Monday, November 09, 2020

परसाई के पंच-98

 1. धर्म वह है, जिसका पालन धनी-गरीब सब कर सकें, जो बड़े और छोटे सबके लिये सुलभ हो।

2. विचार को निर्बाध गति से प्रकट होने देना चाहिये। विचार जब लुप्त हो जाता है, या विचार प्रकट करने में बाधा होती है या किसी के विरोधी विचार से भय लगने लगता है, तब तर्क का स्थान हुल्लड़ या गुण्डागर्दी ले लेती है।
3. यह कैसी रिश्तेदारी या मित्रता है कि अपने आदमी को गलत करते देखकर भी उसे चेताया न जाय। यह तो इसी तरह हुआ कि कोई खन्दक में गिरा जा रहा है और उसका मित्र दूर खड़ा देख रहा है। उससे पूछा कि क्यों भाई, तू उसे क्यों नहीं रोकता? तो वह कहता है –’जरा आपसी मामला है; रिश्तेदारी है, वे बुरा मान जायेंगे। गिर ही जाने दो।’
4. समाज में वह शक्ति आनी चाहिये कि सामाजिक, मिथ्यावाद, असामाजिक कृत्य और समाज के लिये हानिकर कर्मों का विरोध कर सकें।
5. जिस धर्म के पालन में लाख रुपये लगें, वह धर्म नहीं है, धन्धा होगा।
6. पाखण्ड विशेष धर्म में ही नहीं है, सबमें हो रहे हैं।
7. इस देश में ऐसा ही होता आया है –बड़े से बड़े मस्तिष्क को राजसत्ता खरीदती रही है। द्रोणाचार्य-सरीखे शस्त्र और शास्त्र मर्मज्ञ को दुर्योधन ने ऐसा खरीदा कि महाभारत में द्रोणाचार्य दुर्योधन की ओर से लड़े –यह जानते हुये कि उसका पक्ष अन्याय का पक्ष है।
8. अन्याय के विरुद्ध जिसकी आवाज बुलन्द नहीं होती वह लेखक या कलाकार नहीं बन सकता।
9. अमेरिकी बड़ा विचित्र आदमी होता है। वह भीतरी शान्ति, व्यक्तिगत शान्ति तो चाहता है पर बाहर सरकार को अशान्ति फ़ैलाने देता है।
10. बेशर्म की नाक इस्पात की बनी होती है।
11. सच्ची दोस्ती वही है, जब दोस्त एक-दूसरे को बेवकूफ़ बनायें।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10221087472469926

No comments:

Post a Comment