Friday, March 29, 2019

एक का मलबा दूसरे के नींव



सुबह की बात ही कुछ और होती है। शहर अंगड़ाई लेते हुए उठ गया। बच्चे स्कूल की तरफ लपक लिए। बड़े दिहाडी कमाने निकल लिए।
एक बुजुर्ग रिक्शे वाला एक महिला को ले जा रहा है। महिला अकड़ के साथ बैठी है। रिक्शा वाला सर झुकाए रिक्शा खींच रहा है। दोनों की आर्थिक स्थिति एक जैसी है। लेकिन बैठने और खींचने की स्थिति ने दोनों की मुखमुद्रा अलग कर दी।
नुक्कड़ पर नाई अपने ग्राहक की दाढ़ी गीली कर रहा है।गाल सहलाते हुए पहले पानी से । फिर से साबुन से। इसके बाद छीलेगा। सहलाने, गीला करने के बाद छीलने में दर्द नहीं होता। बाजार की ताकतें ग्राहकों को इसी तरह छीलती हैं।
सड़क पार दो पिल्ले एक कपड़े के चिथड़े को मुंह में दबाए एक -दूसरे से छीनने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों के दांत शायद अभी दूध के हैं। इसलिए कपड़ा फटा नहीं है। दोनों पिल्ले कपड़ा अपनी-अपनी तरफ खींच रहे हैं। कुछ देर में एक पिल्ला कपड़ा छोड़कर फूट लिया। कपड़ा दूसरे के दांत में लत्ते की तरह लटक गया। वह भी उस लत्ते को वहीं छोड़ इधर-उधर लोटने लगा।

पिल्लों की हरकतें प्राइम टाइम के बहसवीरों जैसी लगीं। कुछ देर एक मुद्दे पर को अलग-अलग खींचना। बहस बाद मुद्दे को लत्ते की तरह छोड़कर नई बहस के लिए निकल लेना।
बगल में एक बच्चा ऊपर कमीज पहने और नीचे से दिगम्बर पिल्लों की कुश्ती कौतूहल से देख रहा था। अधनंगा बच्चा चुनाव के समय दो धुर विरोधी पार्टियों के गठबंधन सरीखा लग रहा था। जैसे एक कपड़े वाली पार्टी ने किसी दिगम्बर दल से गठबंधन करके अधनंगा गठबंधन कर लिया है।
कुछ बच्चे सीवर लाइन का ढक्कन खोले उसमें से गंदगी फावड़े से निकालकर सड़क पर जमा कर रहे थे। सीवर बजबजा रहा था। जाम सीवर को चालू करने की कोशिश कर रहे थे बच्चे। आगे देखा कई जगह ऐसे सीवर खुले पड़े थे।
बजबजाते सीवर के बगल की चाय की दुकान में एक आदमी चाय पीते हुए अखबार पढ़ रहा था।भारत ने अंतरिक्ष में अपना उपग्रह मार गिराया।

सुरेश अपनी दुकान पर टहल रहे थे। कई रिक्शे खड़े थे। बताया कि रिक्शेवाले होली में घर गये हैं। छुट्टी बाद आएंगे तब रिक्शे चलेंगे।
गुप्ता जी सड़क पर बैठे ग्लास की चाय में डबल रोटी भिगोकर खा रहे थे। चश्मा बनवा लिया है। ढाई सौ का बना। तबियत के बारे में बताया -'जिंदा हैं। हर बीमारी से बच जाते हैं। लगता है अभी और जीना है।'
गुप्ता जी का बच्चा साइकिल की दुकान छोड़कर अभी ककड़ी-खीरा बेंच रहा है।
गंगा पुल से देखा सूरज भाई चमक रहे थे। देखते-देखते गंगा में कूद गए। नहाकर हर हर गंगे कहते हुए निकलेंगे।नदी में नावें सामान इधर-उधर कर रहीं थीं। नदी का पानी हिलते-डुलते नाव को टाटा कर रहा है। हैप्पी जर्नी बोल रहा है।
सामने एक खड़खड़े में किसी मकान का मलवा लेकर लड़का शुक्लागंज की तरफ जा रहा था। किसे गिरे हुए मकान का मलवा किसी दूसरे मकान की नींव में लगे। एक के मलवे से दूसरे के लिए नींव बनता है।
सुबह हो गयी।

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