Saturday, April 10, 2021

साइकिल के जन्मदिन के बहाने

कल हमारी साइकिल छह साल की हो गई। 2015 में जबलपुर में रांझी से ली थी। लेने के बाद घण्टी लगवाई, गद्दी बदलवाई। एक दो बार ट्यूब बदले। उसके अलावा टनाटन है साइकिल। पैडल मारते ही स्टार्ट हो जाती है।
साइकिल का साथ भले छह साल का हो गया लेकिन उसकी कोई पहचान अगर कहे तो शायद न बता पाए। कई साइकिलों के बीच अगर खड़ी हो और हमको अपनी साइकिल चलाने को कहा जाए तो बड़ी बात नहीं कि किसी दूसरी साइकिल की गद्दी की धूल झाड़कर पैडल मारने लगें। इतने सालों के साथ के बाद भी ऐसा अजनबीपन निहायत गैरजिम्मेदाराना है। लेकिन ऐसा होता है। साथ रहने वालों की तो बात छोड़िये कई बार अपन खुद को अजनबी लगते हैं। लगता है कि कहीं देखा है, मिले हैं लेकिन कहां देखा , कहां मिले यह ध्यान नहीं आता। फिर लगता है, अबे ये तो अपन ही है।
साइकिल की पहचान की बात से याद आया कि उसका हैंडल जंगिया गया है। ताला खुला रहता है। ऐसी अनगिनत साइकिलें होंगीं दुनिया में। लेकिन लगता है इतने से पहचान लेंगे साइकिल को।
कुछ दोस्त हमारी साइकिल को पुरानी बताकर बदलने की सलाह देते हैं। गियर वाली लेने को कहते हैं। लेकिन अपन को यही , बिना गियर वाली पसन्द है। गियर वाली साइकिल में इंसान गियर तो जल्दी-जल्दी मारता है लेकिन साइकिल चलती अपनी ही गति हैं।
बावजूद नापंसगी के पिछले दिनों हमारे बच्चों ने हमको गियर वाली जबरियन गिफ़्टियाँ दीं। बच्चों के प्यार से निहाल होने के बावजूद उनको फिजूलखर्ची पर टोंकते हुए बेमन से साइकिल खोली गई। कसवाई गई। पता चला साइकिल और हमारे साइज में जो अंतर के चलते उसको चलाने का एक ही तरीका है कि साइकिल और हम दोनों साथ-साथ सड़क पर साथ-साथ पैदल चलें।
साइकिल के साथ पैदल चलने में वैसे कोई बुराई नहीं। लेकिन गियर वाली साईकिल को बुरा लग सकता है कि उसकी बेइज्जती हो गई। अगर किसी हीरे को कोई रईस पेपरवेट की तरह प्रयोग करे या रॉल्स रॉयस से शहर का कूड़ा उठवाया जाए तो उनको बेइज्जती महसूस होगी न। किसी की 'बेइज्जती खराब' करने का अपना कोई इरादा नहीं रहता।
हमारे एक अजीज दोस्त हैं जो कद और अक्ल दोनों मामले में थोड़ा नाटे टाइप होने के साथ-साथ अपने ऊलजलूलपन के कारण भी जाने जाते हैं। हमको बहुत चाहते हैं। उनको हमारी नई छोटी साइकिल के उपयोग का एक तरीका यह भी समझ में आया कि अपन अपना साइज थोड़ा लम्बाई में कम करवा लें। उनका कहना था कि मेडिकल में आजकल सब कुछ सम्भव है। लेकिन शुक्र उनका इस बात का कि उन्होंने हमारी लम्बाई में बदलाव के उपाय को साइकिल की कीमत के मुकाबले खर्चीला बताते हुए खुद खारिज कर दिया यह कहते हुए कि यह काम कोई सरकारी खर्चे पर तो होगा नहीं लिहाजा क्या फायदा पैसा बर्बाद करने में।
नई साइकिल चली भले नहीं हो लेकिन उपयोग उसका भी हो रहा है। होली के मौके पर उसका उपयोग जोड़ो के साथ फोटॉग्राफी में हुआ। चीजें अपना उपयोग करा ही लेती हैं। पुरानी साइकिल भी चल ही रही है टनाटन।

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