Monday, January 21, 2019

पुस्तक मेले के किस्से-4




बोधि प्रकाशन पर विमोचन तक दोपहर हो चुकी थी। सुबह का खाया हुआ ठिकाने लग चुका था। पेट ने हल्ला मचाना शुरु कर दिया था। इधर से उधर टहलते हुये थकान ने भी अपना जलवा दिखाना शुरु कर दिया था। बोधि पर ही निर्मल गुप्त जी Nirmal Gupta मिले। वे कोई बैठने की जगह तलाश रहे थे। मेले में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी। पुस्तक मेला इस मामले में मॉल्स की तरह ही था जहां सिर्फ़ बेचने-खरीदने की सिलसिला होता है। तसल्ली से बैठने का कोई जुगाड़ नहीं। मॉल्स की परिकल्पना करने वालों को लगता होगा कि एक बार कोई बैठ गया तो बिक्री का सिलसिला रुक जायेगा। वही हाल पुस्तक मेले का था।

इस बीच आलोक पुराणिक जी Alok Puranik पधार चुके थे। गले में रंगीन मफ़लर फ़ंसाये हुये अपने प्रशंसकों से घिरे आलोक पुराणिक जी ने कई दुकानों पर मुफ़्त में किताबों का साथ फ़ोटो खिंचाये। किताबों के बारे में राय जाहिर की। आपसी बातचीत में जुम्लेबाजी भी की।
रेशू वर्मा Reshu Verma भी वहां मौजूद थीं लेकिन इस बार उनकी ’कैमरा-तोप’ साथ नहीं थी। रेशू के भाई जी भी साथ में थे। रेशू ने आलोक पुराणिक जी को इस बात के लिये काम भर का शर्मिन्दा किया कि वे अभी तक अपन को किसी बचत और निवेश की इस्कीम में पैसा लगाने के लिये अभी तक राजी नहीं कर पाये। असल में लेखन तो आलोक पुराणिक जी का साइड बिजनेस है उनका असल काम तो लोगों को बचत और निवेश के लिये उकसाने का है। उसी में भाई जी फ़ेल हुये अभी तक। आलोक जी ने उसी समय प्रण किया कि अनूप शुक्ल के पैसे जल्दी ही ठिकाने लगवाकर दिखायेंगे। लेकिन अनूप शुक्ल के पैसे भी कम चालाक थोड़ी हैं। किसी निवेश इस्कीम के हमले पहले ही वे बाजार के बंकरों में जाकर छिप गये हैं। बाजार पैसे का मायका होता है न ! पैसे को मौका मिलते ही वह अपने मायके फ़ूट लेता है।

लेखक मंच के पास खड़े बतियाते हुये NotNul नाटनल वाले Neelabh Srivastav मिले। उन्होंने सुखद-सूचना दी कि हमारी पहली किताब ’पुलिया पर दुनिया’ की कुछ रॉयल्टी मिलनी है मुझे। हमने बिना सोचे तय किया कि बाकी किताबें भी नॉटनल पर चढवायेंगे। नॉटनल की एक इस्कीम आई है जिसमें आप 999 रुपये में साल भर पत्रिकायें आनलाइन पढ सकते हैं। इसका सदस्य बनना है।
वहीं पर राजीव तनेजा जी से मुलाकात हुई। ब्लॉगिंग के दिनों के साथी। अनेक मजेदार यादें उनके साथ जुड़ी हैं। मिलना पहली बार हुआ। उनकी किताब ’फ़ैलसूफ़ियां’ पिछले साल आई थी। इस साल एक और आ गयी। पास ही स्टॉल पर उनकी किताबें थीं। साथ जाकर किताबें खरीदकर उनके दस्तखत झटके। फ़ोटो भी खिंचाये गये।
इस बीच भूख की फ़ौजों ने पेट को हर तरफ़ से घेर लिया था। समर्पण के अलावा कोई चारा नहीं था। Kamlesh Pandey जी भी पेट की आग से हलकान थे। हम दोनों बाहर निकले। पास ही दुकान से छोले-भटूरे और चाय की पर्ची कटवाई। 100 रुपये के दो छोले-भटूरे तीस रुपये की चाय। छोला भटूरा धड़ल्ले से बिक रहा था। बिना विमोचन और बिना हलवाई के ऑटोग्राफ़ के। किसी भटूरे पर हलवाई के दस्तखत –सप्रेम, सस्नेह, प्यार सहित के साथ नहीं दिखे। केवल तेल की टपकती हुई बूंदें। 30 रुपये की चाय ढाबे की चाय की मुकाबले छह गुना मंहगी। भटूरे तो हमने जल्दी-जल्दी हड़बड़ाते हुये खा लिये। हड़बड़ी का आलम ऐसे समझिये जैसे कोई सिद्ध विमोचक विमोचन समय बोलने के पहले किताब के पन्ने पलटकर देख ले। इसके बाद किताब के बारे में बोल दे।

छोले-भटूरे खाने में हड़बड़ी का कारण भावना प्रकाशन पर होने वाला विमोचन था। अर्चना चतुर्वेदी और Samiksha Telang की किताब के विमोचन का समय हो गया था। अर्चना चतुर्वेदी का पहला उपन्यास ’ गली तमाशे वाले’ आ रहा था तो समीक्षा तैलंग का पहला व्यंग्य संग्रह ’जीभ अनशन पर है’ का विमोचन था। समीक्षा हमारे बचपन के मित्र विकास तैलंग के घर-परिवार से हैं। लिखती वे पहले भी थीं लेकिन उनके ही अनुसार फ़ेसबुक पर ’व्यंग्य की जुगलबंदी’ में शामिल होने के बाद उनके लेखन में गति आई। ऐसा और लोगों ने भी कहा है। मजे की बात कि व्यंग्य की हर गतिविधि पर नजर रखने वाले लोगों ने इस बात को नोटिस नहीं किया।
समीक्षा के घर-परिवार के अधिकतर लोग संगीत के धुरन्धर हैं। ग्वालियर घराने से जुड़े हैं। समीक्षा अपनी पीढी की अकेली लेखिका हैं इसलिये उनके घराने में उनका जलवा और खुशी का कारण बनी है उनकी किताब।
समीक्षा के व्यंग्य संग्रह की भूमिका व्यंग्य की दुनिया के धुरंधर प्रेम जन्मेजय, Subhash Chander और Alok Puranik ने लिखी है। आगे-पीछे फ़्लैप पर Vivek Ranjan Shrivastava और Udan Tashtari समीर लाल की सम्मतियां हैं। मतलब पहली किताब गाजे-बाजे के साथ आई है। अर्चना चतुर्वेदी का उपन्यास भी धड़ल्ले से बिक रहा है। प्रकाशक ने खुद बताया कि आते ही 250 प्रतियां बिक गयीं। उपन्यास पर लोगों की रोचक प्रतिक्रियायें आ रही हैं। एक मित्र ने बताया –’ अच्छा लग रहा है उपन्यास। अपने गुरु से तो बढिया लिखा है अर्चना ने।’ गुरुजी मतलब कौन ? पूछते ही फ़ोन कट गया। पता चला बैटरी खल्लास हो चुकी थी। दुबारा लगाने पर फ़ोन लगा ही नहीं। इसलिये गुरुजी का खुलासा नहीं हो पाया।

अरे हम भी कहां विमोचन के किस्से सुनाने लगे। जबकि अभी तो हम छोले-भटूरे की दुकान पर थे। भूख का संहार करते हुये हम गरम भटूरे को कम गरम छोले के साथ ठिकाने लगा रहे थे कि लगा हम लेट हो गये। और स्पीड से भटूरे उदरस्थ करते हुये, भटूरे के मोटे किनारे प्लेट में छोड़ते हुये हम जल्दी से थर्मोकोल की प्लेट को कूड़ेदान के हवाले करके मेले की तरफ़ चल दिये। चाय छोड़ दी। मेले में घुसे लेकिन भावना प्रकाशन नहीं मिला। खो गया हो कहीं मानों। मेला एकदम भूलभुलैया हो गया। कई मोड़ घूमने के बाद जब पहुंचे तब तक किताबों का विमोचन हो गया था। कुछ विमोचक किताबों के बारे में बोल चुके थे। मिठाई का दौर शुरु हो चुका था। हमने भी कुछ बोला समीक्षा की किताब के बारे में। यह भी कहा कि बहुत दिनों बाद उनके लिखने का अनशन टूटा है। आशा है अब वे निरंतर लिखती रहेंगी।
अर्चना जी की किताब के बारे में प्रेम जनमेजय जी, Subhash Chander जी, डॉ DrAtul Chaturvedi जी Alok Puranikऔर अन्य लोगों ने अपनी राय रखी। विमोचन स्थल पर Shashi Pandey शशि पाण्डेय भी थीं। उनकी किताब पर लिखने और उनका इंटरव्यू लेने के मेरे वादे की याद उन्होंने। मैंने फ़िर से वादा किया कि जल्दी ही लिखेंगे और इंटरव्यू भी होगा जल्दी। शशि और समीक्षा एक साथ खड़ीं थीं। मैंने उनकी फ़ोटो ली। कैमरा बेचारा 'संयुक्त सौंदर्य' से चौंधिया सा गया। विमोचन के बाद तो और भी फ़ोटोबाजी हुई। पुस्तक मेले में लेखकों के साथ सबसे ज्यादा फ़ोटोबाजी घटनायें होती हैं। समीक्षा के पति सुयश की , जिनको समीक्षा ने अपनी किताब भी समर्पित की है, इस मामले में चकाचक तारीफ़ करनी होगी कि वे विमोचन के लिये अबूधाबी से साथ आये। तारीफ़ तो अर्चना चतुर्वेदी के पतिदेव की भी खूब करनी बनती है जिन्होंने न सिर्फ़ बकौल अर्चना चतुर्वेदी –“मेरे खोये-खोये रहने को झेला...वक्त-बेबक्त खाना खाया (कई बार बनाकर भी) घर के बुरे होते हाल को बर्दाश्त किया, उपन्यास की कमियां और खूबियां गिनाईं पर मुझ पर भरोसा रखा और मेरा पूरा पूरा सपोर्ट किया” बल्कि विमोचन के समय पूरी फ़ोटोग्राफ़ी/वीडियोग्राफ़ी की।
इस शानदार विमोचन के बाद अपन एक बार फ़िर रुझान प्रकाशन की दुकान की तरफ़ टहलते हुये आ गये। इसके बाद सुभाष चंदर जी की किताब हंसती हुई कहानियों का विमोचन भी होना था।

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