Friday, August 21, 2020

परसाई के पंच-15

 1. मेरा अन्दाज है, इस समय देश में राजनीति के क्षेत्र में लगभग पांच हजार चमचे काम कर रहे हैं। ये प्रधान चमचे हैं। फ़िर इनके स्थानीय स्तर के उपचमचे और अतिरिक्त चमचे होते हैं। ये सब हीनता , मुफ़्तखोरी, लाभ और कुछ वफ़ादारी की ओर से अपने नेता से बंधे होते हैं। इनमें गजब की अनुशासन-भावना होती है। अगर किसी उपचमचे को जनपद को जनपद की सीट का टिकट चाहिये तो वह सीधा नेता के पास नहीं जायेगा। वह प्रधान चमचे से कहेगा और प्रधान चमचा नेता से बात करके उसका काम करायेगा।

2. नेता का दुनिया से सम्पर्क सिर्फ़ चमचे के मारफ़त होता है और कुछ दिनों में उसका यह विश्वास हो जाता है कि इस विशाल दुनिया में मेरे चमचों के सिवा और कोई नहीं रहता। अपनी दुनिया को इस तरह छोटा करके जीने क सुख नेता कुछ साल भोगता है और फ़िर उसी नाव पर सुख का बोझ इतना हो जाता है कि नाव नेता को लेकर डूब जाती है। चमचे तैरकर किनारे लग जाते हैं और दूसरे नेता के चमचे हो जाते हैं।
3. नेता मरता रहता है, चमचे अमर होते हैं।
4. कुछ चमचे जीवन-भर सिर्फ़ चमचा बने रहने का व्रत पालते हैं और पचीसों नेताओं को डुबाने का पुण्य प्राप्त करते हैं।
5. चमचा बनना आसान नहीं है। एक अच्छे चमचे का निर्माण कई सालों में होता है।
6. आन्दोलन में जब ऐसा लगता कि इस बार सरकार सख्ती कम करेगी, जेल कम दिनों की होगी और वहां आराम भी रहेगा, तब हर नेता अपने ज्यादा से ज्यादा चमचों को जेल भेजने की कोशिश करता था। तब जेल जाने के लिये वैसी ही होड़ होती थी जैसी अब चुनाव टिकट के लिये होती है।
7. चाहे साम्राज्यवाद हो , चाहे प्रजातन्त्र- दोनों चमचों की बुनियाद पर खड़े रहते हैं।
8. चमचा बड़ी तरकीब से यह बात फ़ैलाता है कि नेता का वह विश्वासपात्र है, उनका आत्मीय है और वे उसकी बात कभी नहीं टालते।
9. आम चमचों से नेता के घर के लोग और नौकर नफ़रत करते हैं। वह चमचा हजारों में एक होता है जिसे नेता भी चाहे, उनका परिवार भी और नौकर भी।
10. किराये पर देने के लिये जब मकान बनवाया जाता है तो खास ख्याल रखा जाता है कि किरायेदार को भूल से भी कोई सुविधा न मिल जाये।
11. कभी-कभी नीरसता से ऊबकर , ये घरघुसी स्त्रियां आपस में शौकिया लड़ पड़ती हैं। कलह से सस्ता मनोरंजन और क्या होगा?

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