Friday, January 18, 2019

पुस्तक मेले के किस्से -3


१. दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं- एक वे जो लेखक होते हैं और दूसरे वे जो लेखक नहीं होते।
२. पूरी दुनिया अदीब और गैर अदीब लोगों में बंटी हुई है।
३. लेखक दो तरह के होते हैं- एक वे जिनकी किताब छप चुकी होती है, दूसरे वे जिनकी नहीं छपी होती।
ये सब बातें हमने तब लिखी थीं जब अपन की कोई किताब नहीं आई थी। विस्तार से बांचने का मन करे तो इधर पहुंचे http://fursatiya.blogspot.com/2012/03/blog-post_12.html
पुस्तक मेले में टहलते हुये लगा कि अपन विमोचन के दर्शक बनने के लिये ही आये हैं। किताबें देख ही नहीं पाये। कई किताबें सोची थी लेने के लिये , ले नहीं पाये। मेला असल में कई दिन घूमने का मामला है। बिना विमोचन-भंवर में फ़ंसे घूमना चाहिये तभी सच्चे मायने में किताबें देख पायेंगे। लेकिन ऐसा हो कहां पाता है।


बोधि प्रकाशन पर निवेदिता भावसार की कविता किताब ’बज रही है डुगडुगी’ और अलंकार रस्तोगी के तीसरे व्यंग्य संकलन’ डंके की चोट पर’ का विमोचन था। निवेदिता की कवितायें अलग तरह की हैं। छुटकी-छुटकी कवितायें बिना पढे रही नहीं जाती। कविताओं की तरह ही उनकी टिप्पणियां भी मनभावन होती हैं। अपनापे भरी। उनकी कविताओं के बिम्ब नये-नवेले टाइप के हैं। पढकर मन खुश हो जाता है। निवेदिता से पुस्तक मेले में पहली मुलाकात हुई। बोधि प्रकाशन से छपी उनकी किताब अच्छी सी कलेवर वाली। अपनी कविताओं के बारे में निवेदिता लिखती हैं:
“एक नार्मल सी जिन्दगी जीते-जीते कविता कब मेरे जीवन का हिस्सा हो गयी, मुझे खुद नहीं पता। पहले प्रेम सी आयी कविता। मेरी हर कविता एक कहानी है और मुझे ये सारी कहानियां आप सभी से ही मिली हैं।"

निवेदिता एक कविता में आह्वान क्या करती हैं देखिये:
“इस धरती पे वास्तुदोष है
पलट दो दिन को रात से सूरज को चांद से
अलग कर दो समंदर से सारी नदियां । समंदर को बांट दो।
आदमियों औरतों से कहो छाल पहनें
सभी अपना नाम बदल रख लें आदम और हव्वा
और पूजें फ़िर से आग को पानी को हवा को।“
’बज रही है डुगडुगी’ के बाद अलंकार रस्तोगी का डंका बजा। अलंकार रस्तोगी व्यंग्य जगत के उन लोगों में से हैं जो निरन्तर सक्रिय होने के साथ काम भर के सुदर्शन भी हैं। उनके तीसरे व्यंग्य संग्रह ’डंके की चोट पर’ का शानदार विमोचन हुआ। सुभाष चन्दर जी , प्रेम जन्मेजय जी और व्यंग्य से जुड़े कई धुरन्दर मौजूद थे। जो नहीं मौजूद थे अलंकार ने बाद में उनके सीने पर अपनी किताब सटवाकर, माइक के सामने बुलवाकर विमोचन में शामिल करा लिया। जो मिला उससे जबरियन अपनी किताब का विमोचन करवा लिया। यहां तक कि अनूप मणि त्रिपाठी को सोते से उठाकर विमोचन करवाया। खैरियत की बात यह कि किसी विमोचन पीडित किसी शक्स ने अभी तक कोई एफ़ आई आर नहीं कराई है अभी तक। वैसे भी 'अनूप' नाम के लोग अनोखे होने के साथ आदतन शरीफ होते हैं।



अलंकार की यह तीसरी किताब है। देखने में तीनों किताबों में यह सबसे खूबसूरत किताब लगती है। लेख भी अच्छे लग रहे हैं। उन पर विस्तार से पढने के बाद। अलंकार को बधाई।
विमोचन के फ़ौरन बाद हमने अलंकार की किताब खरीदकर उस पर उनके दस्तखत कराये। इस बीच कोई कैमरा फ़िर सुभाष जी के सामने लग गया। उन्होंने हमसे किताब लेकर अपने सीने से सटाई और अलंकार के बारे में ’विमोचन-बयान’ जारी किया। बोधि प्रकाशन से निकलने के बाद हमने देखा कि हमारे साथ की ’डंके की चोट पर’ में से अलंकार के ऑटोग्राफ़ गायब है। बिना ऑटोग्राफ़ की किताब बिना किसी पंच के व्यंग्य सरीखी लग रही थी। फ़िर हमें ध्यान आया और हमने सुभाष जी के बैग से किताब बरामद कर ली। अब हमारे पास ’डंके की चोट पर’ की दो प्रतियां थीं। हम किताबों की चोरी चोरी नहीं कहलाती के स्वर्णिम सिद्धांत का पालन करते हुये आराम से दूसरी किताब पचा सकते थे। लेकिन हमने ईमानदारी का परिचय देते हुये बोधि प्रकाशन पर दूसरी किताब वापस कर दी। अब जब वापस कर दी तो बता भी रहें हैं ताकि सनद रहे और ईमानदारी के कुछ नम्बर मिल सकें।

किताबें इधर-उधर होना गैर इरादतन भी होता है। हमने अपनी खरीदी हुई सारी किताबें रुझान प्रकाशन में रख दी थीं। लौटते हुये सभी किताबें बटोर लाये। आने पर देखा कि हमारे साथ दो किताबें ऐसी भी चली आई हैं जो हमने खरीदी नहीं थीं। इनमें से एक निवेदिता भावसार की किताब ’बज रही है डुगडुगी’ है जिस पर निवेदिता ने ’तेज भाई के लिये’ लिखकर ऑटोग्राफ़ दिये थे। दूसरी किताब सूर्यबाला जी का व्यंग्य संकलन है –देश सेवा के अखाड़े में। इस पर कोई नाम नहीं लिखा है इसलिये पता नहीं है किसकी किताब है। तेज भाई से बमार्फ़त निवेदिता अनुरोध है कि वे अपना पता भेजें तो हम उनको किताब भेज देंगे , डाकखर्च भी हम ही उठा लेंगे( लापरवाही की इतनी सजा तो मिलनी ही चाहिये)। सूर्यबाला जी की किताब भी जिनसे छूट गयी हो रुझान प्रकाशन पर उनको भी पता लेने पर भेज देंगे अपनी तरफ़ से।
जब हम बोधि प्रकाशन पर थे तब ही हमारी एक पोस्ट पर बजरंग बिश्नोई जी का कमेंट आया कि उनकी कविता की किताब ’मेरी नाव तैयार है’ बोधि प्रकाशन पर मौजूद है। हमने उसे भी खरीदा। इसके अलावा अंशु प्रधान की किताब ’हुक्काम को क्या काम’ और विवेक कुमार मिश्र की कविता पुस्तक ’कुछ हो जाते पेड़ सा’ भी ली। लीलाधर मंडलोई जी ने किताबों का विमोचन का काम किया। उनकी ’राग सतपुड़ा’ भी ली। किताब का समर्पण देखिए:
’सतपुड़ा’ के लिये
जो हमारा
पुरखा है।
मुझे लगा यह किताब कविताओं की होगी। लेकिन इस किताब में सतपुड़ा से जुडी स्मृतियां हैं। गद्य गीत से छुटके-छुटके लेख आत्मीय लेख। इन लेखों का रचना समय २०१६ है। पढते हुये बहुत अच्छा लग रहा है।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10215979262087859

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