Sunday, August 23, 2020

परसाई के पंच -17

 1. नालायक समझे जाने वाले पति की, गरीब मां-बाप वाली पत्नी तिरस्कार ही तो पाती है।

2. हमारे इस विशाल भारत देश में नेता वही होता है जो जोर से बोले या खिलाये-पिलाये।
3. क्योंकि इस जमाने में आदमी की वास्तविक शक्ल से चित्र अच्छे उतरने लगे हैं। इसीलिये प्रेमी प्रेमिका को प्रथम मिलन में ही ’फ़ोटू’ देने की जल्दी करता है।
4. पुरुष पर स्त्री की विजय के अनेक कारणों में सबसे बड़ा कारण यह है कि स्त्री, पुरुष के सम्बन्ध में अपने मनोभावों को प्रकट करने का लोभ कुछ देर के लिये संवरण कर सकती है, पर पुरुष अपनी चाह को व्यक्त करने की उतावली करता है।
5. जैसे हर ’गबदू’ ग्रेजुएट वाइस चांसलर बनने की इच्छा मन में पाले रहता है, उसी प्रकार मोटर का हर मुसाफ़िर ’फ़्रण्ट सीट’ पर बैठने की अभिलाषा रखता है।
6. ये ऐसे लोग होते हैं जो हर कठिनाई को बचाकर किसी प्रकार घिसटते हुये जिन्दगी की राह पर चलते हैं। ये ऐसे मुर्दे होते हैं कि जहां हैं वहीं रहना परम भाग्य समझते हैं। ये सन्तोषी नहीं होते; कायर होते हैं, बुजदिल होते हैं। अपने अधिकारों में से बहुत से ये दूसरों के लिये छोड़ रखते हैं। ये ऐसे लोग होते हैं जो झंझट पसन्द नहीं करते।
7. जहां जीवन की परिभाषा मृत्यु को टालते जाना मात्र हो, वहां जीवन को नापता हुआ वर्ष पास-पास कदम रखता है।
8. आदमी अपने पैसे का बदला वसूल करना चाहता है, चाहे वह प्रतिदान आंसू ही क्यों न हो।
9. रेलवे में घूस लेना इस कदर कानूनी हो गया है कि अगर कोई घूस न दे तो उस पर रेल बाबू दीवानी का मुकदमा दायर करने की भी एक बार सोचता है।
10. भूख का एक स्वर होता है, चाहे वह कुत्ते की भूख हो, चाहे आदमी की भूख हो। भूख का स्वर पहचानने में आप गलती नहीं कर सकते।
11. हममें में से अधिकांश के लिये सहानुभूति भी एक कला बन गयी है। भाषा के वैभव ने हमें क्षमता दी है कि हम चुनिन्दा शब्द उच्चरित करें। नाट्य कला ने सुविधा दी है कि दर्द का भाव चेहरे पर बिछा लें। इससे ज्यादा हम करते भी क्या हैं? सोचकर सन्तोष कर लेते हैं कि ज्यादा कर भी क्या सकते हैं?

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