Thursday, January 17, 2019

पुस्तक मेले के किस्से-2

"दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद

धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद ।"
बाबा नागार्जुन की ये कविता पंक्तियां अनायास याद आईं सुभाष चन्दर जी Subhash Chander अमित शर्मा Amit Sharma की किताब का विमोचन करते हुये अपनी बात कह रहे थे। ' बहुत दिनों बाद' कई बार आया वक्तव्य में तो यह कविता याद आई। सुभाष जी ने अमित शर्मा की तारीफ़ करते हुये कहा-’मित्रों बहुत दिनों के बाद अमित शर्मा के रूप में ऐसा व्यंग्यकार सामने आया है जिसको शिल्प की समझ है, जिसको विट और आयरनी में अन्तर पता है, जिसको हास्य और व्यंग्य में अन्तर पता है। उन्होंने अमित शर्मा को अलंकार रस्तोगी Alankar Rastogi, अनूप मणि त्रिपाठी Anoop Mani Tripathiऔर शशिकांत सिंह 'शशि' की बाद की पीढी का रचनाकार बताते कहा-’अखबारों में छपे यह अच्छा है, खूब लिखें यह अच्छा है लेकिन और आगे जाने के लिये लम्बा लिखना होगा, व्यंग्य कथायें लिखें, सरोकारी व्यंग्य लिखें।
सुभाष जी ने इत्ती गम्भीर बातें कहते हुये बीच में ’बिचल्ला’ जोड़ दिया और कहा-’ जो लोग मुझे जानते हैं वे अच्छे से जानते होंगे कि मैं आराम से झूठ नहीं बोलता और खासकर तब तो जरूर बोलता हूं जब अनूप शुक्ल पीछे खड़े हों।’
अब आप लगाते रहिये मतलब इस बात का लेकिन यह तय नहीं हो पायेगा कि सुभाष जी की इस बात का मतलब क्या था ! क्या वे वहां झूठ बोल रहे थे? क्या वे आराम से नहीं थे? इस वाक्य की विस्तार से व्याख्या की आवश्यकता कि कवि वास्तव में कहना क्या चाहता है?
यह लिखते हुये एक जुमला भी आ गया जेहन में जिसका लब्बो और लुआब है -’लेखक के बारे में सबसे ज्यादा झूठ उसकी किताब के विमोचन के मौके पर बोला जाता है।’
विमोचन के बाद अमित ने सहज ही विनम्रता से अपनी बात कही। बताया कि वे पिछले ढाई साल से व्यंग्य के इलाके में आये हैं। अभी व्यंग्य के विद्यार्थी हैं। व्यंग्य के दिग्गजों से सीखते हुये आगे बढने की कोशिश करेंगे। वनिका प्रकाशन और सुभाष जी और अन्य मित्रों को भी उन्होंने धन्यवाद दिया।
अलंकार रस्तोगी ने भी उनके बारे में बताते हुये कहा -’यह उनका पहला व्यंग्य संकलन है। कम समय में उनके व्यंग्य लेखन को देखकर लगता है वे मुकम्मल तैयारी के साथ आये हैं व्यंग्य के मैदान में। उनके पंच दूर तक मार करते हैं। आशा है वे अपने पूर्वजों की परम्परा को आगे बढायेंगे।
कमलेश पाण्डेय जी Kamlesh Pandey ने भी अमित की तारीफ़ करते हुये कहा- ’ अमित के कुछ लेख फ़ेसबुक पर पढे। उन्होंने बरबस ध्यान आकर्षित किया। उनके लेख के शीर्षक कैची होते हैं। आशा है वे बड़ी रचनायें लिखेंगे।
इसके बाद सुभाष जी ने अनूप शुक्ल को बोलने के लिये कह दिया। अनूप शुक्ल का हलक सूख गया। वे बोलने से बचने के लिये ही पीछे हो गये थे। विमोचन के पहले अमित शर्मा को पीछे से लगभग जबरियन आगे लाये थे अनूप शुक्ल। खुद पीछे हो गये थे। अमित शर्मा को अनूप शुक्ल आगे न लाते तो क्या पता किताब का विमोचन हो जाता और लेखक पीछे रह जाता। वीडियो और फ़ोटो में लेखक नदारद रहता।
बहरहाल जब नाम बुला ही दिया गया तो कुछ कहने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था तो अनूप शुक्ल ने कहा-’अमित जी के व्यंग्य संग्रह की डिलीवरी लेने के लिये मैं कानपुर से यहां आया हूं। उनको शुभकामनायें। सुभाष चन्दर जी नये लोगों को फ़ंसा देते हैं। जहां कोई नया लिखता है वे कहते हैं बड़ा लिखें। इस चक्कर में आदमी घबड़ा जाता है। मैं अमित जी से कहना चाहता हूं कि इनके झांसे में न आयें जैसा मन आता हो वैसा लिखें। ये फ़ंसाने वाले गुरु जी लोग हैं। कोई छोटा लिखेगा, अच्छा लिखेगा तो ये कहेंगे बड़ा लिखो। आप इन सबके झांसे में आये बिना जो मन आये वो लिखिए। खूब लिखिए। अगले साल खूब किताबें आयें।'
इसके बाद अनूप शुक्ल ने विमोचन के बाद अमित शर्मा की किताब का पहला ग्राहक होने का सुख हासिल करते हुये अमित शर्मा से दस्तखत कराये किताब पर। अमित शुक्ल ने किताब पर लिखा -’आदरणीय अनूप सर को सप्रेम’। प्रेम तो ठीक लेकिन कोई समझेगा कि किताब सप्रेम भेंट की गयी है। लेकिन यह प्रेम मुझे १९० रुपये का पड़ा। १५० पेज की किताब १९० रुपये में मतलब एक पेज प्रेम एक रुपये छब्बीस पैसे का पड़ा।
प्रेम और स्नेह के दाम वसूलने की हिन्दी व्यंग्य लेखकों में पुरानी परम्परा है। परसाई जी ने अपनी डेढ रुपये की पहली किताब अपनी अभिन्न मित्र मायाराम सुरजन को भेंट करते हुये लिखा-’ मित्र मायाराम सुरजन को सस्नेह।’ मायाराम सुरजन जी ने दो रुपये दिये थे। अठन्नी वापस मांगी तो परसाई जी ने कहा- ’अठन्नी का स्नेह नहीं हो गया क्या?’ तो इस तरह अमित शर्मा हमारी खरीदी को हमको प्रेम सहित देकर अपने पूर्वजों की परम्परा से जुड़ गये।
यह तो हुई अमित की किताब की विमोचन की बात। अब किताब पर इंशाअल्लाह अलग से लिखा जायेगा। जल्ली ही।
इसके बाद और किताबों के साथ सुशील सिद्धार्थ जी के आह्वान पर लिखी गयी किताब ’व्यंग्यकारों का बचपन’ का भी विमोचन हुआ। कई महत्वपूर्ण और सक्रिय व्यंग्यकारों की बालकुंडली इस किताब में है। जिस समय यह किताब बन रही थी उस समय सुशील जी हमसे तन्न-भन्न मुद्रा में थे इसलिये हमसे लेख मांगा नहीं उन्होंने। किताब बहुत अच्छी बनी है। सुशील जी होते तो बहुत खुशी से सबको इस पर लिखने के लिये कहते लेकिन वे अपनी अनुपस्थिति में ही वहां सबकी यादों में हैं।
वनिका प्रकाशन के बाद अपने रुझान प्रकाशन की तरफ़ बढे जहां हमारा प्रकाशक हमारे इंतजार में था। कुश Kush Vaishnav की तबियत कुछ गड़बड़ थी। नया नवेला प्रकाशक बेचारा गुमटी भर की जगह के ४०००० रुपये चुकायेगा तो बीमार तो पड़ेगा ही। मुझे लगता है जो भी छोटे प्रकाशक आते हैं उनमें से कई तो किराये भर की किताबें बेंच नहीं पाते होंगे। आयोजक सरकार है इस मेले की। मुझे लगता है प्रकाशकों से इतना ज्यादा किराया लेना पुस्तक संस्कृति के प्रसार के लिये गड़बड़ है।
इस बीच किसी चैनल के नौसिखिया पत्रकार ने कमलेश पाण्डेय जी की किताब ’ बसंत की सेल्फ़ी’ और मेरी किताब ’सूरज की मिस्ड कॉल’ पर हमारी बातचीत रिकार्ड की। दोनों नौसिखिया। उसकी आवाज धीमी हमारी रिकार्डिंग हड़बड़िया। नतीजा दो नौसिखियों के गठबंधन से गड़बड़ाई एक रिकार्डिंग नेट पर आ गई।
तब तक समय हो गया था अलंकार रस्तोगी की किताब ’डंके की चोट पर’ के विमोचन का। उधर से बुलौवा आ रहा था। उसके किस्से फ़िर कभी।
अमित शर्मा के विमोचन पर कही बात मैंने याद से लिखीं। पूरी और सही बातें सुनने के लिये संबंधित वीडियो देखें जिसका लिंक यह है।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10215973098853782

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