Tuesday, December 08, 2020

सड़क पर ईंट, टट्टर ,शहीद स्तम्भ और बोरा लादे बुजुर्ग

 

मंघई टोला में घुरहू उर्फ़ राजाराम से मुलाक़ात करते हुए लौटे।ज़िंदा रहने के लिए नाम रखा गया घुरहू। बाद में रखा गया राजाराम। मंगतो के मोहल्ले का किस्सा सुनाया उन्होंने। कितना सच होगा, कितना गढ़ा हुआ कहना मुश्किल। लेकिन रोचक। और भी न जाने कितने किस्से होंगे उनके पास सुनाने के लिए। हर इंसान के पास होते हैं। हर व्यक्ति अपने में एक महाआख़्यान होता है।लेकिन सबको बांचने का वक्त हमारे पास नहीं होता।
आगे एक जवान होता एक लड़का सड़क किनारे बैठा चाय पी रहा था| सामने उसका घर था| शायद उसकी बहन उसको चाय और दालमोठ और एक ब्रेड दे गयी थी| गुनगुनी धूप में बैठे नाश्ता करता हुए बच्चे के चेहरे पर जवान होने की ऐंठ भी दिख रही थी- गोया जवान होते हुए वह एहसान कर रहा था| दुबले-पतले , हल्की चेसिस वाले बच्चे के चेहरे से जवानी हल्ला मचाते हुए फूट रही थी|
केरुगंज चौराहे से वापस लौटे| लोग अलग-अलग हो गए। केरुगंज से कोतवाली वाली सड़क से लौटे। शाहजहांपुर शहर में दो मुख्य सड़क हैं। एक सदर , बहादुरगंज, घंटाघर , चौक होते हुए केरुगंज जाती है। दूसरी कचहरी , कोतवाली, जीआईसी , एबिरीच इंटर कालेज होते हुए केरुगंज। रेल की पटरियों की तरह दो समान्तर सड़को पर शहर की रेल गुजरती है। इन सड़कों के आसपास दूसरी भी सड़के जुड़ती हूं, शहर के अंदर जाती हैं , शहर को गुलजार करती हैं।
लौटते हुए एक जगह खड़ी गाड़ी देखी। उसको रोकने के लिए ईंट उसके नीचे रखी गयी होगी। बाद में गाड़ी किनारे हो गयी। लेकिन ईंट वैसे ही रखी रही। साबुत ईंट सड़क पर रखी। अचानक सामने दिखी तो झटके से बगलिया के निकले। जरा सा चूकते तो अगला पहिया ईंट पर चढ़ने की कोशिश में हमको चारो खाने चित्त भले न गिरते लेकिन संतुलन तो गड़बड़ा ही जाता। क्या पता किस कोने गिरते। जमीन से जुड़ जाते या हवा में टँगे रहते।
ईंट पर चढ़कर गिरने से बचकर आगे निकलकर सोचा कि किनारे कर दें ईंट लेकिन सोच पर अमल करें तब तक आगे बढ़ गए थे। एक बार आगे बढ़ने पर कौन लौटता है फिर पीछे। हम भी नहीं लौटे। ईंट पता नहीं अभी वहीं होगी या किनारे हो गयी होगी पता नहीं।
आगे कुछ जगहों काम हो रहा था। बड़े अहातों में सामान रखा था। लोहे के गेट की जगह बांस के टट्टर लगे थे गेट पर। कम खर्चे में सुरक्षा का जुगाड़। फोटो लेने का 'आइडिया' जब आया तब तक हम बीस पैडल आगे बढ़ गए थे। 'आइडिए' को देरी से आने के लिए हमने बहुत तेजी से हड़काया। आइडिया सर झुकाकर खड़ा हो गया। फिर हमसे कुछ कहते नहीं बना।
आगे शहीद स्तम्भ दिखा। आजादी की पहली लड़ाई के शहीदों के सम्मान में बने शहीद स्तम्भ पर तीन शहीदों का उल्लेख है:
1. शायर मुहम्मद हसीं जिया शाहजहाँपुरी को 1857 की क्रान्ति के समर्थन में नज्म लिखने व क्रांतिकारियों की सहायता करने पर सजा-ए-मौत दी गयी। इसके नीचे यह शेर लिखा था:
'रहेगी जब तलक दुनिया यह अफसाना बयाँ होगा
वतन पर जो फ़िदा होगा, अमर वो नौजवां होगा'
2. अहमद यार खां- ब्रिटिश सेना द्वारा जलाबाद में हमला कर झूठे आरोप 28 अप्रैल 1858 में सार्वजनिक रूप से फांसी दी गयी।
3. गुलाम गौस खां (तिलहर) -झांसी की रानी के तोपखाने की रक्षा करते हुए 1857 में शहीद हुए।
शहीदों की याद में बने शहीद स्तम्भ के पास साइकिल खड़ी करके हम कुछ देर खड़े रहे। सामने पुलिस के सिपाही खड़े , टहल रहे थे।हमारे देखते-देखते वहां एक बुजुर्ग एक बोरे को पीठ पर लादे निकले। उनके पीछे एक बाबा टाइप बुजुर्ग उनकी गर्दन पर गन्ने की चुसी हुई चिफुरी घुमा रहा था। पीठ पर बोरा लादे बुजुर्ग गर्दन इधर-उधर करते हुए रुक गए। पीछे बाबाजी मजे लेते रहे। बोरा लादे बुजुर्ग ने जब ठहरकर बाबा बुजुर्ग को देखा तो दोनों हंसने लगे।
पता चला दोनों दोस्त हैं। बुजुर्ग की एक आंख में कुछ कमी है। कम दिखता है। बताया -'डाक्टर को दिखाया था। डॉक्टर बोला -'कोरोना टेस्ट करवाओ। हमारा और साथ वाले का भी। कहाँ से कराते। नहीं कराया। न दिखाई आंख दुबारा। अब ये कोरोना निपटे तब दिखाएंगे आंख। तब तक ऐसे ही काम चल रहा है।'
जिस बेतकुल्लुफी और बेफिक्री से दोनों हंस रहे थे, मजे-ठिठोली कर रहे थे उसको देखकर बहुत अच्छा लगा। लगा कि खुशी किसी साधन की मोहताज नहीं होती। काश हम लोग भी, सब लोग ऐसी निश्चिन्त, निश्च्छल हंसी हंस पाते।
हमको बुजुर्ग से बतियाते देखकर पुलिस वाला टहलता हुआ सड़क पार करके आया। हमको आंखों से टटोलता हुआ बुजुर्ग का बोरा हाथ से टटोला। पूछा -'क्या है इस बोरे में?'
बुजुर्ग ने बताया -'गोभी के पत्ते हैं। गाय के खाने के लिए।'
सिपाही और टटोलने के मूड में था लेकिन बोरे पर जमी धूल को देखकर उसने इरादा बदल दिया। टहलता हुआ वापस सड़क पार करके ड्यूटी बजाने लगा। उसके साथी वहां बैठे अखबार पढ़ रहे थे।
इसके बाद हम खरामा-खरामा चलते हुए घर आ गए। घर हमारा इंतजार कर रहा था।

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