Thursday, May 27, 2021

लव एट द टाइम ऑफ कोरोना

 बहुत दिन से लिखना स्थगित है। इस बीच कोरोना का हल्ला इतना रहा कि हर तरफ बस कोरोना ही कोरोना। कई मित्र, जान पहचान वाले और उनके परिवारी जन 'शांत' हो गए। कुछ इलाज शुरू होने में देरी से गये, कुछ गलत इलाज से, कुछ डर से। एक की पत्नी ने बताया कि ये तमाम तरह के वीडियो देखकर दहशत में आ गए। बीपी कम हो गया। नहीं रहे।

गब्बर सिंह की बात याद आई -'जो डर गया, समझो मर गया।'
बीमारी के नित नए इलाज बताये जा रहे हैं। इतनी तरकीबें कोरोना से बचाव कि अगर उनकी गिनती की जाए तो जनसँख्या के आकंड़ों पर भारी पड़ें। कई इलाज तो आपस में इतने विरोधी कि अगर एक साथ खड़े कर दिए जाएं तो उनमें आपस में मारपीट हो जाये। 'इलाज दंगा' हो जाये शहर में।
इलाज से बेहतर बचाव है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की बात हो रही। मास्क जरूरी है। पानी जरूरी है। सफाई जरूरी है। सांस रोकने का अभ्यास जरूरी। सब अपनाए जा रहे हैं। एक डॉक्टर के वीडियो में आया कि पच्चीस सेकेंड तक सांस रोक लिए तो समझिए फेफड़े मजबूत हैं। हम अभ्यास करके 40 सेकेंड तक रोक लिए। लगा कि घर में बाउंसर बैठा लिए हैं, कोरोना आएगा तो दौड़ा लेंगे।
जिनके यहां कई लोग नहीं रहे उनके हाल का अंदाज ही लगाया जा सकता है। हर नई फोन काल उठाते हुए जी दहलता - ' कोई अनहोनी की खबर न हो।' सबेरे किसी भी इंसान से मिलते हुए लगता -'कहीं यह किसी के न रहने की खबर न दे।'
कल एक मित्र से बात हुई। उन्होंने अपने कई परिवारी जन खोये कोरोना में। हाल पूछने पर जबाब आया -'जिंदा हूँ।' दो शब्द का यह जबाब कोरोना से जूझते लोगों की मन:स्थिति का एक्सरे है।
कोरोना हो जाने पर आइसोलेशन की बात होती है। अलग कमरा, अलग बाथरूम। सब कुछ अलग। ऐसे में मुझे हमेशा अपने देश की आधी से भी अधिक आबादी वाले वो लोग याद आये जिनमें कई-कई लोग एक कमरे/कोठरी में रहते हैं, कई-कई परिवार एक बाथरूम, एक शौचालय का इस्तेमाल करते हैं। वो कैसे आइसोलेशन में रहेंगे।
बहुत कठिन समय से गुजरना हो रहा है। इससे बचाव के लिए सावधानी, इलाज तो जरूरी है ही। साथ ही जरूरी है जिजीविषा। जीने की इच्छा। जीने की अदम्य इच्छा बहुत तगड़ी एंटीबायटिक है, बहुत असरदार स्टेरायड है कोरोना से मुकाबला करने के लिए।
हमारा एक दोस्त 10 दिन आईसीयू में रहा। होश नहीं रहा उसको। जब होश आया तो डॉक्टर ने कहा -'सरदार जी, दवाएं तो ठीक हैं। लेकिन जब तक आप नहीं चाहेंगे तब तक ठीक नहीं होंगे। आप को खुद अपने को ठीक करने के लिए मेहनत करनी होगी।' दोस्त आजकल घर आ गया है। कमजोरी दूर हो रही है। ठीक हो रहा है।
परसाई जी ने लिखा है -''हड्डी ही हड्डी, पता नहीं किस गोंद से जोड़कर आदमी के पुतले बनाकर खड़े कर दिए गए हैं। यह जीवित रहने की इच्छा ही गोंद है।"
इस बीच कई बार बहुत कुछ लिखने की सोची। लेकिन मन नहीं हुआ। बीच में एक पोस्ट लिखने की सोची थी। संकट के समय में अनजान लोगों ने जिस तरह अनेक लोगों की सहायता की , तन से, मन से, धन से उससे लगा कि जब सारे तंत्र फेल हो जाते हैं, सारे सिस्टम भू लुंठित हो जाते हैं। जब राजनेताओं के बस में सिवाय निर्लज्ज बहानेबाजी, बटोलेबाजी और बयानबाजी के कुछ नहीं बचता ऐसे कठिन समय में भी समाज में ऐसे लोग होते हैं जो इंसानियत के जज्बे से भरे होते हैं। ऐसे लोग चुपचाप अपनी सामर्थ्य भर लोगों की सेवा में लगे रहते हैं। कोई भी समाज इनके कारण ही बचा रहता है।
ऐसे तमाम लोगों को समाज में देखकर लगा कि उनके बारे में लिखते हुए मार्खेज के उपन्यास की तर्ज पर लिखें -'लव एट द टाइम आफ कोरोना।' कोरोना काल में प्रेम।
लिखाई तो जब होगी तब होगी। फिलहाल आप मजे में रहिये। डरिये मत। आक्सीमीटर से ज्यादा अपनी सांस पर भरोसा करिये। जब तक आप चाहेंगे तब तक आपकी सांस चलेगी।
खूब मस्त रहिये। जो होगा देखा जाएगा।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10222393437438234

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