1. जब तक किसी बड़े आदमी की एक-दो रखैल नहीं होतीं तब तक वह इज्जतदार नहीं माना जाता।
2. बाहर देश का नाम ऊंचा होने से उस देश के आदमी को भूख नहीं लगती।
3. हमारे समाज में नारी की गुलामी के कारण ऐसी भावना व्याप्त हो गयी है कि पुरुष केवल ’नर’ है और स्त्री केवल ’मादा’, जो एक-दूसरे के पास केवल प्रजनन के प्रयोजन से आते हैं। वे और किसी कारण से, किसी और स्तर पर मिल ही नहीं सकते।
4. भारतीय से कोई स्त्री हंसकर बोल लेती है, तो वह ’मूरख’ समझता है कि यह तो मुझपर आशक्त है।
5. जीवन यदि मशीन है, तो प्रेम उसे ठीक से चलाने के लिये ’मोबिलाआइल’ है। जो लोग ’मोबिलआइल’ को मशीन मान लेते हैं, उनकी लाशें तालाबों में तैरती हुई मिल जाती हैं।
6. मैं देखता हूं अपने संगठन का , अपने नेता का, अपने झण्डे का, अपने नारे का सिर्फ़ एक ही अर्थ, एक ही उपयोग, एक ही उद्देश्य श्रमिक मानता है कि यह वह है जो बोनस दिलाता है, वेतन-भत्ता दिलाता है, सस्पेण्ड हो गये तो बहाल कराता है। याने संगठन,नेता, झण्डा, घोषणापत्र, सिद्धान्त –पैसा है, सिर्फ़ पैसे के सिवा कुछ नहीं।
7. कर्मचारी केवल अपने अधिकार जानता है, अपने कर्तव्य नहीं जानता। वह समाज के प्रति अपना दायित्व न समझता है, न निभाता है जबकि सारे लाभ वह इसी समाज से चाहता है, जिसमें पैसा भी शामिल है। श्रमिकों ने जैसे अपनी एक अलग दुनिया बना ली है। बाकी दुनिया में क्या हो रहा है, इससे उसे मतलब नहीं है।
8. अमेरिका जब किसी विकासशील देश से औद्योगिक और व्यापारिक सहयोग करता है या सहायता करता है तो उसमें बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का मुनाफ़े का उद्देश्य होता है।
9. ट्रेड यूनियनों ने मजदूरों से आर्थिक लड़ाई लड़वायी है। बोनस, मंहगाई भत्ता, वेतनवृद्धि और ओवर टाइम की लड़ाई लड़वायी है।
10. सुविधाभोगी, कायर, अवसरवादी लेखक, पत्रकार, अध्यापक, बुद्धिजीवी वर्ग ने इस देश और उसकी जनता के साथ बड़ा धोखा किया और करते जाते हैं।
11. हर दंगे में गरीब आदमी मारे जाते हैं और गरीबों की झोपड़ियां जलायी जाती हैं। अभी तक इतने दंगे हुये मगर बड़ा हिन्दू या बड़ा मुसलमान कोई नहीं मारा गया। यह सब दंगे सुनियोजित होते हैं।
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