Thursday, May 06, 2021

प्लेग की जगह कोरोना

 


महामारी मुझे इसके सिवा कोई नया सबक नहीं सिखा पाई कि मुझे तुम्हारे साथ मिलकर लड़ना चाहिए। हमसे से हरेक के भीतर प्लेग है, धरती का कोई आदमी इससे मुक्त नहीं है। और मैं यह भी जानता हूँ कि हमें अपने पर लगातार निगरानी रखनी होगी, ताकि लापरवाही के किसी क्षण में हम किसी चेहरे पर अपनी सांस डालकर उसे छूत न दे दें। दरअसल कुदरती चीज तो रोग का कीटाणु है। बाकी सब चीजें ईमानदारी, पवित्रता -इंसान की इच्छाशक्ति का फल हैं-ऐसी निगरानी जिसमें कभी ढील न हो। एक नेक आदमी जो इसमें कभी ढील नहीं देता , किसी को छूत नहीं देता।
-अल्वेयर कामू के उपन्यास 'प्लेग' से।
पिछली सदी में लिखे इस कालजयी उपन्यास को आज पढ़ते हुए लगा कि काफी कुछ वैसा ही घट रहा है, बड़े पैमाने पर, ज्यादा तेजी के साथ। सिर्फ प्लेग की जगह 'कोरोना' ने ले ली है।
नीचे हमारा परिवेश - रास्तों पर जिंदगी बाकायदा आबाद है।


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