Thursday, March 28, 2019

तन पर नहीं लत्ता-पान खाएं अलबत्ता


रिक्शे वाले घर गए हैं। होली पर। त्योहार मनाने। अगले हफ्ते आएंगे। रिक्शा मालिक सुरेश ने जानकारी दी।

रिक्शे भी आराम फरमा हैं। तसल्ली से धूप सेंकते हुए। शरीफ बच्चों की तरह दीवार की तरफ मुंह कोई लाइन से खड़े हैं। जिन रिक्शों के पुर्जे ढीले हैं, जिनकी बियरिंग घिसी हुई है वे खुश टाइप दिख रहे हैं। कुछ तो आराम मिला खटर-पटर-खट से।
एक रिक्शे अलग दिखने की कोशिश में चलने की मुद्रा में खड़ा है। शायद नाटक कर रहा कि छुट्टी है लेकिन चलने को तैयार है। बदमाश है। रंगमंच दिवस था कल। लगता इस पर भी नाटक का नशा चर्राया है। अपने को बड़ा खलीफा समझ रहा। भले साल भर बाद पुर्जे-पुर्जे हो जाये। लेकिन अभी चरस बोए पड़े हैं।
कहावत है न -तन पर नहीं लत्ता, पान खाएं अलबत्ता।

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