Monday, November 16, 2020

परसाई के पंच-101

 1. इतिहास जब आगे बढ़ता है तो उसके पहिये को पकड़कर रोकनेवाले के हाथ टूट जाते हैं।

2. मैं लेखक छोटा हूं, मगर संकट बड़ा हूं। एक तो बड़ा संकट मैं आचार्यों , समीक्षकों और साहित्य के नीतिकारों के लिये हूं, जिनके लिये वर्गीकरण जरूरी है और जो तय नहीं कर पाते कि इस आदमी को किस खाते में डाला जाये। परेशान होकर इन्होंने मुझे व्यंग्य लेखक, व्यंग्यकार, व्यंग्य शिल्पी आदि कहना शुरु किया, तो कई दूसरे व्यंग्य लेखक और प्रबुद्ध पाठक उनके सिर चढ़ बैठे कि अब व्यंग्य को साहित्य की विधा भी मानो।
3. डॉक्टर कैंसर के रोगी को बताय कि उसे कैन्सर है, तो वह स्वस्थ मानसिकता का है। पर अगर कैंसर के रोगी को डाक्टर राग जैजैवंती सुनाने लगे तो डाक्टर जरुर मानसिक रोग से ग्रस्त है।
4. वास्तव में मैं जो लिखता हूं, वह विनोद या हास्य नहीं है। वह व्यंग्य है और लोगों का कहना सही है कि वह कठोर होता है। व्यंग्य मानव-सहानुभूति का बहुत ऊंचा रूप है। वह हास्य नहीं है, रुदन है, मगर अरण्य-रुदन नहीं है।
5. निंदा अत्यन्त नीच कर्म है। कायर ही निंदा करते हैं। आत्मविश्वासी आलोचना करते हैं। निंदा निंदक की आत्मशक्ति का नाश करती जाती है। इन प्रवृत्तियों से गुट बनते हैं, गैर जिम्मेदारी की बातें होती हैं, परस्पर द्वेष पैदा होता है और संगठन कमजोर तथा बदनाम होता है।
6. एक ख़ास किस्म के मरीज भी होते हैं जिन्हें निज का कोई दुःख नहीं होता पर जो इसलिए दुखी हैं कि वे देखते हैं , दूसरे सुखी हैं।
7. दूसरे के दुःख में दुखी होना आसान है; दूसरे के सुख में सुखी होना बहुत मुश्किल है।
8. हिन्दी में सबसे प्रचलित और लोकप्रिय पद्धति है –अपनों कि प्रशंसा और परायों कि निंदा। यह बड़ी स्पष्ट, सरल और उलझन विहीन पद्धति है। इसके मानदंड भी स्थिर और शाश्वत हैं।
9. मैं ‘शाश्वत साहित्य’ रचने का संकल्प करके लिखने नहीं बैठता। जो अपने युग के प्रति ईमानदार नहीं होता, वह अनंत काल के प्रति कैसे हो लेता है, मेरी समझ से परे है।
10. व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार करता है, जीवन की आलोचना करता है, विसंगातियों, मिथ्याचारों और पाखंडो का परदाफाश करता है ।
11. व्यंग्य सहानुभूति का सबसे उत्कृष्ट रूप होता है।

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