Saturday, November 07, 2020

परसाई के पंच-97

 

1. न्याय के दो रूप होते हैं – एक दूसरे के लिये;दूसरा अपने लिये।
2. एक झूठ होता है; एक सफ़ेद झूठ और एक अखबारी झूठ। हमारे तमाम अखबार समाज को झूठ तक बेचते हैं। सत्य की कीमत लें तो एक बात है, पर झूठ तक को खरीदकर पढ़ते हैं लोग।
3. दुनिया में निर्दोष की बलि होती है। तुम्हारे यहां बकरे की बलि होती रही है, देवताओं की प्रसन्नता के लिये। किसी देवता की हिम्मत सिंह की बलि मांगने की नहीं होती। सिंह की बलि देने का प्रयास करने पर बलि-कर्ता भक्त की ही बलि हो जाये, इसलिये मिमियाने वाले बकरे की बलि।
4. सब धर्माचार्यों को उनके भक्तों ने ही कलंकित किया है। सनातनधर्मी कभी बौद्धों के सिर काटते थे। फ़िर बौद्धराज्य हुए तो सनातनधर्मियों के मस्तक उतरने लगे। इसाई धर्मवाले हिरोशिमा में बम पटकते हैं और ओमान में नरसंहार करते हैं। इस्लामवाले काश्मीर में लूट, अगजनी, हत्या करते हैं। जैन धर्मवाले पानी छानकर पीते हैं, मगर खुले बाजार में आदमी का खून बगैर छना पी जाते हैं।
5. धार्मिक दंगों में जो लड़ते हैं; वे क्या भक्त होते हैं? उनको धर्म से कुछ लेना-देना नहीं है। ईश्वर को वे कुछ नहीं समझते। वे ऐसे होते हैं जो किसी भी धर्म के लिये कलंक होते हैं- गुण्डे,हुल्लड़बाज, लुटेरे ! झगड़ा हो जाने से लूट का सुभीता मिलता है।
6. यहां नेता केवल चुनाव में सक्रिय होता है और अफ़सर केवल लाठी और गोली चलाने पहुंचते हैं।
7. नेता की बात कोई मानता नहीं है, क्योंकि आम आदमी का उनमें विश्वास नहीं है।
8. चुनाव के सिवा नेता किसी के पास नहीं जाता। समाज की दैनिक समस्याओं की ओर नेता का ध्यान नहीं जाता।
9. अफ़सर का जनता से सम्बन्ध केवल डिग्री, समन, लाठी और गोली के मार्फ़त होता है।
10. जिस समाज के तरुणवर्ग में घुटन होती है वह समाज पतित होता जाता है, क्योंकि घुटन विकृतियों की निशानी है, उससे मानसिक रुग्णता आती है और समस्त जाति का स्वास्थ्य बिगड़ता है।
11. प्रेम की प्रेरणा से कर्म में सौन्दर्य और कुशलता आती है, पर कर्महीन प्रेम अत्यन्त पतनशील और घिनौना होता है।

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