Tuesday, August 11, 2020

परसाई के पंच-8

 1. जो लोग समय तय करके भी घर नहीं मिलते, वे मुझे भगवान के एजेण्ट मालूम होते हैं।वे हमें अभ्यास कराते हैं कि कैसे बिना ऊबे, अवमानना की अवहेलना करके अनिश्चित काल के लिये किसी दरवाजे पर इन्तजार किया जाता है।

2. इन्तजार से प्रेम बढता है। हर क्षण वही मन में रहता है और आंखें फ़ाटक पर बिछी रहती हैं। प्रेम का नाम इसी बात से तो होता है कि कौन आपका इतनी देर इन्तजार करता है।
3. समय की पाबन्दी के लिये जितनी सावधानी चाहिये, उससे कम समय पर न मिलने के लिये नहीं चाहिये। मैं घर ऐसे समय वक्त जाता हूं, जब उनके मिलने की बिल्कुल सम्भावना नहीं है- और वे मिल जाते हैं। उनके जहां होने की उम्मीद है वहां न होकरे वे वहां होंगे, जहां उनके होने की उम्मीद नहीं है।
4. सत्य की टीमटाम हो लोग पूछने लगते हैं कि इसका खर्च कौन सा-सा असत्य दे रहा है?
5. सत्य पास ही मिलता है तो मैं उसे ग्रहण कर लेता हूं। दूर नहीं जाता सत्य के लिये। उसमें रिक्शा किराया लग जाता है।
6. जिसे छह-छह महीने वेतन न मिले, वह वैसे ही आध्यात्मिक हो जाता है। कहते हैं जनक ’विदेह’ थे। याने देह की सुधबुध नहीं रहती थी। यह तपस्या का परिणाम नहीं था। जिसके घर चार लड़कियां बिन ब्याही बैठी हों, वह विदेह हो ही जायेगा।
7. सच्चा ईमानदार वह होता है, जो सबको बेईमान मानकर चले।
8. जिस प्रकार शादी के मौसम में अधिक रेशमी कपड़ा बिकता है। समय आने पर हम सज्जनों को उसी तरह पहचान लेते हैं, जिस तरह कि खाता बही जब्ती होने पर बिक्रीकर इन्स्पेक्टर के रिश्तेदारों को पहचान लेते हैं।
9. हमारी शिक्षा-दीक्षा ’लालफ़ीतावाद’ में हुई है जिसका प्रथम सिद्धांत ही देर करना है।
10. नियम के कारण ही एक कुलटा कहलाती है और दूसरी प्रवित्रता। कुलटा का कुल मिलाकार पुरुष-सम्पर्क पतिव्रता से कम होता है, तो भी।
11. अर्जुन ज्ञानी हो गया और लड़ने लगा। यानी ज्ञानी वह जो हमेशा लड़ने को तैयार रहे।
12. कुछ करो, तो आधे अच्छे काम होते हैं और आधे बुरे। कुछ नहीं करने से कोई बुरा काम नहीं होता। बुरा करने से यही अच्छा है कि बैठे-बैठे अच्छा सोचा करो।
13. जिसकी टेबल पर फ़ाइलों का जितना बड़ा ढेर होगा, वह उतना ही दीर्घायु होगा और उतना ही बड़ा देशसेवक होगा।
14. केन्द्रीय सरकार को सहज हिदायत देनी चाहिये कि जो अपना काम पूरा कर देगा, उसे नौकरी से निकाल दिया जायेगा। वह मरकर अपनी सेवा से वंचित करना चाहता।
15. लोग अपने काम में दखल नहीं देने देते, जब तक आप उनका भला न करने लगे।
16. अब मुझे समझ में आया कि लोग स्वार्थी क्यों हो जाते हैं। वे दूसरों का भला करना चाहते हैं, पर कोई उनसे भला कराने को तैयार नहीं होता। निराश होकर वे अपना भला करने लगते हैं। लोग उनकी निन्दा करते हैं, पर वे दया के पात्र हैं। वे मजबूरी में स्वार्थी हो जाते हैं।
17. अगर चाहते हो कि कोई तुम्हें हमेशा याद रखे, तो उसके दिल में प्यार पैदा करने का झंझट न उठाओ। उसका कोई स्कैन्डल मुट्ठी में रखो।
18. देखो, साहब जब खुद तबादला करता है, तब वह दण्ड देता है। और जब किसी की प्रार्थना पर करता है, तब वह कृपा होती है। कृपा करने का कोई नियम शासन में नहीं है, पर सजा देने की छूट है।
19. ये बड़े-बड़े अफ़सर बेचारे बहुत कमजोर होते हैं। ये तबादले से ज्यादा कुछ कर ही नहीं सकते। अगर ये कहें कि मैं तुम्हें मार डालूंगा, तो समझो कि तबादला करेंगे।
20. गाली वही दे सकता है, जो रोटी खाता है। पैसा खानेवाला सबसे डरता है। जो सरकारी कर्मचारी जितना नम्र होता है, वह उतने ही पैसे खाता है।
21. भ्रष्टाचारी अगर जल्दी मर जाये, तो परिवार को बड़ी सुविधा होती है।

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