Monday, December 28, 2020

सड़क पर घरेलू कहासुनी

 इस बार सुबह तसल्ली से निकले। जाड़े में सुबह बिस्तर छोड़ना, ट्रम्प के अमेरिकी राष्ट्रपति पद छोड़ने से भी कठिन काम है। अब अगले ने छोड़ा न छोड़ा अपना पद वो जाने लेकिन अपन ने बिस्तर छोड़ दिया और निकल लिये।

सर्दी से मुकाबले के लिए बहुत तैयारी करनी पड़ती है। रात वाले पायजामे के ऊपर जीन्स, स्वेटर के साथ जैकेट का समर्थन, हाथ में दस्ताने, खोपडिया पर गर्म कैप। मोजा , जूता अलग। मतलब पूरा मिनी एस्किमो बालक बनकर निकलना पड़ता है जाड़े में।
एक बार निकल लिए फिर तो लगता है रोज निकलना चाहिए। लेकिन ऐसा हो कहां पाता है।
सुरक्षा पोस्ट पर दरबान तैनात थे। सुबह 6 बजे की ड्यूटी। मतलब घर से 5 बजे चले होंगे। शायद 4 बजे उठे होंगे। कहां ये और कहां हम जो कि आठ बजे निकलने को बहादुरी मान रहे हैं।
रास्ते में साइकिल क्लब के कुछ लोग मिले। पता चला उनका दस बजे का कार्यक्रम है।
सड़क किनारे कुछ लोग अपनी दुकान सजा रहे थे। एक ठेले पर आलू बिना स्वेटर, सलवार बिकने के लिए तैयार हो रहे थे। ठंड में ठिठुर रहे थे। केवल छिलके ओढ़े हुए सर्दी से मुकाबला कर रहे थे। सब आलू गोल थे। विज्ञान भले न पढ़ें हो लेकिन उनको पता था शायद कि जाड़े से बचाव के लिए गोलाकार हो जाना चाहिए। ऊष्मा कम ख़र्च होती है। आलू वैज्ञानिक चेतना सम्पन्न थे। DrArvind Mishra जी।
आलू की ठेलिया के बगल में ही लिट्टी चोखा वाला दुकान सजा रहा था। मोड़ पर एक बुढ़िया कम्बल ओढ़े अपना कटोरा लिए बैठी थी। उसकी भी दुकान सज गयी थी। जिसको देना हो दे जाए।
टाउनहाल मंदिर के बाहर मांगने वाले चाय पी रहे थे। बतिया रहे थे। कुछ लोग चिलम पी रहे थे। चिलम एक महिला के हाथ में थी। बिना 'अलग निरंजन' कहे वह महिला चिलम पी रही थी। चेहरे पर परम संतुष्टि की सरकार विराजमान थी। बाकी के लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। उनको देखकर लगा चिलमबाज लोग लैंगिंक समानता का उत्कृष्ट उदाहरण होते हैं। कुछ चिलमबाज कह सकते हैं कि लैंगिक भेदभाव मिटाने के लिए चिलम पीना अनिवार्य कर देना चाहिए।
शहीदों की मूर्तियां के पास कुछ बच्चे खेल रहे थे। कम कपड़ो में। एक बच्ची ने दूसरे से चाय बनाने के लिए जाने को कहा। अदरख अपनी जेब से निकाल कर फेंक दी। बच्ची अदरख कैच न कर पाई। मुंह के बल जमीन पर गिरी अदरख। क्या पता चिल्लाई भी हो दर्द के मारे । लेकिन कलयुग में कौन किसकी सुनता है। क्या पता उसको भी किसी ने रहीम जी का दोहा सुना दिया हो:
रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही रखो गोय
सुनि अठिलेंहैं लोग सब, बांट न लैहे कोय।
आगे मोड़ पर मजमा लगा था। एक औरत एक आदमी को कोस रही थी। चिल्लाकर बता रही थी कि वह उसका आदमी है। पीटता है उसको। पीटने के निशान दिखा रही थी सबको। चेहरे पर चेचक का दाग था। उसके बगल की जगह को दिखाते हुए बता रही थी कि यह पीटने का निशान है। निशान न दिख रहा था न किसी को दिलचस्पी थी उसको देखने में। सब लोग उनकी कहा सुनी सुनने में मस्त थे।
आदमी कम्बल ओढ़े था जिसे महिला चिल्लाते हुए खींच रही थी। आदमी ने भी दावा करना शुरू कर दिया कि उसकी औरत उसको पीटती है। देखते-देखते दोनों प्राइम टाइम बहस में शिरकत करने वाले विरोधी पार्टियों के प्रवक्ताओं जैसे एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने लगे। लोग इस लाइव प्रसारण के मजे ले रहे थे।
आदमी का सर जिस तरह घुटा हुआ था उसको देखकर लगा रहा था कि आपरेशन मजनू के तरह उसकी खुपड़िया घोटी गयी हो। कम्बल बार-बार लपेटकर वह सर्दी और बीबी की मार से बचने की कोशिश करता दिखा।
इस बीच औरत ने अपने आदमी पर दूसरी औरत के चक्कर में पड़ने का आरोप भी लगा दिया। आदमी ने हल्के से एतराज किया तो उसने उस औरत पर 2000 रुपये बर्बाद करने का भी आरोप लगा दिया। औरत के चीखकर लगाए आरोपों के जबाब में आदमी की प्रतिरोध की आवाज थोड़ी दबी हुई थी। लोग सहज रूप में औरत की बात मानने को तैयार होते दिखे लेकिन महिला की तेजी के चलते कुछ लोग सहानुभूति के चलते आदमी के साथ हो लिए। एक ने फुसफुसाते हुए कहा भी -'बुढिया बहुत तेज है।'
आदमी अपनी औरत के जबानी हमले को चुपचाप झेलता हुआ खड़ा था। उसके चेहरे से लग रहा था कि कुछ कहना चाहता है लेकिन कह नहीं पा रहा मन की बात। हर कोई कर भी नहीं पाता। उसके अंदाज से यह भी लगा मानो वह बिना कहे ही कह रहा था -'इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।'
अपन थोड़ी देर देखते रहे झगड़ा। मोबाइल निकाल कर फोटो खींचा। कहा-'पुलिस बुला देते हैं।' पुलिस की बात सुनकर महिला ने कहा -'पुलिस न बुलाओ। हम निपटा लेंगे आपस में।' हम निकल लिए आगे।


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