घुटी है। सफ़ाचट। कारण बताया कि खोपड़ी में बाल रहने पर साबुन तेल का खर्च होता है। घुटवा ली। वो खर्च बचा। २५ रुपये लगे खोपड़ी घुटवाने में।
हमने पूछा -’घर क्यों नहीं जाते? पत्नी को साथ क्यों नहीं रखते?’
बोले-’ दीवाली में घर गये थे। महीना भर रहे। फ़िर चले आये।’
हमने फ़िर कहा-’ पत्नी को साथ ले आओ। वो वहां अकेली रहती है। तुम यहां अकेले।’
बोले-’ डुकरिया (पत्नी) वहां खुश। हम यहां आराम से। कोई जवानी के दिन तो हैं नहीं। अब उमर के हिसाब से ठीक है।’
पत्नी काम-काज में पूड़ी बेलने का काम करती है। कमाई हो जाती है गुजर-बसर भर की।
बातचीत से अंदाजा लगा कि हाथ-पैर में कुष्ठ रोग की वजह से अलग रहते हैं परिवार से।
एक जिन्दगी यह भी। किसी से कोई शिकायत नहीं। न कोई दैन्य, न किसी से कोई शिकायत। पैसे के लिये कोई किचकिच नहीं। कोई बयानबाजी नहीं। कोई फतवा नहीं। न कोई भविष्यवाणी की किसको कितनी सीट मिलेंगी।
हीरालाल से मिलकर फिर लगा कि जरूरतें कम हों तो जायें तो जिन्दगी आसान लगती है। सोचना आसान अमल में लाना मुश्किल। आज तो हर इंसान, 'ये दिल मांगे मोर' का रास्ता पकड़े हुए है।।

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