Monday, April 17, 2017

चुनाव के बाद ईवीम



चुनाव के बाद वोटिंग मशीने सुस्ता रहीं थी। आपस में अपने-अपने किस्से सुना रही थीं। लोगों ने कैसे उनका उपयोग किया। कैसे वोट डाला। कैसे दबाया। कैसे सहलाया। आइये सुनाते हैं कुछ उनकी गप्पागाथा:
ईवीएम 1: एक वोटर ने तो इत्ती जोर से बटन दबाया कि अभी तक दर्द कर रहा है। लगता है अगले चुनाव में चल न पायेंगे हम।
ईवीएम 2: याद आ रही है क्या उस वोटर की?
ईवीएम 3: अरे उसकी याद की कड़ाही में तू काहे अपनी जलेबी छान रही है? तुमको किसी की याद नहीं आती तो क्या किसी को नहीं आयेगी? क्यों री दर्द कैसा हो रहा है मीठा कि खट्टा?
ईवीएम 1: भक्क उस तरह वाला दर्द थोड़ी हो रहा। तुम तो सबको अपनी तरह समझ लेती हो। सबके भाग्य में वो मीठा-खट्टा दर्द कहां?
इस गप्पाष्टक को एक बुढिया ईवीएम मशीन दूर से सुन रही थी। अंजर-पंजर ढीले होने के चलते उसको चुनाव में ले नहीं जाया गया था। ऊंचा सुनती थी । इसीलिये दूर की बातों पर कान लगे रहते थे।
बुजुर्गा ईवीएम आवाज में बोली- ’सुना है तुम लोगों से कुछ छेड़छाड़ हुई वहां चुनाव में। तुम लोग भी छेड़छाड़ में इत्ती बेसुध हुई कि वोट दिये किसी और को गये पर तुमने गिनाये किसी और के नाम।’
छेड़छाड़ के नाम से ईवीएम मशीने एकदम प्याज-टमाटर की तरह लाल हो गयीं। (बुजुर्ग और सांवली मशीने प्याज की तरह, युवा और गोरी टमाटर की तरह) लेकिन उनको लगा कि लाल होने से काम नहीं चलेगा तो सफ़ाई देने लगीं। वैसे भी जिन महिलाओं से छेड़छाड़ होती है उसके जिम्मे सफ़ाई देने का ही काम बचता है।
वे बोलीं-- ’हम लोग कोई ऐसी-वैसी मशीन थोड़ी हैं। हमको कौन छेड़ेगा। हम कोई खूबसूरत टाइप मशीन भी नहीं जो हमको कोई छेड़े। खूबसूरत होती तो कोई हीरो-हीरोइन हमारा विज्ञापन करता। भले घर की लड़कियों की तरह हम चुनाव आयोग के गोदाम से सीधे पोलिंग बूथ जाते हैं वहां से सीधे वापस आ जाते हैं। कहीं इधर-उधर ताकते तक नहीं। झांकने की तो बात ही छोड़ दो। ’
सफ़ाई से बुजुर्ग ईवीएम मशीन और उत्साहित हो गयी। बोली-’ लेकिन जब हवा उड़ी है तो कुछ तो बात हुई ही होगी कि छेड़छाड़ का हल्ला है। हमने भी चुनाव करवाये हैं। हमको भी लोगों ने दबाया है। इधर-उधर थपथपाया है। किसी-किसी ने तो पटका भी है। खटखटाकर भी वोट डाला है लेकिन मजाल है जो आजतक किसी ने छेड़छाड़ की हो। तुम लोगों ने जरूर कुछ ऐसा किया होगा जो छेड़छाड़ की खबर फ़ैली। लाख समझाओ लेकिन तुम लोग मनमानी से बाज कहां आते हो। ये नयी हवा का असर है।’ बुढिया ईवीएम बड़बड़ाते हुये खांसने लगी।
फ़िर तो सब ईवीएम मशीने छेड़छाड़ का आरोप लगाने पर फ़िरंट हो गयीं। पता लगा कि मशीनों से छेड़छाड़ का आरोप लगाने वाले वही लोग थे जो हार भी गये थे। उनको इस बात से तसल्ली हुई कि जीते हुये लोगों ने उन पर छेड़छाड़ का आरोप नहीं लगाया।
फ़िर तो ईवीएम मशीनों के सुर बदल गये। वे ठिठोली करते हुये बतियाने लगीं।
बकने दो हरंटो को। सरकार तो हमारे समर्थन में होगी।
तब क्या एक ने नारा लगाया:
"जिसके साथ खड़ी हो सरकार
उसको कौन बात का डर यार।"
जिसने हम पर छेड़खानी की बात कही उसको अगले चुनाव में टिकट न मिले।
अरे नहीं री। टिकट तो मिले लेकिन टिकट के दाम दोगुने हो जायें।
और टिकट जिस इलाके से मिलें उस इलाके में उसको कोई जानता न हो।
फ़िर तो वो जीत जायेगा बे। लोग उसकी करतूतें जानेंगे नहीं तो भला समझ कर जिता देंगे।
दिन भर इसी गपड़चौथ में जुटी एवीएम मशीनों ने शाम को महसूस किया कि वे तो अपनी छेड़छाड़ के ही किस्से में जुटी रहीं।
एक बोली- ’इस चुनाव में हम ईवीएम के हाल तो रजिया की तरह हो गये तो जो नेताओं के चक्कर में फ़ंस गयी हो।’
अबे रजिया तो गुंडों के बीच फ़ंसी थी। -दूसरी ने सुधारने की कोशिश की।
हां यार। रजिया की किस्मत अच्छी थी जो गुंडों के बीच फ़ंसी थी। हमारे ही करम फ़ूटे हैं जो नेताओं के बीच फ़ंस गये।- तीसरी न कहा।
ये क्या आंय-बांय-सांय बक रही है तू। क्या चुनाव सभा में भाषण दे रही है। गुंडों के बीच फ़ंसना अच्छी किस्मत है? - चौथी ने हड़काया।
नेताओं के बीच फ़ंसना तो गुंडों के बीच फ़ंसने से सौ गुना बेहतर है यार- दूसरी ने समझाया।
कैसे ? -कईयों ने एक साथ पूंछा।
गुंडों का कुछ तो दीन-धरम होता है। गुंडा जब अपने दीन-धरम छोड़ देता है तो नेता हो जाता है।’- दूसरी ने अनुभवामृत बांटा।
सही कह रही है तू। लेकिन इस बात को बाहर किसी से कहना नहीं वर्ना लोग जीना दूभर कर देंगे। अभी छेड़छाड़ की बात कही फ़िर न जाने क्या गत करायें हमारी। नेताओं का कोई भरोसा नहीं आजकल।
हमको तो नेताओं से ज्यादा उनके पिछलग्गुओं से डर लगता है।
न जाने कौन जनम के पाप थे तो हम ईवीएम मशीन बने। एक ईवीम मशीन ने अपना मत्था ठोंकते हुये कहा।
एक भक्तिन टाइप ईवीएम मशीन रामचरित मानस की चौपाइयां बांचने लगी:
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा
जो जस करै तो तस फ़ल चाखा।
दूसरी पैरोडीबाजी करने लगी:
कोऊ नृप होय हमें का हानी
ईवीएम छोड़ न होइहैं रानी।
हम ईवीएम मशीनों को उनके हाल पर छोड़कर चले आये। कर भी क्या सकते थे?
व्यंग्य की जुगलबंदी -30

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