Thursday, December 03, 2020

साबिर साहब से मुलाकात

 

साबिर साहब हमारी फैक्ट्री के बुजुर्ग हैं। 30 साल हो गए उनको रिटायर हुए लेकिन फैक्ट्री के हर बड़े जलसे में उनकी उपस्थिति जरूरी मानी जाती है। उनकी मौजूदगी के बगैर कोई बड़ा जलसा मुकम्मल नहीं होता।
जब मैं शाहजहांपुर आया था, गए साल , तो उनसे बात हुई थी। मिलने की बात भी। लेकिन फिर कोरोना के चलते आना-जाना, मेल-मुलाकात सब स्थगित हो गया। लेकिन परसों मुलाकात हो ही गयी।
मुलाकात के लिए पता किया तो किसी ने बताया जलाल नगर में रहते हैं, स्टेशन के पास। घर खोजने निकले तो सड़क पर बताया गया- गली में मकान है साबिर साहब का। गली लगातार लम्बी और संकरी होती गयी। जिससे भी पूछो -'बताते आगे मकान है साबिर साहब का। किसी ने यह नहीं कहा -'कौन साबिर साहब।'
मकान पहुंचे तो पता चला -'साबिर साहब अब यहां नहीं रहते। हयातपुरा में रहते हैं। दामाद के साथ। यहां कभी-कभी आते रहते हैं। भाई से मिलने। परसों आये थे। स्कूटी से आते हैं।'
नब्बे साल की उम्र में स्कूटी से आने की बात सुनकर थोड़ा अचरज हुआ लेकिन अविश्वास नहीं हुआ। हमारे अख्तर साहब 80 पार हो गए हैं। अभी भी सायकिल सवारी करते हैं।
घर पता चलने के बाद हयातपुरा गए। घर खोजा। बाहर धूप में बैठे थे साबिर साहब। खुशी जाहिर की। बोले -'मैं बहुत दिन से मिलने की सोच रहा थे। लेकिन कोरोना की वजह से नहीं हुआ मिलना। आपने पहल की। बहुत अच्छा किया।'
इसके बाद तो खूब सारी बातें हुईं। साबिर साहब यादों के समंदर में गोते लगाते रहे। 90 साल की उम्र में भी याददाश्त टनाटन। कई किस्से सिलसिलेवार सुनाए। सन 1951 में अप्रेंटिस में भरती हुए थे। चार साल की ट्रेनिंग के बाद बहाली हुई। इसके बाद प्रमोशन मिलने पर जबलपुर गए और करीब दस साल अवाडी। इसके बाद शाहजहांपुर आये। फिर यहीं से रिटायर हुए जुलाई 1990 में।
पुराने समय के महाप्रबंधको के किस्से सुनाए कई। एस. एन. गुप्ता फैक्टी को अपने घर की तरह मानते थे। रामास्वामी का बड़ा दबदबा था लेकिन राउण्ड पर जाने के पहले हमको साथ जरूर ले जाते थे। सुबह जब कभी देर हो जाती तो उनका पीए फोन करता -'साबिर साहब, जल्दी आइये साहब राउंड पर जाने के लिए आपका इंतजार कर रहे हैं।'
सरकारी संस्थानों में प्राइवेट लोगों की शुरुआत का किस्सा सुनाते हुए बताया -"कैप बैरेट लोग बनाते नहीं थे। टेंडर हुआ। बहुत कम दाम में बनाने की बात हुई। हमने सप्लायर से पूछा -'इतने कम दाम में कैसे बनाओगे?'
'हम तो दाना डाल रहे हैं। कम दाम पर आर्डर मिल जाएगा। फिर जब यहां बनना बन्द हो जाएगा। तब रेट बढाएंगे। -सप्लायर का जबाब था।' "
मार्केट में घुसकर जगह बनाने का यह आजमाया हुआ तरीका है। मुफ्त शुरू हुआ जियो का सिम अब टहलते हुए 550 रुपये तक का सफर तय कर चुका है।
सप्लायरों के किस्से भी सुनाए साबिर साहब ने। लोग आते कहते -'साबिर साहब यह आपका हिस्सा है। सबका होता है। आप मना क्यों करते हैं?'
इस पर हमारा जबाब होता -'हमको हमारे काम की तनख्वाह मिलती है। कोई नाजायज काम हमको करना नहीं। कोई जायज काम तुम्हारा रुकेगा नहीं। हमको अपने काम के लिए तुमसे कुछ नहीं चाहिए।'
फैक्ट्री आने के बारे में मैंने कहा तो बोले-'जब मैं रिटायर हुआ था तो दस हजार लोग काम करते थे फैक्ट्री में। आज दो हजार लोग हैं। ऐसे में फैक्ट्री जाना ऐसा ही जैसे कोई किसान लहलहाती हुई फसल देखने के बाद उजड़ा हुआ खेत देखने जाए। लेकिन आऊंगा जरूर।'
तीन बेटियां हैं साबिर साहब की। एक बेटा हुआ था। उसे वापस ले लिया अल्लाताला ने। बेटियों के पास रहते हैं। खुश हैं। एक बेटी जेद्दा में है, दो शाहजहांपुर में। कोरोना नहीं होता तो इस समय बेटी के पास जेद्दा में होते।
घर में कार है, ड्राइवर हैं लेकिन साबिर साहब को स्कूटर की सवारी ही पसन्द है। डॉक्टर से याददाश्त बढ़ाने की कोई दवाई की गुजारिश की तो डॉक्टर ने कहा -'आपकी याददाश्त तो नौजवानों से भी बेहतर है। आपको किसी दवा की जरूरत नहीं।'
साबिर साहब के दामाद बीएचयू के पढ़े हैं। हमारे सीनियर हुए। चार साल पहले चीफ इंजीनियर पद से रिटायर हुए। घर सिविल इंजीनियर का घर होने की ताईद करता है। कई पेड़ हैं अपनी तरह के अनूठे हैं।
साबिर साहब से पहली बार मुलाकात तब हुई थी जब 97-98 में हमारे महाप्रबन्धक एस. के. सक्सेना साहब ने साबिर साहब से प्राइवेट लोगों से काम कराने के लिए अनुरोध किया था। रिटायर्ड लोगों को काम पर रखकर उस काम को बखूबी अंजाम दिया साबिर साहब ने। उसके बाद मुलाकात नहीं हुई। बादबाक़ी किस्से और खबरें सुनते रहे साबिर साहब के।
'फैक्ट्री में और शहर में लोग आपको बड़ी इज्जत से याद करते हैं' मेरे यह कहने पर साबिर साहब बोले-'जब मैं रिटायर हुआ था तो तमाम लोग गेट तक छोड़ने आये। उस समय मैने कहा था। साबिर ज्वाइंट जी एम था। आज रिटायर होने पर ज्वाइंट जी एम का ओहदा यहीं गेट पर छोड़कर जा रहा हूँ, सिर्फ साबिर बाहर जा रहा है। लोग मेरे बारे में अच्छी राय रखते हैं तो लगता है कुछ नेक काम किये होंगे। इसमें भी ऊपर वाले की मेहरबानी है।'
फैक्ट्री और शहर में साम्प्रदायिक सद्भाव के बारे में बात हुई। साबिर साहब का कहना था-' आज के खराब होते माहौल में सद्भाव बना हुआ है यह तो बहुत सुकून की बात है। लेकिन मुझे लगता है कि लोगों के बीच सम्बन्धों की गर्माहट और अपनेपन में कमी आई है। यह बात बहुत कचोटती है मुझे।'
साबिर साहब से उनके तमाम अनुभव सुनकर और आशीर्वाद लेकर मैं वापस लौट आया। जल्दी ही फिर मुलाकात होगी। साबिर साहब स्वस्थ रहें और लंबे समय तक उनका आशीर्वाद हमको मिलता रहे।

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