Friday, August 21, 2020

लोग खुद तक सिमटकर रह गए हैं

 


बहुत दिन बाद सड़क पर निकले। जंगल में ठहरे लोग रात में जंगली जानवरों के डर से रेस्ट हाउस से बहुत दूर नहीं जाते। हम भी कोरोना के डर से बाहर निकलते झिझकते हैं। निकलते भी हैं तो मास्क पहन कर जैसे कि जंगल में शिकारी निकलते समय बंदूक ले लेते होंगे।

कोरोना ने बड़े-बड़ों की सिट्टी और पिट्टी जोड़े से गुम कर रखी है। जैसे आखिरी दिनों में मुगल बादशाह दिल्ली तक सीमित रह गए थे वैसे हो कोरोना काल में 'तमाम' लोग खुद तक सिमट कर रह गए हैं।
लेकिन इन लोगों के अलावा और भी तमाम-तमाम लोग हैं जो कोरोना से डरे बिना मस्त , निर्द्वन्द घूम रहे हैं। मास्क नहीं, दूरी नहीं। कोरोना की ऐसी कम तैसी वाली मुद्रा में लोगों को घूमते देख कोरोना भी डर जाता होगा।
सड़क के दोनों तरफ लोग फुटपाथ पर जमे हैं। यहाँ बनी बेंचों पर बैठने से रोकने के लिए कांटे रखवा दिए गए हैं। कांटो का ताज की तर्ज पर कांटो की बेंच। लेकिन उससे क्या ? बगल में फुटपाथ तो है। लोग साफ-सुथरे फुटपाथ पर बैठे हुए कसरत कर रहे हैं।
एक भाई जी 'ओम' का जाप कर रहे हैं। जोर से। सुनते ही कोरोना घबरा गया होगा -'ये तो शंकर भक्त है। प्रलय के देवता का आदमी। प्रलय होगी तो दुनिया ही नहीं रहेगी। कोरोना भी खल्लास। ' कोरोना 'ओम' की आवाज से 'सुरक्षित दूरी' बनाते हुए निकल लिया होगा।
दूसरे भाई जी कपाल भाती कर रहे हैं। हवा अंदर जा रही है बाहर आ रही है। नापी नहीं लेकिन जितनी हवा अंदर जा रही उतनी बाहर आ नहीं रही होगी। फेफड़े जरूर अपना कमीशन काटकर कम हवा ही भेज रहे होंगे बाहर। बिना कमीशन कोई काम नहीं करता आजकल।
हवा की बात से याद आया कि आजकल अस्पतालों में कोई जाए तो कहा जाता है -'कोरोना टेस्ट करा कर आओ।' कोई मरता हुआ इंसान जाए तो भी पहले कोरोना टेस्ट करा कर पहुंचे अस्पताल। आफत है। इस चक्कर में वे लोग भी मर रहे हैं जो सामान्य उपचार से बच सकते हैं।
हवा जो अंदर जा रही है वह फौरन बाहर आ रही है। कहीं फेफड़े धकियाकर बाहर तो नहीं कर रहे हवा को -'जाओ पहले कोरोना टेस्ट कराकर आओ तब अंदर आओ।' लेकिन ऐसा होगा नहीं। फेफड़े कोई अस्पताल के डॉक्टर थोड़ी हैं जो ऐसा करें।
एक भाई जी फुटपाथ पर कसरत कर रहे हैं। फुटपाथ को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। फुटपाथ दब नहीं रहा। वो ऊपर उठ रहे हैं। खुद ऊपर उठने के लिए भी किसी को नीचे दबाना होता है। क्रिया -प्रतिक्रिया का शाश्वत नियम है।
सूरज भाई बिना मास्क आसमान में टहल रहे हैं। हमने टोंक दिया तो हंसते हुए बोले -' यहां कौन मास्क की जरूरत। अरबों साल की सोशल डिस्टेंसिंग है हमारी तुम्हारी।'
हंसने लगे यह कहकर सूरज भाई। उनकी हंसी से दिशाएं खिलखिला दीं। सुबह हो गयी।

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