Wednesday, April 05, 2017

ये हमारे घर वालों से पूछो




'अरे औरतों ने छीन लिया कट्टा और अड़ा दिया मैनेजर के। बोली -धाँस देंगे गोली सीने में।'
चाय की दुकान पर बैठा आदमी महिलाओं द्वारा दारू की दुकानें बन्द कराने के किस्से सुना रहा था। शराब बंदी को लेकर बयान जारी कर रहे थे लोग।
पता चला कि महिलाओं ने हाई वे पर चलने वाले एक दर्जन से ज्यादा शराब के ठेके बन्द करा दिए। एक जगह सेल्समैनेजर को पकड़कर ठोंक दिया।
'अरे जिसको पीनी है वो साला जहां मिलेगी वहां से लेकर पियेगा।'
'दारू बन्द हो गयी तो लोग कच्ची पिएंगे। और मरेंगे। अभी ठेके पर कम से कम ठीक-ठाक तो मिलती है।'
'अरे जिसको छोड़नी होती है वो खुद छोड़ता है। कोई छुड़वा नहीं सकता। हमने छोड़ी , पांच साल हुए हाथ नहीं लगाया।'
हमने पूछा कैसे छोड़ी?
वो बोला-'ये हमारे घर वालों से पूछो। हमने तो बस छोड़ दी।'
आगे मंदिर के पहले यादव मिष्ठान्न भण्डार में जलेबी छन रही थी। भजन कैसेट बज रहे थे।
गंगा तट पर जाने वाली सड़क के दोनों किनारों पर लोग सो रहे थे या अलसाये से अंगड़ाई ले रहे थे। सुलभ शौचालय में नहाने और निपटने का रेट 5 रुपये लिखा था।
रिक्शा वाले मालिक सुरेश अपने ठीहे पर टहल रहे थे। रिक्शे वाले निपटने, नहाने गए थे। हरदोई वाले रिक्शेवाले का नाम पता चला गुड्डू।
नीचे उतरकर पैदल पुल की तरफ गए। लोहे के गर्डर पर बना पुल आवाजाही के लिए बंद हो चुका है। एक फुट ऊंचाई पर लोहे का बैरियर लगा है। लेकिन पैदल और साइकिल वाले उचककर निकल जाते हैं।
पुल खुली सुरंग की तरह है। दांयी तरफ सूरज भाई गंग स्नान कर रहे थे। जहां उतरे नदी में वह जगह लाल सिंदूरी कर दी। बायीं तरफ एक महिला रेलिंग के सहारे खड़ी थी। कुछ देर बाद हाथ दोनों तरफ फेंकते हुए कसरत करती हुई आगे चली गयी। नीचे नदी में नाव चला रहे थे लोग। एक बुजुर्ग तसल्ली से नहा रहे थे। आगे एक महिला पानी में कमर तक उतरकर नहाने लगी।
हम भी नीचे गए। नदी तक। किनारे के कुछ घरों में ताला लगा था। कुण्डी, किवाड़, कुलुप (ताला) वाला घर अगर खुला होता तो और खूबसूरत लगता। एक घर के बाहर एक महिला औंघाई सी नदी को निहार रही थी। किराये पर रहती है। आजमगढ़ से आई है। पहले पास दूसरी जगह किराये पर रहती थी। यहाँ कुछ दिन हुए आई है। अंदर एक महिला और एक बच्चा देहरी को तकिया बनाये सो रहे थे।
इस बीच एक और आदमी लपकता हुआ ऊपर की तरफ आया। बताया सुल्तानपुर से आये थे 40 साल पहले। यहां PWD में नौकरी करते हैं। झोपड़ियों में टीन, टप्पर, मोमिया के साथ डिश एंटीना शोभायमान हो रहा था।
देखकर लगा कि विकास एक रेखीय नहीं होता। उछलता, कूदता, फांदता , जहां जगह मिली वहां सींग घुसाता चला आता है।
नदी किनारे नहाते बुजुर्ग कपडे सहेजते हुए वापस चलने की तैयारी कर रहे हैं। साथ के बर्तन और बोतल में गंगाजल भर रहे हैं। पानी को हिलाते हुए गन्दगी बचाकर पानी बोतल में भरते हैं। साबुन की बट्टी को गंगाजल से धोकर वापस चल देते हैं।
लौटते हुए देखते हैं ऊंचाई पर गायों के तबेले हैं। गायों का गोबर वहीँ इक्ट्ठा है। बारिश में सब गंगा में मिलता होगा।
किनारे की दुकान पर एक महिला घूँघट काढ़े झाड़ू लगा रही थी। शायद ससुराल वाले बड़े-बुजुर्ग कहीं आसपास निगरानी कर रहे हों उसकी।
सड़क किनारे चारपाई पर बैठे कुछ लोग बीड़ी सुलगाते हुए किसी बात पर अबे-तबे करते हुए बतिया रहे थे।
आगे सड़क किनारे एक मियां बीबी मंजन कर रहे थे। तसल्ली से दांत चमका रहे थे। हम उनसे बतियाने लगे तो आदमी खड़ा हो गया। हमसे चारपाई पर बैठने को कहा। लेकिन हम खड़े-खड़े ही बतियाते रहे।
बात करने के लिहाज से मैंने पुछा-'ये भड़भूँजा कहां से लिया।'
बताया -'कोपरगंज से। दो साल पहले सफीपुर से आये थे। यहीं सड़क किनारे चना, लइया, मूंगफली भूँजकर बेंचते है।' ठेलिया पंचर खड़ी थी। बताया- 'जाड़े में मूंगफली बेंचते हैं।'
महिला से हमने पूछा-'तुम भी अनाज भूंज लेती हो'?
'सब कर लेइत हन। देहात के हन। सब आवत है हमका'-उसने जबाब दिया।
शादी कब हुई? पूछने पर बताया-'20 साल हुईगे होइहैं। अब तौ लड़िका भी शादी लायक हुईगा।दुई लड़िका हैं।'
आदमी ने कहा -'20 नहीं 22 साल हुए शादी के।'
लड़का अभी पढता है। हमने पूछा -किस क्लास में ? तो बोली-'अब ई हमका नाईं पता। हम पढ़े नाई हन।'
नाम पूछने पर बोली-'नाम कुछ नाईं है हमार। नाम हेरा गा है।'
(हमारा नाम कुछ नहीं है। नाम खो गया है।)
आदमी से पूछा तो उसने कहा-' बिना नाम कौन होता है दुनिया में! बताया -' अनीता नाम है इनका।' खुद का नाम रमेश बताया।
बारिश में कैसे रहते हैं झोपड़िया में? -हमने पूछा।
'यहीं रहते हैं। मोमिया कस लेते हैं।' -रमेश ने बताया।
नहाने-धोने का काम यहीं झोपडी में करते हैं। झोपडी से निकला पानी समाजवादी साईकल पथ से होता हुआ गंगा में मिल जाता है।
रोजी-रोटी की तलाश में आदमी यायावर हो जाता है। कोई सफीपुर से गंगाघाट चला आता है, कोई कानपुर से कैलिफोर्निया चल देता है।
लेकिन हम अभी यायावर नहीं घरैत हैं। घर लौटते हैं। चाय पीते हुए पोस्ट लिखते हैं। आप पढ़ रहे हैं। बताइये कैसा लगा आज का सुबह का रोजनामचा।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10211024748588118

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