Saturday, April 03, 2021

रुप्पू

 आज ज्योति त्रिपाठी रुचि द्वारा लिखा उपन्यास रुप्पू पढा। पेज नम्बर 7 से 160 तक पूरा उपन्यास एक सिटिंग में पढ़ गये। बहुत दिन बाद ऐसा हुआ कि कोई किताब एक दिन में पढ़ ली जाए। वरना पिछले कई महीनों से ऐसा होता आ रहा है कि एक से एक अच्छी मानी जाने वाली किताबें जितनी तेजी से शुरू हुई उतनी ही तेजी से, बिना पूरी पढ़े गए, उनकी जगह दूसरी किताबें आती गयीं।

किताब एक सिटिंग में पढ़ ली जाए इससे उसकी पठनीयता तो अच्छी कही ही जा सकती है। इस मामले में तो ज्योति को पूरे नम्बर मिलने चाहिए।
ज्योति की कविताएं पिछले कई सालों से पढ़ते आये थे। स्त्री सँघर्ष और घर परिवार में आने वाली चुनौतियों और उनके बारे में पूर्वाग्रहों के बारे में बड़ी बेबाकी से लिखती रही हैं ज्योति। अक्सर उनकी अभिव्यक्ति चकित करती रहती है। समाज में महिलाओं की स्थितियों पर लिखी ज्योति की कुछ कविताएं तो इस विषय पर लिखी सबसे बेहतरीन कविताओं से कमतर नहीं हैं। आने वाले समय में शायद उनकी कविताओं का मूल्यांकन हो सके।
कविताओं से फेसबुक लेखन शुरू करके ज्योति क़िस्त-दर-क़िस्त वाले अंदाज में किस्से लिखने लगीं। लिखने का रोचक अंदाज होने के कारण पाठक उनका इंतजार करने लगे। शुरू में कुछ पोस्ट्स मैने भी पढ़ी। लेकिन फिर एक साथ पढ़ने की सोचकर पढ़ना छूट गया। ज्योति पाठकों की मांग पर लिखती रहीं। इसी तरह करते-करते कई किस्से बन गए उनके। किस्से मतलब उपन्यास।
ऐसे ही एक धारावाहिक किस्से की किस्तों को एक साथ करके जो किस्सा मुकम्मल हुआ वह उपन्यास 'रुप्पू' के रूप में सामने आया। रुप्पू एक बदसूरत लड़की की जिंदगी की चुनौतियों से जूझने की कहानी है।
रुप्पू की जिंदगी में कई 'उतार ही उतार'आये। जिंदगी लगातार कठिन होती रही। जिन पर भरोसा किया उनमें से अधिकतर से धोखे मिले। कई बार टूटी रुप्पू लेकिन हर बार खुद को संभाला। फिर चुनौतियों का सामना किया। कई बार अवसाद में आई रुप्पू। आत्महत्या की कोशिश की। लेकिन फिर जिंदगी की विजय हुई। रुप्पू अपने पैरों पर खड़ी हुई। मजबूत बनी।
रुप्पू के व्यक्तित्व की खासियत में से एक यह भी है कि वे अपने साथ अन्याय करने वाले , धोखा देने वाले के प्रति भी, उसकी परिस्थितियों को ध्यान करते हुए, उसको क्षमा कर देती है। निरन्तर धोखा खाने के बावजूद अपने पति को गलतियों को अनदेखा करते हुए उसकी अच्छाइयां देखकर जुड़े रहने की कोशिश करती है। गलत से गलत व्यक्ति की अच्छाइयों को भी देखने की यह नजर ज्योति के व्यक्तित्व का सहज अंग है।
ज्योति की यह सोच उनकी कविताओं में भी लगातार दिखती है। स्त्री का पक्ष लेते हुए कविताएं लिखने के बावजूद ज्योति की कविताओं में आने वाले पुरुष पात्र अपनी तमाम कमियों के बावजूद 'उतने बुरे नहीं ' होते जितने उनको समझा जाता है। उनमें बहुत कुछ ऐसा होता है जिनके चलते उनके प्रति प्यार उमड़ता है।
बहरहाल बात रुप्पू की। इस उपन्यास की कहानी अपने समाज में एक ऐसी लड़की की कहानी है जिसको आमतौर पर खूबसूरत नहीं माना जाता। केरल में जो लड़की बिंदास रहती है वह रांची पहुंचकर बेचारी हो जाती है। बाकी किस्से पढ़ने के लिए किताब पढिये।
ज्योति का यह पहला उपन्यास है। जितनी जल्दी यह उपन्यास आया उससे बहुत खुशी हुई। उपन्यास में कई कमियां होंगी। लेकिन वह देखना आलोचकों का काम है। हम तो आनंदित और प्रमुदित हो रहे हैं यह सोचकर कि अभी और कई उपन्यास और कविता संकलन आएंगे ज्योति के।
ज्योति को उसके उपन्यास की
बधाई
।शुभकामनाएं।
किताब खरीदने का लिंक यह रहा


https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10222053962151564

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