Thursday, September 11, 2014

सरकारें भली मानुष होती हैं

आज पुलिया पर फ़िर अजय तिवारी जी से मुलाकात हुयी। देखते ही हाथ को झंडे की तरह लहराकर नमस्ते किये। इतवार को वापस लौटने वाले थे बिलासपुर लेकिन गये नहीं। छुट्टी बढ़ा लिये। बेटा नया नया वकालत करना शुरु किया है। बेटे की वकालत जमाने में सहयोग करने के लिये रुके तिवारीजी उसको कुछ बिल्डरों, ठेकेदारों से मिलवाकर उनके केस बेटे को दिलवा रहे हैं। अदालतों का काम-धाम ऐसे ही चलता रहता है भाई! प्राइवेट कहीं काम करते होते तिवारी जी तो शायद ऐसे छुट्टी बढ़वाकर पुलिया पर बैठे न होते। सरकारें भली मानुष होती हैं। अपने कर्मचारियों को ढेर आजादी देती हैं- काम करने /न करने की।

तिवारी जी के साथ बैठे भाई हमारी ही फ़ैक्ट्री से रिटायर हुये नवम्बर 2013 में। गाड़ी के टायर फ़िट करने वाली असेम्बली लाइन में काम करते थे। पूछा तो बताया कि हमको पहचानते नहीं हैं। अभी अपने फ़ैक्ट्री के क्वार्टर में ही रहते हैं। खाली नहीं किया है।

यह मुलाकात बुर्जुआ पुलिया पर हुई। सर्वहारा पुलिया पर कोई नहीं बैठा था सुबह।


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